तिरंगा और जिम्मेदारी
हमारा तिरंगा एक ध्वज भर नहीं है, यह एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है, जिसे श्रद्धा और समर्पण के साथ वहन किया जाना चाहिए.
भारत आज 77वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है. वैसे तो आज की दुनिया में हर दिन, हर सप्ताह, हर महीने कोई-ना-कोई दिवस मनाने का सिलसिला चल पड़ा है. लेकिन स्वतंत्रता दिवस सबसे अलग है. यह आजादी की लड़ाई के उस इतिहास का अंतिम अध्याय है, जिसे संघर्ष और बलिदान की स्याही से लिखा गया है. वह एक बड़ी लड़ाई थी जिसे हमने जीती और इसलिए हम हर साल मिलकर उस जीत का जश्न मनाते हैं. भारत जैसे विविधता भरे देश में उत्सव तो अनेक होते हैं, मगर 15 अगस्त एक ऐसा दिवस है जिसमें हर भारतवासी एक साथ सम्मिलित होता है.
वह इस दिन बस एक भारतीय होता है और उसकी पहचान बस वह तिरंगा होता है जिसे वो फख्र से हाथों में थामता है. बीता एक साल खास रहा जब भारत ने आजादी के 75 वर्ष पूरे होने के अवसर पर पूरे साल उत्सव मनाया. इसे आजादी के अमृत महोत्सव का नाम दिया गया. इसी के तहत पिछले वर्ष ‘हर घर तिरंगा’ नाम से एक अभियान चला. इस साल भी 13 से 15 अगस्त तक यह अभियान चल रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हर किसी से इस अभियान में हिस्सा लेने का आग्रह किया है.
उन्होंने देशवासियों से ‘हर घर तिरंगा’ की वेबसाइट पर जाकर तिरंगे के साथ अपनी तस्वीर अपलोड करने का आह्वान किया है. साथ ही लोगों से अपने सोशल मीडिया अकाउंटों पर अपनी प्रोफाइल तिरंगा करने की भी अपील की है. प्रधानमंत्री और सरकार की यह ख्वाहिश है कि स्वतंत्रता के 75 वर्षों का समारोह एक सरकारी आयोजन भर ना रह जाए, और इसमें लोगों की भी भागीदारी हो. आज की पीढ़ी को तकनीक के जरिये आजादी के महत्व से जोड़ने का यह एक सराहनीय प्रयास है.
यह एक वास्तविकता है कि देश के सामने आज विभिन्न तरह की चुनौतियां हैं. लेकिन चुनौतियां 15 अगस्त 1947 से पहले भी थीं. तब की पीढ़ी ने गुलामी की बेड़ियों को तोड़ने को एक चुनौती मानकर संकल्प लिया और आजादी की जंग जीती. वैसे ही, आज की पीढ़ी को भी चुनौतियों को स्वीकार करना चाहिए और जिम्मेदारी के जज्बे के साथ बदलाव का प्रयत्न करना चाहिए. लेकिन यह एक ऐसा अहसास है जिसे दूसरों को जबरन समझाने से पहले स्वयं समझना जरूरी है. जो लोग देशभक्ति का प्रदर्शन नहीं करते उनके प्रति कोई दुर्भावना नहीं रख अपना कर्तव्य करना चाहिए. हमारा तिरंगा एक ध्वज भर नहीं है, यह एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है, जिसे श्रद्धा और समर्पण के साथ वहन किया जाना चाहिए.