डिजिटल दौर में बदलती जा रही है फोटोग्राफी की दुनिया
घरों के आयोजनों में वीडियो भी होते हैं और तस्वीरें भी होती हैं, लेकिन बच्चों की या माता-पिता की तस्वीरों की याद बहुत लंबे समय तक बनी रहती है
आज के दौर में वीडियो का बड़ा जोर है, लेकिन इससे फोटोग्राफी की प्रासंगिकता कम नहीं हो जाती. जैसे सोशल मीडिया की एक दुनिया है, वैसे ही फोटोग्राफी का भी अस्तित्व है. यह सच है कि वीडियो या रील्स को लेकर आकर्षण बहुत है. वहां कुछ मिनटों से लेकर कुछ घंटों के वीडियो में तस्वीरें आती हैं और चली जाती हैं, और उसका एक असर होता है. लेकिन, स्टिल फोटोग्राफ एक खास क्षण को दर्ज करता है. वह देखनेवाले को बाध्य करता है कि वह उसे अच्छी तरह से देखे.
उसकी जो छवि अंकित होती है वह बहुत लंबे समय तक बनी रहती है. उदाहरण के लिए, घरों के आयोजनों में वीडियो भी होते हैं और तस्वीरें भी होती हैं, लेकिन बच्चों की या माता-पिता की तस्वीरों की याद बहुत लंबे समय तक बनी रहती है. हमें वीडियो से ज्यादा तस्वीरें याद आती हैं क्योंकि उनका याददाश्त के साथ रिश्ता बहुत मजबूत होता है. फोटोग्राफी अब भी प्रासंगिक है, लेकिन डिजिटल दौर में उसके प्रयोग का तरीका बहुत बदल गया है. इसका पेशा भी काफी बदल गया है और जो लोग इसे हॉबी की तरह लेते थे, उनके लिए भी परिस्थितियां बहुत बदल गयी हैं. एआइ के आने से फोटोग्राफी में और भी बड़े बदलाव होंगे.
ऐसे माहौल में पारंपरिक फोटोग्राफर असुरक्षित महसूस कर रहे हैं, क्योंकि इस क्षेत्र में अवसर कम होते जा रहे हैं. दिल्ली के चांदनी चौक इलाके में पहले कैमरा, लाइट आदि बेचने वाली कई दुकानें होती थीं. वहां के एक मशहूर व्यवसायी मदन जी ने कुछ वर्ष पहले कहा था कि उनकी दुकान अब वेडिंग फोटोग्राफी पर टिकी है और उसके बंद होने पर यह बाजार भी बंद हो जायेगा. यानी, पहले जिन दुकानों से पेशेवर और शौकिया फोटोग्राफर सामान लेते थे, अब वहां केवल वेडिंग फोटोग्राफर आते हैं.
ये वेडिंग फोटोग्राफर एक ही डीएसएलआर कैमरे से तस्वीरें भी खींचते हैं, और वीडियो भी बनाते हैं. फोटो जर्नलिज्म में भी इस सदी की शुरुआत में ऐसा ही बदलाव आया. फोटोग्राफरों से एक ही कैमरे से स्टिल और वीडियो दोनों लेने की अपेक्षा होने लगी. यह कहना सही होगा कि वीडियो फोटोग्राफरों को विस्थापित तो नहीं कर रहा, लेकिन उन्हें वीडियो से जुड़ने के लिए बाध्य अवश्य कर रहा है. हालांकि, मुझ जैसे पुराने फोटोग्राफर से वीडियो का काम नहीं हो पाता, मैं स्टिल की ओर मुड़ जाता हूं.
ऐसे में मेरी जैसी स्थिति वाले फोटोग्राफरों को थोड़ा असुरक्षित जरूर लगेगा, क्योंकि यदि कोई असाइनमेंट आता है, तो उसमें उस फोटोग्राफर को मौका मिलने की संभावना ज्यादा होगी जो वीडियो भी कर सकेगा. अस्सी के दशक में फोटोग्राफी एक बहुत ही विशिष्ट पेशा होता था. तब फिल्में होती थीं, जो महंगी होती थीं, उन्हें डार्क रूम में प्रिंट करना होता था. कैमरा भी महंगा होता था, जो या तो बहुत अमीर लोग खरीद सकते थे, या लोग कोई जुगाड़ लगाकर किसी विदेशी से या चांदनी चौक जैसे बाजारों से खरीदते थे, या वह स्मगल होकर आता था.
उदारीकरण और डिजिटल युग में फोटोग्राफी का लोकतंत्रीकरण हो गया, जो मोबाइल कैमरा आने के बाद और बढ़ गया. इससे बहुत सारे लोगों में फोटोग्राफी को लेकर दिलचस्पी पैदा हुई. दुनिया के हर इंसान में संगीत, पेंटिंग, एक्टिंग या किसी भी कला को सीखने की इच्छा होती है. मगर वह बिना योग्यता के केवल ट्रेनिंग से सीखना संभव नहीं होता. मगर फोटोग्राफी ने हर क्रिएटिव व्यक्ति को एक राह दिखाई. भारत में इस सदी की शुरुआत के बाद से बहुत सारे फोटोग्राफी स्कूल खुले.
जामिया यूनिवर्सिटी, अरविंदो इंस्टिट्यूट जैसे संस्थानों ने फोटोग्राफी पर कोर्स शुरू किये, जो पहले नहीं थे. वहां ऐसे लोगों ने फोटोग्राफी की पढ़ाई शुरू की, जिन्हें लगा कि यह कला से जुड़ने का सबसे आसान जरिया है, जिसे पेशा भी बनाया जा सकता है. लेकिन, वास्तविकता यह है कि फोटोग्राफी का कोर्स कर उससे कोई रोजगार हासिल करना बहुत मुश्किल हो गया है. अखबारों, पत्रिकाओं में फोटोग्राफरों की जगह कम होती जा रही है. कई संस्थानों ने अपने पूरे विभाग ही बंद कर दिये हैं.
ऐसे में, फोटोग्राफी स्कूलों में अभी न्यूज या डॉक्यूमेंट्री की जगह एडवरटाइजिंग, वेडिंग या इवेंट जैसी कॉमर्शियल फोटोग्राफी पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है. लेकिन, एआइ के आने के बाद बहुत से कॉमर्शियल फोटोग्राफरों को भी असुरक्षा महसूस होने लगी है. उदाहरण के लिए, यदि किसी को स्वास्थ्य से जुड़े किसी विषय पर कोई कैंपेन बनाना है, तो आपको शूट करने की जरूरत नहीं है, आप उसे एआइ से बना सकते हैं. पहले जिन तस्वीरों को खींचने में बहुत मेहनत लगती थी, और फोटोग्राफर उसके काफी पैसे लेते थे, अब वह काम एआइ आसानी से कर दे रहा है. (ये लेखक के निजी विचार हैं.) (बातचीत पर आधारित)