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यह कारोबार समर्थक बजट है

संगठित क्षेत्र के लिए तो इस बजट में बहुत कुछ है, लेकिन असंगठित की अनदेखी की गयी है. धनराशि के आवंटन को देखें, तो बहुत सारी चीजें, जो गरीबों और किसानों के हक की थीं, उनमें कटौती की गयी है.

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इस बार का आम बजट पूरी तरह से चुनावी बजट है. इसके पहले हिस्से में तो सब कुछ अच्छा-अच्छा बता दिया गया कि हम किस तबके के लिए क्या-क्या करेंगे. अब सवाल उठता है किसको क्या मिला. धनराशि के आवंटन को देखें, तो बहुत सारी चीजें, जो गरीबों और किसानों के हक की थीं, उनमें कटौती की गयी है, चाहे वो फूड सब्सिडी, यूरिया सब्सिडी हो या ग्रामीण रोजगार गारंटी प्रोग्राम. स्वास्थ्य पर भी खास खर्च नहीं किया गया है. शिक्षा पर थोड़ा किया है, लेकिन जितना होना चाहिए, उतना नहीं. ये पूरा कारोबार समर्थक बजट है.

ओवरऑल बजट में व्यय या लागत का असर होता है. चूंकि आय की कमी है, तो इससे डिमांड नहीं बढ़ेगी. समग्र व्यय कम होने से ग्रोथ को प्रोत्साहन नहीं मिलेगा. हालांकि अभी हमें ग्रोथ रेट नहीं देखना चाहिए, देखना चाहिए लेवल ऑफ जीडीपी कितना है. पिछले तीन साल में सिर्फ पौने तीन प्रतिशत की ग्रोथ हुई है. यानी अभी हम 2019 के पहले वाले ट्रेंड पर नहीं आ पाये हैं. अगर कोविड महामारी नहीं आती, तो अर्थव्यवस्था आठ से नौ प्रतिशत आगे बढ़ी होती, उसको पाने के लिए हमें ग्रोथ रेट को अभी बढ़ाना चाहिए.

टैक्स में जो छूट दी गयी है, उसका सिर्फ अमीर लोगों को लाभ होगा. टैक्स में छूट को पांच लाख, सात लाख, दस लाख सालाना आय वालों के लिए फायदेमंद बताया जा रहा है, लेकिन इस आय वर्ग के लोग अप्रत्यक्ष कर ज्यादा देते हैं और प्रत्यक्ष कर कम. इसलिए अगर इनडायरेक्ट टैक्स कम न हो और डायरेक्ट टैक्स में थोड़ी बहुत कटौती हो जाये, तो इस आय वर्ग के लोगों का बहुत मामूली एकाध फीसदी की ही फायदा होता है, लेकिन महंगाई से उससे ज्यादा नुकसान हो रहा है, तो इसलिए मिडिल क्लास के लिए भी इस बजट में कोई फायदा नहीं दिख रहा है.

इस बजट में फूड सब्सिडी कम कर दी सरकार ने. पहले अन्न योजना में पांच किलो और फूड सिक्योरिटी एक्ट में पांच किलो यानी दस किलो मिलता था, उसे जोड़कर सिर्फ पांच किलो कर दिया गया है. आम आदमी को 13 किलो प्रति व्यक्ति प्रतिमाह अनाज चाहिए होता है. पहले वह तीन किलो बाहर से खरीदता था, अब उसे आठ किलो अनाज बाहर से खरीदना होगा. अब चूंकि गेहूं और चावल के दाम बढ़ गये हैं, तो उसका पांच से छह सौ रुपये प्रतिमाह खर्च बढ़ जायेगा.

इससे परिवार की गरीबी और बढ़ जायेगी. पीएम आवास योजना में पिछले साल 77 हजार करोड़ रुपया दिया गया था, अब वो 79 हजार करोड़ किया गया है, यानी बात करीब-करीब वहीं के वहीं है. प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना में पिछली बार 13 हजार करोड़ रुपये आवंटित किया गया था, वो आठ हजार खर्च हुआ, अब उसको घटाकर 10,700 करोड़ कर दिया गया है. इसलिए कह सकते हैं कि किसानों और ग्रामीण लोगों के लिए बजट में कुछ खास नहीं किया गया है. ग्रामीण रोजगार गारंटी स्कीम के खर्च में कटौती कर दी गयी है.

कहने का तो बहुत सारी चीजें हैं बजट में, लेकिन उसकी सफलता आवंटन पर निर्भर करती है, जैसे पोषण स्कीम में 12,800 करोड़ खर्च हुआ, तो उसे घटाकर 11,600 करोड़ कर दिया गया. ऐसे ही यूरिया की स्कीम में सब्सिडी एक लाख, 54 हजार करोड़ थी, उसे घटाकर एक लाख, 31 हजार करोड़ कर दिया है. इसलिए गरीबों और किसानों को इस बजट से ऑल ओवर बहुत ज्यादा फायदा नहीं होगा. संगठित क्षेत्र के लिए तो इस बजट में बहुत कुछ है, लेकिन असंगठित की अनदेखी की गयी है. यह बजट पूरी तरह से आगामी चुनाव को नजर में रख कर पेश किया गया है कि बहुत सारी चीजों की घोषणा कर दो, होंगी या नहीं होंगी, वो कौन देखता है बाद में.

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