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अहम है वैक्सीन का तीसरा चरण

अभी सभी वैक्सीन डेवलपमेंट स्टेज में है. दुनिया में केवल तीन वैक्सीन को अप्रूवल मिला है. लेकिन, यह इमरजेंसी इस्तेमाल के लिए है.

डॉ ललित कांत, पूर्व प्रमुख, महामारी एवं संक्रामक रोग विभाग, आइसीएमआर

delhi@prabhatkhabar.in

भारत में जब वैक्सीन को मंजूरी प्रदान की जायेगी, तो दुनिया के अन्य देशों में हुए ट्रायल और भारत में हुए ट्रायल के डेटा को मिलाकर देखा जायेगा. डेटा के विश्लेषण और परिणाम के आधार पर ही वैक्सीन को अप्रूवल दिया जायेगा. ब्रिटेन में एक वॉलंटियर को वैक्सीन देने के बाद कुछ परेशानी हुई है. इसके बाद ट्रायल को वहीं रोक दिया गया है. ड्रग्स कंट्रोलर जेनरल ऑफ इंडिया (डीजीसीआइ) ने नोटिस जारी कर सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया से सवाल किया है कि दूसरे देशों में चल रहे ट्रायल के नतीजों के बारे में जानकारी क्यों नहीं दी. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राजेनेका पीएलसी की ओर से इस वैक्सीन का ट्रायल किया जा रहा है.

भारत में इस पर रोक लगायी गयी है, तो कोई नयी बात नहीं है. वैक्सीन ट्रायल में काफी लोगों को शामिल किया जाता है. जब ट्रायल के दौरान किसी को वैक्सीन दी जाती है, तो उसमें कई लोगों को पहले से भी बीमारी होती है. पहले और दूसरे फेज की जब स्टडी की जाती है, तो हर एक व्यक्ति की पहले क्लीनिकल जांच की जाती है. उसे देखा जाता है कि उस व्यक्ति को कहीं पहले से कोई और बीमारी तो नहीं है. लेकिन, जब तीसरे फेज का ट्रायल होता है, तो उसमें सामान्य जनता को चुना जाता है. उसमें पहले से लोगों की जांच नहीं की जाती है.

अगर किसी को कोई बीमारी रही है, उसे दिक्कत हो जाये, तो कह दिया जाता है कि वैक्सीन की वजह से है. इस बीमारी का कारण क्या है, फिर इसकी जांच करनी होती है. इसके लिए डेटा एंड सेफ्टी मॉनिटरिंग बोर्ड (डीएसएमबी) एक जांच समिति होती है. सारी जानकारी और आंकड़े उसे दिये जाते हैं. यह स्वतंत्र निकाय होता है और वैक्सीन बनाने वाले के साथ उनका कोई मतलब नहीं होता है. यह निकाय जांच करता है कि जो दिक्कत आयी है, क्या वह वैक्सीन के कारण है या किसी अन्य वजह से है. इसी जांच के आधार पर आगे की कार्रवाई निर्भर होती है.

हालांकि, कमेटी की इस संदर्भ में बैठक नहीं हुई है. इसमें एक-दो दिन का समय लगता है. इसलिए, जो कुछ भी हुआ, उसकी वजह क्या रही, उसके बारे में स्पष्ट तौर पर कुछ कह पाना थोड़ा मुश्किल है. यह ठीक उसी तरह से है किसी ने पानी पीया और उसे सांप काट लिया. लेकिन जिन्हें मालूम नहीं कि सांप ने काटा है, वे कहेंगे कि पानी पीने की वजह से उसकी मौत हो गयी. पानी में कुछ मिला हुआ था. ये निराधार बातें हैं. इसीलिए, जांच कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद उक्त कारण स्पष्ट हो पायेगा.

खबरों में कहा गया है कि ट्रायल के दौरान एक वॉलंटियर को ट्रांसवर्स मायलाइटिस का पता चला. हालांकि, इसकी पुष्टि अभी नहीं हुई है. यह बीएसएमबी की मीटिंग के बाद ही हो पायेगी. इस वैक्सीन का पहला और दूसरा चरण काफी अच्छा रहा है. मुझे नहीं लगता है कि वैक्सीन की वजह से कोई दिक्कत उत्पन्न हुई होगी.

