कोरोना में फंसी खेल की दुनिया

चाहे कोई भी खेल हो, खिलाड़ियों का फिटनेस का स्तर गिरा है. खिलाड़ियों को जब निरंतर विश्व स्तरीय प्रतिद्वंद्विता न मिले, तो उनकी तैयारियों पर भी नकारात्मक असर पड़ता है.

By संपादकीय | August 26, 2020 3:32 AM
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प्रवीण सिन्हा, वरिष्ठ खेल पत्रकार

peekey66@gmail.com

कोरोना वैश्विक महामारी कल्पना से परे तकलीफदेह और मारक साबित हुई है. इसके बावजूद तमाम सावधानियों के साथ जीवन धीरे-धीरे पटरी पर लौटने की दिशा में अग्रसर है़ विश्व खेल जगत की कहानी भी कुछ अलग नहीं है..

विभिन्न खेल व खेल स्पर्धाएं भी कमोबेश उसी ढर्रे पर मैदानों पर लौटती दिख रही हैं, लेकिन यह कल्पना से परे है कि हजारों खेलप्रेमियों की हौसला अफजाई और तालियों की गड़गड़ाहट से गुंजायमान जिन स्टेडियमों में उसैन बोल्ट, कार्ल लुईस और मेरियन जोंस जैसे स्टार एथलीट चंद लम्हे में चमत्कारिक प्रदर्शन कर जाते थे या पेले, मैराडोना, रोनाल्डो और लियोनेल मैसी के जादुई प्रदर्शन पर पूरा स्टेडियम झूम उठता था या फिर सुनील गावस्कर, सचिन तेंडुलकर, विव रिचर्ड्स, क्रिस गेल और महेंद्र सिंह धौनी जैसे तमाम स्टार क्रिकेटरों के चौकों-छक्कों पर एक लाख से भी अधिक दर्शकों से भरे स्टेडियमों की गूंज दूर-दूर तक सुनाई देती थी, वहां अब सन्नाटा पसरा होगा.

किसी खेलप्रेमी ने ऐसा कभी नहीं सोचा होगा. खेलप्रेमी ही क्यों, खिलाड़ियों ने भी कभी नहीं सोचा होगा कि उनके ऐतिहासिक प्रदर्शनों के गवाह स्टेडियम में स्टैंड खाली होंगे, कुर्सियां खाली होंगी

बहरहाल, इस दौरान यह देखना सुखद है कि `नेवर गिव अप’ के मूलमंत्र के साथ खिलाड़ी और खेल जगत एक बार फिर फर्राटे के साथ दौड़ने की प्रक्रिया शुरू कर चुके हैं. उनके ऐतिहासिक प्रदर्शनों के गगनभेदी जश्न भले ही नहीं मनाये जा रहे होंगे, लेकिन खाली पड़े स्टेडियमों में खेल अपनी गति पकड़ने को निकल पड़ा है. नियति की इस मार को मात देने के लिए विश्व खेल जगत कृतसंकल्प है. इस क्रम में अलग-अलग देशों में क्रिकेट, फुटबॉल, टेनिस, गोल्फ और मोटर रेस की स्पर्धाएं शुरू हो चुकी हैं.

खेलप्रेमी टीवी के जरिये खेलों के लुत्फ उठा रहे हैं. हालांकि भारत में अब तक कोई स्पर्धा शुरू नहीं हुई है, लेकिन करोड़ों खेलप्रेमियों का इंतजार बस अब समाप्त होने को है. देश में एक त्योहार का रूप ले चुका आइपीएल 19 सितंबर से संयुक्त अरब अमीरात में शुरू होने जा रहा है. पूरी उम्मीद है कि यह आयोजन देश में खेल गतिविधियों को एक राह दिखाने में सफल साबित होगा. इस बीच, यह सच है कि पिछले करीबन छह माह से टोक्यो ओलिंपिक समेत तमाम स्पर्धाएं या तो रद्द या फिर स्थगित कर दी गयीं, जिससे खेल जगत ठहर-सा गया.

