के सी त्यागी
पूर्व राज्यसभा सांसद
कोरोना महामारी के बीच बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव द्वारा कोटासे बिहारी छात्रों को वापस बुलाये जाने का बयान देना गैर-जिम्मेदाराना वअपरिपक्व राजनीति का परिचायक है. यह लॉकडाउन के निर्देशों को धता बतानेका प्रयास भी है. ऐसे समय में जब दुनिया कोरोना वायरस से उपजी महामारी कादंश झेलने को मजबूर है, कुछ नेता झूठा छात्र-प्रेम दिखाकर लोगों कोगुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसा करना देश के अन्य राज्यों में फंसेप्रवासी श्रमिकों के साथ भेदभाव भी होगा.सर्वविदित है कि कोरोना से बचने के लिए अभी तक कोई दवा एवं टीका नहीं हैऔर सोशल डिस्टेंसिंग को ही इसका प्रभावी उपाय बताया जा रहा है. ऐसे मेंकुछ नेता बसों में भरकर छात्रों को बहुत दूर से बिहार वापस बुलाने कीवकालत किस बुद्धिमत्ता का परिचय देते हुए कर रहे हैं? क्या इस दौरानछात्र सोशल डिस्टैंसिंग का पालन कर पायेंगे? क्या ऐसी पहल छात्रों कोसंक्रमण की ओर नहीं धकेलेगी?
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, एक संक्रमित रोगी406 लोगों को संक्रमित करने की क्षमता रखता है. इस समय नेताओं कीबयानबाजी दर्शाती है कि उन्हें अपनी खोयी हुई राजनीतिक जमीन पाने कीचिंता अधिक है, न कि कोटा में अध्ययनरत छात्रों की. प्रधानमंत्री ने अपनेसंबोधनों में सोशल डिस्टेंसिंग पर सबसे अधिक जोर दिया है. सभी राज्यों केमुख्यमंत्री, विपक्षी दलों के अध्यक्ष और संसदीय दलों के नेताओं के साथइस विषय पर गहन चर्चा हुई, जिसमें दलगत राजनीति से ऊपर उठकर संयुक्तप्रयास के लिए सब एकमत हुए. राहुल गांधी ने भी एकजुटता, टेस्टिंगप्रक्रिया में तेजी लाने और सोशल डिस्टेंसिंग व बचाव के अन्य तरीकेअपनाने का आह्वान किया.बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मामले की गंभीरता को समझते हुए शुरूसे ही लॉकडाउन को सख्ती से लागू किया है.
बारह करोड़ की आबादी वाले बिहारमें आज अन्य राज्यों तथा इसी अनुपात के जनसंख्या वाले देशों से कहींबेहतर स्थिति है. जो जहां है, वह कैसे सुरक्षित रहे, इसका पुख्ता इंतजामभी किया गया है मुख्यमंत्री द्वारा. बिना किसी देरी के प्रवासी श्रमिकोंके खाते में राहत राशि के रूप में एक हजार रुपये देने की घोषणा की गयी.तेरह लाख प्रवासी बिहारियों ने मदद पाने के लिए पंजीकरण कराया है, जिसमें6.7 लाख लोगों को सहायता प्राप्त भी हो गयी. स्थानीय राशन कार्ड धारकोंको भी 184 करोड़ रुपये की मदद दी जा चुकी है. किसानों को राहत देते हुएबिजली बिल में आर्थिक छूट देने की भी घोषणा की गयी. स्वास्थ्यकर्मियों कोएक माह का अतिरिक्त वेतन देने की भी पहल की गयी. दिल्ली के बिहार भवन नेबतौर नोडल एजेंसी राज्य के बाहर फंसे श्रमिकों के लिए राहत सामग्री वअन्य आवश्यक चीजों की मदद सुनिश्चित की. इसके बावजूद जब कई राज्यों मेंप्रवासी बिहारी मजदूरों के साथ अनदेखी की खबरें सामने आयीं, तो नीतीशकुमार ने अमित शाह से इस बारे में मंत्रणा की.
गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, बिहार, ओडिशा, आंध्र प्रदेश व असममें इस संक्रमण के दोगुने होने की दर राष्ट्रीय औसत से कम है. सच है किलाॅकडाउन के कारण देशभर में हाहाकार मचा है. विद्यार्थियों की पीड़ा भीअलग नहीं है. लेकिन संक्रमण काल में कोटा से पटना और वहां से अलग-अलगजिलों की दूरी तय करना व्यावहारिक नहीं है. इससे संक्रमण में वृद्धि हीहोगी. चूंकि सरकार की प्राथमिकता अपने लोगों की जान बचाना है, सोलाॅकडाउन का सख्ती से पालन ही उचित तरीका है. मौजूदा महामारी का दौरपिछले सौ वर्षों की सबसे बड़ी त्रासदी है. ऐसी परिस्थिति प्रथमविश्वयुद्ध के बाद पैदा हुई थी, जब संक्रमण के कारण भारत में ही छह लाखसे अधिक लोगों की मृत्यु हो गयी थी.
अमेरिका, इटली, स्पेन तथा अनेकयूरोपीय देशों में रोगियों तथा मृतकों की संख्या दिल दहलानेवाली है. येदुनिया के सबसे विकसित देश हैं और यहां के सार्वजनिक स्वास्थ्य पर जीडीपीका छह से साढ़े आठ फीसदी धन खर्च होता है. अपने देश में यह खर्च सिर्फडेढ़ फीसदी है.मार्च के तीसरे सप्ताह में जब पंजाब व हरियाणा में गेहूं व सरसों की फसललगभग पकने को तैयार थी, उसी समय बिहार, झारखंड और ओडिशा के मजदूरों कापलायन शुरू हो रहा था. इन राज्यों की चिंता निरंतर गहरी होती जा रही थीकि अतिवृष्टि, ओलावृष्टि और तेज हवा के कारण फसल का बड़ा हिस्सा बर्बादहो चुका है और यदि प्रवासी श्रमिकों का पलायन जारी रहा, तो फसलों की कटाईमें बहुत मुश्किल आयेगी.
इन राज्यों के मुख्यमंत्रियों द्वारा नीतीशकुमार से निजी तौर पर आग्रह किया गया कि वह प्रवासी श्रमिकों के पलायन कोरोकने की अपील करें. नीतीश कुमार की अपील का असर भी हुआ और पलायन रुकाभी. आने वाले समय में ये श्रमिक धान, सब्जी और अन्य खरीफ फसलों की बुआईमें अहम भूमिका निभायेंगे. लेकिन अफसोस है कि ये राज्य भी अपने यहां केश्रमिकों का ध्यान रखने में चूक गये. अब जरूरत सरकारी व स्वास्थ्यसंगठनों के दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए लोगों द्वारा अपनी और समाजकी रक्षा करने की प्रतिबद्धता दर्शाने की है. (यह लेखक का निजी विचारहै.)