पहले और दूसरे फेज में हम देखते हैं कि वैक्सीन की कितनी डोज देनी चाहिए और दूसरी चीज देखी जाती है- इम्यूनोजेनेसिटी. साथ ही देखा जाता है कि वैक्सीन इम्यून रिस्पांस बना रही है या नहीं. यदि बना रही है, तो किस प्रकार का रिस्पांस है. देखा जाता है कि इम्यून का रिस्पांस क्या वाकई वायरस को मार देने में सक्षम है या नहीं. न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडीज के बनने के बारे में भी पता लगाया जाता है.

यह दो तरह का एक सेलुलर रिस्पांस और दूसरा ह्यूमरल रिस्पांस होता है. सेलुलर रिस्पांस के अंदर टी सेल्स आदि को देखते हैं. यह लंबे समय की इम्युनिटी के लिए काम करती है. फेज एक और दो में सेफ्टी और इम्युनोजेनेसिटी देखा जाता है. जिन वैक्सीन को अप्रूवल दिया गया है, उसमें सेफ्टी और इम्युनोजेनेसिटी का कोई इश्यू नहीं था. लेकिन, फेज तीन में इसके असर को लंबे समय तक परखा जाता है. जो एंटीबॉडीज बनी वह कितनी देर तक प्रोटेक्शन देती है. सेफ्टी से जुड़े मामले फेज तीन में ज्यादा स्पष्ट हो जाते हैं.

अभी सभी वैक्सीन डेवलपमेंट स्टेज में है. दुनिया में केवल तीन वैक्सीन को अप्रूवल मिला है. लेकिन, यह इमरजेंसी इस्तेमाल के लिए है. इसमें रूस की स्पुतनिक वैक्सीन और दो चीनी वैक्सीन हैं. इन वैक्सीन की फेज तीन के सीमित ट्रायल के बाद अप्रूवल दिया गया. लेकिन, लंबी अवधि में सुरक्षित वैक्सीन का आना अभी बाकी है. सेफ्टी के लिए जरूरी है कि इसके प्रभावों को बारीकी से जांचा जाये. जब तक सकारात्मक परिणाम नहीं निकलते, उसे सामान्य जनता को नहीं दिया जा सकता है. आजकल इमरजेंसी इस्तेमाल के लिए मंजूरी दी जाती है.

बहुत सारी मेडिसिन के लिए भी इजाजत दी जाती है. भारत में सीरम के अलावा बाकी जो तीन-चार कंपनियों की वैक्सीन हैं, वे शुरुआती चरण में हैं. इसमें जायडस, भारत बायोटेक की वैक्सीन हैं, उन्हें फेज दो के ट्रायल का अप्रूवल मिला है. लेकिन, वैक्सीन का सबसे अहम चरण तीसरा ही होता है. कितनी देर तक इम्युनिटी और सेफ्टी रहती है, इसी चरण में देखा जाता है. कुछ रिएक्शन तुरंत होते हैं, कुछ में छह से आठ महीने का समय लगता है.

इसलिए जरूरी है कि वैक्सीन छह महीने या आठ महीने बाद उतनी कारगर है कि नहीं यह भी देखा जाता है. जहां तक अन्य ट्रायल की बात है, तो उन पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा. क्योंकि हर एक की टेक्नोलॉजी और तरीके अलग-अलग होते हैं. अभी एक वैक्सीन के ट्रायल को कुछ समय के लिए रोका गया है, बाकी अन्य पर काम चलता रहेगा. वैक्सीन ट्रायल के दौरान दो बातों को विशेष तौर पर ध्यान में रखा जाता है. पहला सेफ्टी और दूसरा इम्युनोजेनेसिटी. यानी वैक्सीन किसी को भी, किसी भी उम्र में लगे, तो उसके शरीर में किसी भी प्रकार का कोई नुकसान नहीं होना चाहिए. वैक्सीन जिस कारण के लिए लगा रहे हैं, उसमें वायरस के अटैक से बचाव कर सकता है या नहीं, यह भी देखना जरूरी होता है.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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