भारतीय रिजर्व बैंक ने एक दिसंबर से सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (सीबीडीसी) का लेन-देन खुदरा क्षेत्र में करने के लिए पायलट प्रोजेक्ट शुरू कर दिया. बीते एक नवंबर को सीबीडीसी का लेन-देन थोक क्षेत्र में करने के लिए एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया था. हालांकि पायलट प्रोजेक्ट के तहत सीमित मात्रा में चुनिंदा कारोबारी, चयनित आम जन, बैंक और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां सीबीडीसी से लेन-देन कर रहे हैं, लेकिन एक अनुमान के अनुसार चालू वित्त वर्ष के अंत तक पूरी तरह से सीबीडीसी के जरिये थोक और खुदरा क्षेत्र में लेन-देन करना मुमकिन हो जायेगा.
अभी ऐसा खुदरा क्षेत्र में मुंबई, दिल्ली, बंेगलुरु और भुवनेश्वर में किया जा रहा है, जिसे मुमकिन बनाने में भारतीय स्टेट बैंक, आइसीआइसीआइ बैंक, यस बैंक और आइडीएफसी फर्स्ट बैंक मदद कर रहे हैं. कालांतर में चार और बैंक- यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, एचडीएफसी बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा और कोटक महिंद्रा इस प्रोजेक्ट से जुड़ेंगे. थोक स्तर पर सीबीडीसी के लेन-देन के लिए रिजर्व बैंक ने 10 बैंकों का चुनाव किया था. जनवरी, 2023 तक पटना, लखनऊ, कोच्चि, इंदौर, हैदराबाद, गुवाहाटी, गंगटोक और अहमदाबाद आदि शहरों में भी सीबीडीसी का लेन-देन खुदरा क्षेत्र में किया जाने लगेगा.
यूजर डिजिटल वॉलेट या मोबाइल डिवाइस में सीबीडीसी को संग्रहित कर सकेंगे और डिजिटल वॉलेट या मोबाइल के जरिये यूजर किसी व्यक्ति या फिर कारोबारी के साथ लेन-देन कर सकेंगे. अगर किसी कॉरपोरेट या सरकारी एजेंसी को किसी खास व्यक्ति को सीबीडीसी देना है, तो उसे सरकारी या निजी बैंक से संपर्क करना होगा, क्योंकि इसके वितरण की जिम्मेदारी बैंकों को दी गयी है. सीबीडीसी को एक यूजर मोबाइल, लैपटॉप, डेस्कटॉप, टैब के जरिये दूसरे यूजर को अंतरित कर सकता है और बैंकों के जरिये भी.
यह देश के लिए गर्व और उपलब्धि का क्षण है, क्योंकि एक तय समय सीमा के अंदर आंशिक रूप से इस संकल्पना को लागू कर दिया गया, जबकि अब भी दुनिया के अनेक केंद्रीय बैंक सीबीडीसी को अमली जामा पहनाने में सफल नहीं हुए हैं. केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2022-23 के बजट में डिजिटल रुपये की संकल्पना को जमीन पर उतारने की घोषणा की थी और वह बहुत जल्द इसे मूर्त रूप देने में कामयाब भी रही.
पेपर करेंसी और सीबीडीसी की व्यवस्था समांतर रूप से चलेगी, ताकि नकदी विहीन अर्थव्यवस्था की संकल्पना को मजबूती मिल सके. इसका इस्तेमाल इंटरनेट के बिना भी करना मुमकिन बनाया गया है, ताकि भारतीय परिवेश में इसके लेन-देन में कोई परेशानी नहीं हो. इसे यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआइ) से भी जोड़ने का प्रस्ताव है. चूंकि सीबीडीसी की भुगतान प्रक्रिया का स्वरूप इलेक्ट्रॉनिक है, इसलिए इसके आने से नकली करेंसी की समस्या समाप्त हो जायेगी.
पेपर करेंसी की तरह प्रिंटिंग पर कोई खर्च नहीं होगा और न ही यह पुरानी होगी और न ही फटेगी. विदेशों में इसे अंतरित करने की लागत भी कम होगी. विश्व बैंक के अनुसार, दूसरे देश में पेपर करेंसी अंतरित करने की लागत सात प्रतिशत है, जबकि डिजिटल मनी अंतरित करने की लागत पांच प्रतिशत. इससे अरबों डॉलर की बचत हो सकती है. सीबीडीसी क्रिप्टोकरेंसी से अलग है. क्रिप्टोकरेंसी का लेन-देन निजी तौर पर किया जाता है और इसे नियंत्रण करने वाली कोई एजेंसी नहीं है, जबकि सीबीडीसी का नियंत्रण रिजर्व बैंक करेगा.
नियामक की निगरानी में होने की वजह से आतंकवादी गतिविधियों, मनी लॉन्ड्रिंग, धोखाधड़ी की संभावना कम रहेगी. सीबीडीसी के लिए किसी बैंक में खाता खोलने की जरूरत नहीं होगी. इसमें पेपर करेंसी के सारे फीचर होंगे और यूजर्स इसे पेपर करेंसी से बदल भी सकेंगे. एक प्रकार से इसे डिजिटल नकदी कह सकते हैं. सीबीडीसी ब्लॉकचेन तकनीक पर काम करेगा और इस प्रणाली में बिचौलिये की कोई भूमिका नहीं होगी.
सीबीडीसी प्रणाली को अमली जामा पहनाने में बैंकों की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका होगी, पर इससे बैंकों पर और भी कार्यभार बढ़ेगा. हालांकि बैंक के कर्मचारियों की संख्या में फिलहाल इजाफा करने का कोई प्रस्ताव नहीं है, जिससे बैंकों को इस नयी प्रणाली को सुचारु रूप से संचालित कराने में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है.
भारत में वित्तीय साक्षरता की स्थिति अब भी संतोषजनक नहीं है. दूसरी तरफ, भले ही भारत डिजिटलीकरण और डिजिटल लेन-देन के मामले में विश्व में एक प्रमुख देश बन कर उभरा है, लेकिन डिजिटलीकरण के साथ-साथ देश में डिजिटल या ऑनलाइन धोखाधड़ी की घटनाएं भी तेजी से बढ़ रही हैं. देश में अगर कोई डिजिटल धोखाधड़ी का शिकार होता है, तो बहुत कम मामलों में धोखाधड़ी की राशि की वसूली हो पाती है. इसलिए सबसे महत्वपूर्ण है कि सीबीडीसी या अन्य डिजिटल सुविधाओं को लागू करने के साथ-साथ वित्तीय साक्षरता के अभियान को मुहिम की तरह पूरे देश में लगातार चलाया जाए. दुर्घटना से बचने का सबसे आसान तरीका सावधानी बरतना ही है.