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ट्रंप का संरक्षणवाद

आशंका है कि अमेरिका और अन्य कई देश संक्रमण से बचने और कारोबार को बचाने के लिए ऐसी संरक्षणवादी पहलकदमी कर सकते हैं.

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आधिकारिक आदेश जारी कर अमेरिका में आप्रवासन पर साठ दिनों के लिए पाबंदी लगा दी है. इसका मतलब यह है कि इस अवधि में दूसरे देशों के लोग अमेरिका में रोजगार या नौकरी के लिए नहीं जा सकेंगे. उन्होंने यह भी कहा है कि साठ दिन बाद वे स्थिति की समीक्षा कर निर्णय लेंगे कि इस पाबंदी को लागू रखना है या हटाना है. कोरोना वायरस के वैश्विक संक्रमण से अमेरिका सबसे अधिक प्रभावित हुआ है. संक्रमितों और मृतकों की बड़ी संख्या होने के साथ-साथ वहां सवा दो करोड़ से अधिक लोग बेरोजगार भी हो चुके हैं. यह संख्या आगामी महीनों में बढ़ने की आशंका जतायी जा रही है क्योंकि अभी तक कोरोना के कहर पर काबू नहीं पाया जा सका है तथा हालत ठीक होने के बाद भी आर्थिक गतिविधियों को पटरी पर लाने में समय लगेगा.

राष्ट्रपति ट्रंप का मानना है कि इस कदम से देश के बेरोजगारों को काम मिलने में आसानी हो सकती है. अमेरिका में हर साल दस लाख से अधिक आप्रवासियों को काम करने की अनुमति मिलती है. वर्ष 2017 में 1.26 लाख भारतीय भी वहां रोजगार के लिए गये थे. मानवीय आधार पर और कम अवधि के रोजगार के लिए इस आदेश में छूट का प्रावधान है. हालांकि माना जा रहा है कि इसमें एचवनबी वीजा भी शामिल है, पर आदेश में इसे स्पष्ट नहीं किया गया है. इस श्रेणी का 70 प्रतिशत से अधिक वीजा भारतीयों को मिलता है, जिन्हें या तो अमेरिकी विश्वविद्यालयों से चयनित किया जाता है या अमेरिकी कंपनियों की भारतीय इकाइयां भारत में चुनती हैं.

पर यह संतोष की बात नहीं है क्योंकि कोरोना वायरस से बहुत जल्दी न तो दुनिया को छुटकारा मिलने की उम्मीद है और न ही अर्थव्यवस्थाएं बहुत जल्दी सुचारू रूप से चलने लगेंगी. ऐसी आशंका है कि अमेरिका और अन्य कई देश संक्रमण से बचने के लिए और अपने कारोबार को बचाने के लिए इस तरह की कई पहलकदमी कर सकते हैं. एक ओर जहां अंतरराष्ट्रीय बाजार में हिस्सेदारी को लेकर बहुत अधिक प्रतिस्पर्धा हो सकती है, वहीं दूसरी तरफ घरेलू उत्पादन और उपभोग को विदेशी अर्थव्यवस्थाओं से बचाने की जुगत भी लगानी पड़ेगी. इस तरह के संरक्षणवादी नीतियों को राष्ट्रपति ट्रंप पहले से ही अपनाते रहे हैं.

आप्रवासन के कारण रोजगार और आयात के कारण व्यापार संतुलन पर असर को लेकर वे पहले से ही आक्रामक रहे हैं. अब तक तो समझौतों और बातचीत से विभिन्न देश अपनी व्यापारिक शिकायतों का हल निकालने की कोशिश करते रहे हैं, परंतु कोरोना वायरस और इसे रोकने के उपायों के कारण दुनिया के लगभग सभी देश संकट से जूझने को मजबूर हुए हैं. इस स्थिति में संरक्षणवाद के ऐसे उदाहरण भारत समेत बहुत सारे देशों में सामने आयेंगे. हर देश के सामने अपने और दूसरों के संरक्षणवाद के बीच संतुलन बनाने की चुनौती भी होगी. भारत को अपनी तैयारी अभी से शुरू कर देनी चाहिए.

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