अकुशल श्रमिकों के लिए भी हों मौके

शहरों में लोगों को आमदनी के लाभ के साथ-साथ लगातार संकरी सड़कों, अशुद्ध एवं अपर्याप्त जलापूर्ति और वायु प्रदूषण जैसी अनेक समस्याओं से भी जूझना होगा.

By संपादकीय | September 4, 2020 2:02 AM
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डॉ इरोल डिसूजा, डायरेक्टर, आइआइएम, अहमदाबाद

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शहरों में आनेवाले ग्रामीण प्रवासी अक्सर खराब रिहायशी इलाकों में, अमूमन मलिन बस्तियों में रहते हैं, जहां जीवनयापन की तमाम दुश्वारियां होती हैं. ऐसी जगहों पर मूलभूत सुविधाओं से जुड़े सार्वजनिक ढांचे का बड़ा अभाव होता है. खराब आवास के लिए भी उन्हें अपनी आमदनी का बड़ा हिस्सा व्यय करना होता है. उन्हें मिलनेवाली तनख्वाह आवासीय खर्च को पूरा करने के लिए अपर्याप्त होती है, इससे अन्य खर्चों और बचत के लिए गुंजाइश कम हो जाती है.

इसमें आश्चर्य नहीं कि गांवों से पलायन कर शहरों में पहुंचे अकुशल लोग इतनी कमाई नहीं कर पाते कि उनका जीवन स्तर ऊपर उठ सके. अच्छी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य तक पहुंच ही उनके परिवार की पीढ़ीगत तरक्की का अहम जरिया है. अनुभव बताता है कि ऐसे लोग खराब आवासीय इलाकों या मलिन बस्तियों में इसलिए रहना स्वीकार करते हैं, ताकि वे अपने बच्चों की शिक्षा के लिए कुछ बचत कर सकें. जीवन से जुड़ी मूलभूत सुविधाओं में निवेश करने की सरकार की अक्षमता, इन परिवारों की मुश्किलों का कारण बनती है. ऐसे परिवारों के बच्चे स्कूलों में रहने की बजाय अक्सर भीख मांगते हुए दिखते हैं या गलियों और सड़कों पर सामान बेचते नजर आते हैं, कई बच्चे तो आपराधिक कार्यों में भी संलिप्त हो जाते हैं.

वतर्मान में, िवश्व की आधी आबादी शहरों की निवासी हो चुकी है और अगले कुछ दशकों में अनेक विकसित देशों में पूर्ण रूप से शहरीकरण का विस्तार हो जायेगा. दुनियाभर में वर्तमान में हर चौथा व्यक्ति मलिन बस्तियों में रहता है. विकासशील देशों में तो यह अनुपात और भी अधिक है- ताज्जुब की बात है कि भारत में यह 24 प्रतिशत है. शहरीकरण की तेज प्रक्रिया की वजह से अनेक विकासशील देशों में जल आपूर्ति, जल निकासी, सार्वजनिक स्वास्थ्य पर बोझ बढ़ रहा है.

आने वाले वर्षों में ऊर्जा खपत से कॉर्बन उत्सर्जन बढ़ेगा और इससे पर्यावरण भी प्रभावित होगा. देश में शहरी आबादी को वायु प्रदूषण की वजह से जहरीली हवा में सांस लेना होगा और साथ ही वायु प्रदूषण से मौतें भी होंगी. अक्सर, शहरों में मूलभूत सुविधाओं से जुड़ी समस्याओं के लिए गरीब आबादी को ही जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है. अक्सर उन्हें गंदगी और अव्यवस्था के लिए दोषी कहा जाता है, जबकि सार्वजनिक सेवाओं को उपलब्ध कराने में शहरी प्राधिकरण संघर्ष कर रहे होते हैं. विभिन्न स्तरों पर शहरों को रहने योग्य तथा अपने नागरिकों का भविष्य बेहतर बनाने की कोशिशें होती रहती हैं.

आवासीय योजनाओं के लिए सार्वजनिक जमीनों को खाली कराने और योजनाबद्ध तरीके से उसके अधिग्रहण के बजाय अमूमन विध्वंस और लोगों के विस्थापन को समाधान के तौर पर देखा जाता है. पाइप जलापूर्ति से गंदी बस्तियों में रहने वाले लोगों को दूषित पानी की समस्या से छुटकारा मिल सकता है, साथ ही अगर ऐसे स्थानों पर जलनिकासी की उचित व्यवस्था हो, तो घरों की मरम्मत कराने की दिक्कतों और जल प्रदूषण से होनेवाली बीमारियों से भी निजात मिल सकती है.

