भारत में घटी है भूख की चुनौती
तीन वर्षों में कृषि ही ऐसा क्षेत्र रहा है, जिसमें विकास दर नहीं घटी है. जिस तरह केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा कृषि के विकास के लिए कदम उठाये जा रहे हैं, उनसे खाद्यान्न उत्पादन बढ़ रहा है.
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रकाशित द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड रिपोर्ट-2022 के अनुसार, जहां दुनिया में भुखमरी की चुनौती बढ़ रही है, वहीं भारत में यह कम हो रही है. वर्ष 2019 में दुनिया में 61.8 करोड़ लोगों को पर्याप्त पोषण युक्त भोजन नहीं मिलने से भुखमरी का सामना करना पड़ा. वर्ष 2021 में यह संख्या बढ़कर 76.8 करोड़ हो गयी. भारत में पिछले 15 साल में भूख से जंग में थोड़ा सुधार हुआ है. वर्ष 2004 में भारत की 24 करोड़ आबादी कुपोषित थी, 2021 में यह संख्या 22.4 करोड़ पर आ गयी.
वर्ल्ड फूड प्रोग्राम के कार्यकारी निदेशक डेविड बस्ली और केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के बीच हाल में हुई बैठक में कृषि एवं खाद्य क्षेत्र में भारत की सराहना की गयी. डेविड बस्ली ने कहा कि भारत ने दुनिया में खाद्यान्न की सुचारु आपूर्ति करके जरूरतमंद देशों में भूख की चुनौती को कम किया है. कृषि मंत्री तोमर ने कहा कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से हम महामारी के संकटकाल से लगातार 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज वितरित कर रहे हैं. वहीं भारत जरूरतमंद देशों को भी खाद्यान्न उपलब्ध करा रहा हैं.
इस समय वैश्विक भूख संकट चिंताजनक ढंग से बढ़ रहा है. दुनिया के 45 देशों में करीब पांच करोड़ लोग अकाल के कगार पर हैं. भुखमरी की बड़ी वजह लगातार बढ़ता हुआ जलवायु संकट है. रूस-यूक्रेन युद्ध से निर्मित खाद्यान्न की भारी कमी भी बड़ा कारण है. भोजन की बर्बादी भी एक अहम कारण है. बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप (बीसीजी) के अनुसार दुनिया में उत्पादित लगभग एक तिहाई से अधिक भोजन हर साल बरबाद होता है. वर्तमान में 23 देशों द्वारा खाद्यान्न निर्यात पर लगाये गये प्रतिबंधों के कारण खाद्यान्न संकट खड़ा हो गया है. ऐसे में अब वैश्विक भुखमरी की समस्या और बढ़ेगी.
बढ़ते वैश्विक भूख संकट के दौर में भारत में भूख की चुनौती में जो कुछ कमी दिख रही है, उसके लिए भारत की तीन अनुकूलताएं स्पष्ट हैं. एक, गरीबों के सशक्तीकरण की कल्याणकारी योजनाएं और गरीबी में कमी आना. दूसरा, कृषि क्षेत्र में सुधार तथा खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाना और तीसरा, भूख और कुपोषण दूर करने की प्रभावी योजनाएं. जैसे-जैसे गरीबी की दर में कमी आती है, वैसे-वैसे भुखमरी में भी गिरावट आती है.
हाल ही के वर्षों में गरीबों के कल्याण और विकास का नया अध्याय लिखा गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गांधीनगर में डिजिटल इंडिया वीक-2022 का शुभारंभ करते हुए कहा कि केंद्र सरकार द्वारा गरीबों, किसानों और कमजोर वर्ग के करोड़ों लोगों को नकदी हस्तांतरण किया गया. लोगों के बैंक खातों में डायरेक्ट बैंक ट्रांसफर (डीबीटी) से 23 लाख करोड़ रुपये जमा कराये गये हैं.
