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डाॅमिनिक लैपिएर जैसे सच्चे लेखक का जाना

फ्रेंच लेखक और भारत के मित्र डाॅमिनिक लैपिएर नहीं रहे. उन्होंने 'फ्रीडम एट मिडनाइट' में भारत के स्वतंत्र होने की कहानी अपने साथी लेखक लैरी कॉलिंस के साथ मिलकर लिखी थी.

लापिएर और कॉलिंस दिल्ली में गांधी जी के करीबी सहयोगी बृज कृष्ण चांदीवाला से लेकर कुलदीप नैयर, खुशवंत सिंह, राजनेता डॉ करण सिंह और ओबेराय होटल के मालिक एमएस ओबराय से मिल रहे थे. इस पुस्तक ने बाजार में आते ही तहलका मचा दिया था. तथ्यों को रोचक शैली में पेश करने में फ्रीडम एट मिडनाइट अतुलनीय पुस्तक के रूप में याद की जाती है.

रेलवे बोर्ड के पूर्व मेंबर डॉ रविंद्र कुमार अपने प्रिय लेखक डाॅमिनिक लैपिएर के निधन का समाचार सुन उदास हो गये. उन्हें याद आ रहा था गुजरा हुआ दौर, जब 1977 में प्रगति मैदान के बुक फेयर में उन्हें फ्रीडम एट मिडनाइट पर लैपिएर का आटोग्राफ लेने का मौका मिला था. उस बुक फेयर में लैपिएर ही थे. उन्हें पाठकों ने घेर रखा था. उनसे प्रश्न पूछे जा रहे थे. वे तब कितने खुश थे. अब बस यादें बची हैं.

डाॅमिनिक लैपिएर फ्रीडम एट मिडनाइट को लिखने के दौरान रामकृष्ण डालमिया की पत्नी दिनेश नंदिनी डालमिया से भी मिले. उन्होंने ही लैपिएर को बताया था कि उनके पति ने करीब ढाई लाख रुपये में मोहम्मद अली जिन्ना से उनका 10 औरंगजेब रोड (अब एपीजे अब्दुल कलाम रोड) का बंगला खरीदा था. उसे खरीदने के बाद उसे गंगाजल से धुलवाया भी था. इस तथ्य को किताब में जगह मिली. इन छोटे-छोटे, पर अहम तथ्यों को शामिल करने से उनकी किताब को पाठकों ने हाथों-हाथ लिया था.

फ्रीडम एट मिडनाइट को आगे चलकर हिंद पॉकेट बुक्स ने ‘आजादी आधी रात को’ नाम से हिंदी में छापा. इसे भी पाठकों ने खूब पढ़ा. आजादी आधी रात को में सनसनीखेज खुलासा किया गया था कि अगर भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन को पता चल गया होता कि जिन्ना ‘सिर्फ कुछ महीनों के मेहमान’ हैं, तो वे बंटवारे के बजाय जिन्ना की मौत की प्रतीक्षा करते. हालांकि यह बात सिर्फ जिन्ना के हिंदू डॉक्टर को पता थी, जिसने अपने मरीज के साथ विश्वासघात नहीं किया.

डाॅमिनिक लैपिएर दिल्ली में अशोक होटल या इंपीरियल होटल में ही ठहरते थे. वे यहां पर हिंद पॉकेट बुक्स और फुल सर्किल पब्लिशिंग हाउस के मैनेजिंग डायरेक्टर शेखर मल्होत्रा के मेहमान होते थे. वे जब तक दिल्ली में रहते, शेखर मल्होत्रा के जोर बाग वाले घर में लेखकों और पाठकों के बीच संवाद जारी रहता. लैपिएर अपनी लेखन यात्रा पर बात करते. शेखर मल्होत्रा अपने दोस्तों, लेखकों और किताबों के शैदाइयों को उनसे मिलने के लिए बुला लेते. शेखर मल्होत्रा ने डाॅमिनिक लैपिएर की किताब ‘फाइव पास्ट मिडनाइट’ को भारत में लांच किया था.

यह किताब भोपाल गैस त्रासदी की कहानी बयां करती है. इसका दिल्ली में विमोचन भी हुआ था. विश्व की भीषणतम औद्योगिक दुर्घटना या विभीषिका पर यह कालजयी पुस्तक है. इसे उन्होंने अपने साथी जेवियर मोरो के साथ मिलकर लिखी थी. उन्होंने ‘भोपाल विभीषिका’ पर लिखी पुस्तक की सारी ‘रॉयल्टी’ प्रकाशन के बाद से ही गैस पीड़ितों के कल्याण के लिये देने की घोषणा कर दी थी. डाॅमिनिक लैपिएर की दो पुस्तकें ‘ओ’जेरुसलम’ और ‘इज पेरिस बर्निंग’ अपने प्रकाशन वर्षों में ‘बेस्ट सेलर’ रही हैं.

तीन दिसंबर को भोपाल गैस त्रासदी की बरसी थी और चार दिसंबर को इस महान लेखक ने दुनिया से प्रस्थान किया. डाॅमिनिक लैपिएर के दिल्ली के सबसे करीबी मित्र शेखर मल्होत्रा का कोरोना के कारण 2021 में निधन हो गया था. वे प्रकाशक और किस्सागो दोनों थे. अपने पिता दीनानाथ मल्होत्रा की 2017 में मृत्यु के बाद से वे ही अपने परिवार का सारा प्रकाशन का काम देख रहे थे.

डाॅमिनिक लैपिएर ने ‘सिटी ऑफ जॉय’ नामक एक प्रसिद्ध उपन्यास भी लिखा. यह कोलकाता के जीवन, उसके सुख-दुख पर गहरी नजर डालता है. लैपिएर और उनकी पत्नी दोनों विशेष रूप से विकलांग बच्चों के लिए सहायता, प्रेम, सहानुभूति रखते थे. वर्ष 1985 में आयी उनकी किताब सिटी ऑफ जॉय कलकत्ता (आज का कोलकाता) के एक रिक्शा वाले की कहानी है जो भारत में बेहद लोकप्रिय हुई.

उन्होंने अपनी पुस्तक से हुई कमाई को भारत में टीबी तथा कोढ़ से ग्रस्त मरीजों के इलाज पर खर्च किया था. वर्ष 2005 में एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा था कि उनकी किताब से हुई कमाई से 24 वर्ष में करीब 10 लाख टीबी मरीजों का इलाज संभव हो सका तथा कोढ़ ग्रस्त करीब 9,000 बच्चों की देखभाल की जा सकी.

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