स्ट्रीट लाइट होने से ऐसे जगहों पर होनेवाले अपराधों में कमी आती है. अगर आम लोगों के हितों को ध्यान रखकर उक्त बातों पर काम किया जाये, साथ ही समय और धन की समस्या के समाधान के लिए ऐसे समुदायों की सहमति से परियोजना की कुल लागत में उनका हिस्सा तय किया जाये, तो इन सुविधाओं के लिए उन्हें अन्य विकल्पों को आजमाने की जहमत नहीं उठानी पड़ेगी.

शहरी क्षेत्रों का भविष्य कुशल लोगों की आय में निरंतर वृद्धि पर टिका है. अनस्ट्रक्चर्ड फिजिकल एक्टिविटी वाले कार्यों का ऑटोमेशन नहीं हो सकता. ऐसी दशा में इन क्षेत्र में रोजगार की मांग बनी रहेगी, लेकिन जीवनयापन के लिए इन क्षेत्रों में काम करनेवालों को पर्याप्त तनख्वाह नहीं मिल सकेगी. खास बात है कि पलायन कर शहरी क्षेत्रों में पहुंचनेवाले ज्यादातर प्रवासी इसी कार्यक्षेत्र के दायरे में होंगे.

शहरों की कामयाबी इस बात निर्भर करेगी कि वे अनेक कार्यों की परिस्थितियों के लिए वे कैसे समावेशी समाधान निकालते हैं और कैसे अर्धकुशल लोगों के लिए भी रहने की व्यवस्था कर पाते हैं, ताकि शहरों व वहां के निवासियों की स्थिति में सुधार हो सके. शहरों में भीड़ लगातार बढ़ती जायेगी और इससे लाभ तथा शहरी सघनता के दुष्प्रभाव दोनों होंगे. शहरों में लोगों को आमदनी के लाभ के साथ-साथ लगातार संकरी सड़कों, अशुद्ध एवं अपर्याप्त जलापूर्ति और वायु प्रदूषण जैसी अनेक समस्याओं से भी जूझना होगा.

मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने, नियमितीकरण और आबादी के सभी वर्गों की सुविधाओं पर केंद्रित राजनीति उनकी बेहतरी के लिए अहम होगी. अन्यथा, इस बात की अधिक संभावना है कि शहर जिस तरह से बढ़ रहे हैं, उससे आगे के हालात बहुत ही चिंताजनक और खतरनाक होंगे. संस्थानिक तौर पर कामगारों की समस्याओं को नजरअंदाज किये जाने से उनकी दिक्कतें लगातार बढ़ेंगी, इससे वे अवसरवादी तरीके से भीड़ का हिस्सा बनेंगे.

नीतियों में टैरिफ और विनियामक बाधाओं को दूर करने, लेन-देन की लागत को कम करने तथा कारोबारी सुगमता को बढ़ावा देने पर जोर रहा है. इससे आगे व्यापार विकास और आर्थिक वृद्धि होगी, जिससे इसका विस्तार शहरों के निकटवर्ती क्षेत्रों में भी होगा. अधिकांश लोग, जो अनस्ट्रक्चर्ड फिजिकल एक्टिविटी से जुड़ी नौकरियों में होंगे, उनका भविष्य स्थायी तौर पर उनकी धन तथा शैक्षणिक निवेश तक बेहतर पहुंच पर टिका होगा.

यह उच्च कौशल वाले कार्यों में उनकी भागीदारी के लिए अहम होगा. आनेवाले दशकों में यह सबसे महत्वपूर्ण होने जा रहा है. इन प्रयासों के बगैर उस प्रश्न का समाधान नहीं हो सकता, जिसका हमने शुरुआत में जिक्र किया था- ग्रामीण इलाकों से पलायन कर शहरों में आनेवालों के लिए शहरी प्रवास लाभदायक नहीं होगा, बजाय इसके लिए उन्हें शहरों में गुमनामी व क्रयशक्ति का एक अस्थायी स्रोत मिलेगा. यह बेहतर मौके और जीवनयापन की उनकी खोज का स्थायी समाधान नहीं होगा.(समाप्त)

इस लेख का पहला भाग तीन सितंबर को प्रकाशित हुआ था.

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