बावन मंत्रालयों की ओर से संचालित 300 सरकारी योजनाओं का लाभ डीबीटी से लाभार्थियों तक पहुंचने से गरीबों का सशक्तीकरण हो रहा है. इसी वर्ष 2022 में विश्व बैंक (वर्ल्ड बैंक) और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) द्वारा प्रकाशित पॉलिसी रिसर्च पेपर्स में कहा गया है कि हाल के वर्षों में भारत में गरीबी घटी है. विश्व बैंक के रिसर्च पेपर में कहा गया है कि देश में 2011 में अति गरीबी की दर 22.5 प्रतिशत थी, वह 2015 में 19.1 प्रतिशत रह गयी.
साल 2019 में यह दर मात्र 10 प्रतिशत रह गयी. विश्व बैंक के रिसर्च पेपर के तहत लॉकडाउन के बाद अर्थव्यवस्था का अध्ययन शामिल नहीं है, वहीं अप्रैल 2022 में प्रकाशित आईएमएफ के रिसर्च पेपर में कोविड की पहली लहर के प्रभावों को भी शामिल किया गया है. मुफ्त खाद्यान्न कार्यक्रम ने लॉकडाउन के प्रभावों की गरीबों पर मार को कम करने में अहम भूमिका निभायी है. इससे निश्चित रूप से भुखमरी में भी कमी आयी है.
भारत में भूख के मोर्चे पर सुधार के पीछे पिछले सात-आठ वर्षों में कृषि विकास का बढ़ना महत्वपूर्ण कारण है. तीन वर्षों में कृषि ही ऐसा क्षेत्र रहा है, जिसमें विकास दर नहीं घटी है. जिस तरह केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा कृषि के विकास के लिए कदम उठाये जा रहे हैं, उनसे खाद्यान्न उत्पादन बढ़ रहा है. चालू फसल वर्ष 2021-22 के तीसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन रिकॉर्ड 31.45 करोड़ टन रहेगा, जो पिछले वर्ष की तुलना में 37.7 लाख टन अधिक है.
देश में भूख और कुपोषण दूर करने के लिए लागू की गयी विभिन्न सरकारी योजनाएं मसलन सामुदायिक रसोई, वन नेशन, वन राशन कार्ड, उज्ज्वला योजना, पोषण अभियान, समग्र शिक्षा जैसी योजनाएं प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से गरीबी के स्तर में कमी और भुखमरी की चुनौती को कम करने में सहायक रही हैं. देश को भुखमरी की चुनौती से बचाने के लिए अभी बहुत अधिक कारगर प्रयासों की जरूरत बनी हुई है.
कृषि क्षेत्र में उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के अधिक प्रयास जरूरी है. चूंकि, खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार भारत में उत्पादित लगभग 40 फीसदी भोजन हर साल बर्बाद हो जाता है, जिसकी कीमत करीब 92,000 करोड़ रुपये है, देश में भोजन की बर्बादी को बचाना होगा. देश में कुपोषण और भूख की चिंताएं कम करने के लिए इस क्षेत्र की ओर कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीआरआर) व्यय का प्रवाह बढ़ाकर भी बड़ी संख्या में लोगों को कुपोषण और भूख की पीड़ाओं से राहत दी जानी चाहिए.
संयुक्त राष्ट्र की ‘द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड रिपोर्ट-2022’ के मद्देनजर, केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा देश के करोड़ों लोगों को भूख की चुनौती से बाहर लाने के लिए रणनीतिक कदम आगे बढ़ाये जायेंगे. उम्मीद करें कि सरकार द्वारा सामुदायिक रसोई की व्यवस्था को मजबूत बनाकर उन जरूरतमंदों के लिए भोजन की कारगर व्यवस्था सुनिश्चित की जायेगी, जिन्हें सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) का लाभ नहीं मिल पा रहा है.
साथ ही, एक ओर देश में बहुआयामी गरीबी, भूख और कुपोषण खत्म करने के लिए पोषण अभियान-2 को पूरी तरह कारगर बनाया जायेगा. वहीं दूसरी ओर, भारत द्वारा अधिक कृषि उत्पादन और अधिक कृषि निर्यात से भुखमरी से प्रभावित दुनिया के करोड़ों लोगों की भूख की पीड़ाओं को कम करने में अहम भूमिका निभायी जायेगी. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)