यह रणबीर की नग्नता है, कला नहीं
अगर वाकई दर्शकों पर कुछ असर डालना था, तो किसी फिल्म में ऐसा अभिनय करते, जो हमेशा याद रह जाता. यह क्या हुआ कि कपड़े उतार दिये और अपने को कैसानोवा समझने लगे!
रणबीर सिंह बहुत दिनों से चर्चा में नहीं थे, पर अब एक अमरीकी पत्रिका के लिए नग्न फोटो सेशन करा कर सुर्खियों में हैं. हम मनोरंजन की दुनिया में हम औरतों के अधिक से अधिक वस्त्रविहीन फोटो देखते आये थे. एक समय ऐसा भी था कि कोई नयी हीरोइन जब तक बिकिनी न पहने और पर्दे पर चुंबन के दृश्य न दे, तब तक उसे सफल नहीं माना जाता था, लेकिन अब पुरुषों को भी कपड़े उतारना ही सफलता का मंत्र लगने लगा है.
इन दिनों मर्दों की सैक्सुआलिटी, उनका मर्दानापन नये सिरे से चर्चा में है. यों कहने को स्त्री विचार इससे नफरत करता है, लेकिन फरहा खान जैसी स्त्री फिल्म निर्देशक ने अपनी एक फिल्म में शाहरुख खान की बिना कमीज के दृश्य को शाहरुख की महिला प्रशंसकों के लिए उपहार कहा था. बहुत पहले ‘बैंडिट क्वीन’ फिल्म में शेखर कपूर ने एक अभिनेत्री को नग्न दिखा कर उसे बलात्कार के खिलाफ स्त्रीवादी अधिकारों से जोड़ दिया था.
ऐसा नहीं है कि इस तरह की चालाकियों को लोग समझते नहीं हैं. रणबीर सिंह ने भी यह सब एक स्ट्रेटेजी के तहत ही किया, मगर जोड़ दिया गया इसे कला से. सवाल यह है कि क्या सड़क पर हम इसी तरह घूमना चाहते हैं? क्या महिलाएं भी इसी तरह घूमने लगें? क्या पॉर्न को मुख्यधारा की मीडिया में दिखाया जाने लगे? यह और कुछ नहीं, सेक्स के नाम पर चटखारे लेने और अपने उत्पाद (फोटो, नाटक, फिल्म आदि) को बेचने का बहुत आसान तरीका माना जाता है.
बहुत समय पहले प्रकाशित फैंटेसी पत्रिका के एक संपादक ने अपने इंटरव्यू में कहा था कि वे अपनी पत्रिका कभी अपने घर नहीं ले जाते, क्योंकि वे नहीं चाहते हैं कि उनके बच्चे इसे देखें. है न दिलचस्प! उन्हें अपने बच्चों के लिए वे संस्कार चाहिए, जिन्हें वे ठीक मानते हैं, दूसरों के बच्चों पर चाहे जो असर पड़े, उन्हें इससे क्या! उनका तो बस माल बिकना चाहिए. वैसे भी अपने देश में पॉर्न देखने वाले सबसे ज्यादा हैं.
रणबीर कपूर हों या कोई और या कोई स्त्री, नग्नता में ऐसी कौन-सी बड़ी बात है! मनुष्य वस्त्रविहीन ही पैदा होता है. कपड़ों के भीतर हम सब नंगे ही होते हैं, लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि हम कपड़े उतार कर सार्वजनिक स्थानों में जाने लगें. यही बात सेक्स को लेकर भी है. इसके बारे में हम सब जानते हैं, लेकिन अपने बच्चों को छुटपन से ही इस बारे में नहीं बताना चाहते, क्योंकि हर ज्ञान की एक उम्र होती है. समय से पहले दिया गया ज्ञान कई बार सर्वनाश भी करता है.
जिस पश्चिम को हम सिर पर बैठाते हैं, वहां की खुले समाज की बातें करते हैं, वहां आज बचपन और किशोरावस्था में माता-पिता बनने वालों की संख्या बहुत ज्यादा है. जिन्होंने अभी आंखें भी नहीं खोली हैं, वे शारीरिक संबंध बनाते हैं और बहुत कम उम्र में माता-पिता बन जाते हैं. क्या यह कोई आदर्श स्थिति है? क्या हमें भी ऐसा ही समाज चाहिए? फिर तो बाल विवाह और कम उम्र में मातृत्व के खतरों की बातें करना भी बेमानी है.
वैसे भी रणबीर सिंह ने जो कुछ किया है, उसमें नया भी क्या है? मर्द तो अपनी मर्दानगी पर हमेशा से इतराते रहे हैं. अरे भाई, अगर वाकई दर्शकों पर कुछ असर डालना था, तो किसी फिल्म में ऐसा अभिनय करते, जो हमेशा याद रह जाता. यह क्या हुआ कि कपड़े उतार दिये और अपने को कैसानोवा समझने लगे!
वे शायद भूल गये कि ममता कुलकर्णी ने भी अंग्रेजी की एक फिल्मी पत्रिका के लिए टॉपलेस कवर छपवाया था और उनका करियर खत्म हो गया था. आप पर मुकदमा हो गया, तो आप और आपके समर्थक रोने लगे, क्यों भला? फोटो शूट कराने से पहले यह सब सोचना चाहिए था. जो बोते हो, वह काटना ही पड़ता है. न्यूडिटी सुंदर और कलात्मक हो सकती है, अगर उसमें पैसे का खेल न हो, लेकिन रणबीर सिंह की मंशा पैसे कमाने और चर्चित होने की ही है, कपड़े उतारने से ऐसा हो, तो भी चलेगा.
विद्या बालन ने रणवीर के नग्न चित्रों के बारे में जो कमेंट किया है, वह शर्मनाक है. उन्होंने कहा है कि हमें भी कुछ आंखें सेंक लेने दो. जरा इसे उलट दीजिए और सोचिए कि किसी महिला अभिनेत्री के बारे में किसी पुरुष अभिनेता ने ऐसा कमेंट किया होता, तो क्या होता? सारे महिला आयोग सक्रिय हो जाते, सारे स्त्रीवादी हाय-हाय करते और मीडिया में रात-दिन लानतें भेजी जातीं.
अलीक पद्मसी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि उनके दोस्त का लड़का आठ साल में पॉर्न देखता है और उन्हें इसमें कुछ भी बुरा नहीं लगता. पिछले दिनों एक मां के बारे में खबर आयी थी कि वह अपने बेटों के साथ बैठ कर एडल्ट फिल्में देखती है, मानो यह कोई गौरव की बात हो. लज्जा जैसी बात को इन दिनों पिछड़ेपन का प्रतीक मान लिया गया है, जबकि इसकी मानवीय कीमत भी है. यदि हम लज्जित होना जानते हैं, तो अपने पापों का प्रक्षालन भी कर सकते हैं. लज्जित वही हो सकता है, जो संवेदनशील हो, वरना तो बड़े से बड़े अपराधी भी अपने किये पर लज्जित नहीं होते. हमारे सिलेब्रिटी तबके को कुछ अधिक संवेदनशील, समझदार और संयत होने की आवश्यकता है.