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शहरों में कम हों गाड़ियां

आज भारत में क्या छोटे और क्या बड़े, हर शहर में लोग सड़कों पर गाड़ियों की भरमार से त्रस्त हैं. ऐसे में यदि शहरी आबादी बढ़ती है तो गाड़ियों की संख्या और बढ़ेगी.

अमीर देशों की छवि में चमचमाती गाड़ियां एक जरूरी हिस्सा समझी जाती हैं. यह छवि गलत भी नहीं है. अमीरी और कार एक-दूसरे का पर्याय बन चुकी हैं. दुनिया के हर अमीर देश में गाड़ियां जीवन का हिस्सा बन चुकी हैं. लेकिन, नीति आयोग के पूर्व सीइओ और जी 20 के शेरपा अमिताभ कांत ने कहा है कि यह एक गलत चलन है. उन्होंने शहरीकरण पर एक सम्मेलन के दौरान कहा कि शहरों को कारों के लिए नहीं, बल्कि शहरियों के लिए बनाया जाना चाहिए.

उन्होंने कहा कि अगले पांच से छह दशक में भारत में शहरीकरण की रफ्तार बढ़ेगी और 50 करोड़ लोग इससे जुड़ेंगे. ऐसे में जब नये शहर बसाये जाएं या शहरों का विस्तार हो, तो वही गलती ना दोहरायी जाए जो अमेरिका ने की. दरअसल, गाड़ियों का प्रदूषण से गहरा नाता होता है. इसलिए भारत में इसकी रोकथाम के प्रयास होते हैं. वाहनों का प्रदूषण जांच कराना अनिवार्य हो चुका है.

इसी प्रकार, सीएनजी और इलेक्ट्रिक वाहनों का भी उपयोग बढ़ रहा है. मगर, समस्या का असल समाधान है वाहनों की संख्या पर लगाम. अमिताभ कांत ने सम्मेलन में बताया कि अमेरिका में प्रति 1,000 व्यक्ति के लिए 1,100 कार और यूरोप में प्रति 1,000 व्यक्ति के लिए 900 गाड़ियां हैं. इनके मुकाबले, भारत में प्रति 1,000 व्यक्ति के लिए केवल 22 गाड़ियां हैं.

ऐसी स्थिति में दुनिया में कार्बन प्रदूषण फैलाने के लिए भारत के मुकाबले अमेरिका और यूरोप के अमीर देश ज्यादा जिम्मेदार हैं. लेकिन, एक जिम्मेदार देश होने के नाते भारत को अमेरिका और यूरोप पर उंगली उठाने या उनकी नकल करने के बजाय अपना अलग रास्ता बनाना चाहिए. आज भारत में क्या छोटे और क्या बड़े, हर शहर में लोग सड़कों पर गाड़ियों की भरमार से त्रस्त हैं. ऐसे में यदि शहरी आबादी बढ़ती है तो गाड़ियों की संख्या और बढ़ेगी. यह सिलसिला चलता रहेगा.

इस पर लगाम तभी लग सकती है, जब विकल्प उपलब्ध कराये जाएं. इस दिशा में सबसे कारगर उपाय मेट्रो और बस जैसे जन परिवहन के साधन होते हैं. अमिताभ कांत ने अपने संबोधन में इसी व्यवस्था की परिकल्पना की, जिसमें शहरों को इस तरह से बसाया जाए कि लोग पैदल काम के लिए पहुंच सकें.

या, कम-से-कम मेट्रो ट्रेन या बसों से काम के लिए जा सकें. देश की राजधानी दिल्ली में मेट्रो की कामयाबी ने यह साबित भी कर दिया है. वर्ष 2021 में मेट्रो की वजह से दिल्ली की सड़कों पर हर दिन पांच लाख से ज्यादा वाहन कम हुए. सड़कों पर वाहनों की संख्या को कम करने के लिए सबसे पहले जन परिवहन के साधनों को सुलभ बनाने पर ध्यान दिया जाना चाहिए.

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