इसके कई दुष्परिणाम सामने आ चुके हैं और आनेवाले कई वर्षों तक खेल जगत इससे पीड़ित रहेगा. खिलाड़ियों पर इस कोरोना महामारी की मार काफी ज्यादा पड़ी है. खिलाड़ियों को प्रतिस्पर्धाएं न मिलने के कारण उनके कौशल प्रशिक्षण से लेकर मानसिक तैयारियां और आर्थिक स्थिति बुरी तरह से प्रभावित हुई हैं. उदाहरण के तौर पर, हाल ही में संपन्न हुई प्रतिष्ठित चैंपियंस लीग फुटबॉल पर गौर करें, तो रोनाल्डो और मैसी सहित तमाम शीर्षस्थ फुटबॉलरों ने इसमें हिस्सा लिया, लेकिन टीवी पर एक बार भी ऐसा मौका देखने को नहीं मिला, जो दर्शकों को रोमांचित कर सके.

सामान्य स्थिति में हजारों मौके ऐसे आये हैं, जब दर्शकों की तालियों की गड़गड़ाहट, हौसला अफजाई करनेवाले गानों और लाल, पीले व नीले सागर में तब्दील हो चुके स्टेडियमों के मैक्सिकन वेव के बीच खिलाड़ियों के करिश्माई प्रदर्शन देखने को मिले हैं, लेकिन अब यूरोप में फुटबॉल मुकाबलों में न तो जुनूनी दर्शकों की हंगामाखेज मौजूदगी है और न ही खिलाड़ियों के सामने प्रेरणा. यही वजह है कि अब न तो मैदान पर प्रतिद्वंद्विता चरम पर दिखती है, न ही उत्साह से लबरेज माहौल. चाहे कोई भी खेल हो, खिलाड़ियों के फिटनेस का स्तर गिरा है. खिलाड़ियों को जब निरंतर विश्व स्तरीय प्रतिद्वंद्विता न मिले, तो उनकी तैयारियों पर भी नकारात्मक असर पड़ता है. आप ओलिंपिक खेलों या फिर किसी भी खेल के विश्व कप का ध्यान करें, तो आपको हर बार कई नयी प्रतिभाएं उभरती दिखेंगी और उनके हैरतअंगेज कारनामे आपको रोमांचित करते नजर आयेंगे, लेकिन अब वैसा माहौल नजर नहीं आ रहा है.

यही नहीं, दर्शकों की अनुपस्थिति के बीच खेल जगत की आर्थिक स्थिति में भी गिरावट आ गयी है. स्टेडियम में प्रवेश पाने की गेट मनी तो शून्य हो ही गयी है, मैदान के चारों ओर होर्डिंग्स व विज्ञापन प्लेट्स भी गायब हो रहे हैं. आयोजकों को टिकटों व विज्ञापनदाताओं से कमाई बेहद कम या समाप्त होने के अलावा प्रायोजकों से भी आशा के अनुरूप मदद नहीं मिल पा रही है. इस स्थिति में तमाम खेलों में अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, रूस और क्रिकेट में कुछ हद तक भारत, इंग्लैंड व ऑस्ट्रेलिया को छोड़ अन्य देशों व खिलाड़ियों को गंभीर आर्थिक संकट से गुजरना होगा.

अगले साल तक के लिए स्थगित कर दिये गये टोक्यो ओलिंपिक के आयोजकों की राह भी आसान साबित नहीं होगी. यह एक चिंता की स्थिति है, क्योंकि खिलाड़ियों को खेल जगत ने ही शोहरत के अलावा जबर्दस्त कमाई के जरिये प्रदान किये हैं. अब खेल जगत को ही खिलाड़ियों से अलग-थलग कर दिया जायेगा, तो संकट की स्थिति को टालना बहुत मुश्किल हो जायेगा. इसलिए बदलते समय के साथ खेल से संबंधित गतिविधियों को पटरी पर लाने के लिए बदलती खेल संस्कृति, शैली, माहौल और शिथिल पड़ते रोमांच को वापस लाना ही एकमात्र उपाय होगा. यह सब कोरोना के साये के छंटने पर निर्भर करेगा.

Post by : Pritish Sahay

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