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कम समय में प्रसिद्धि पाने का प्रयास

युवा पीढ़ी निरंतर इस खोज में रहती है कि वह ऐसा क्या अलग करे, जिससे सोशल मीडिया में, समाज में चर्चा का विषय बने. सोलोगेमी ताजा प्रकरण इससे अलग हटकर कुछ भी नहीं है.

ऋतु सारस्वत, समाजशास्त्री

dr.ritusaraswat.ajm@gmail.com

हाल ही में गुजरात की एक युवती क्षमा बिंदु ने सभी वैवाहिक रस्मों को निभाते हुए अपनी शादी खुद से ही कर ली. खुद से शादी करने की यह प्रथा ‘सोलोगेमी’ कही जाती है. भारत में सोलोगेमी का यह पहला मामला है. जाहिर है, ऐसे में देशभर में इस बात पर चर्चा होनी ही थी, सो हुई भी. दरअसल, यह पूरी कवायद बहुत कम समय में, बिना अथक प्रयास के, येन-केन-प्रकारेण प्रसिद्धि पाने के लिए की गयी है.

युवा पीढ़ी निरंतर इस खोज में रहती है कि वह ऐसा क्या अलग करे, जिससे सोशल मीडिया में, समाज में चर्चा का विषय बने. सोलोगेमी का ताजा प्रकरण इससे अलग हटकर कुछ भी नहीं है. इसका कारण केवल इतना है कि संसार में, समाज में, हर व्यक्ति जो सामाजिक है और आधुनिकता से किसी भी रूप में परिचित हो चुका है वह अपनी प्रमुखता, अपनी अलग पहचान चाहता है. यह मनुष्य का गुण है. इसके पीछे एकमात्र कारण है शॉर्टकट के रास्ते सफलता पाना, लोगों की चर्चा का विषय बन जाना.

शॉर्टकट के माध्यम से सफलता पाने के दो रास्ते हैं, आप कुछ ऐसा विध्वंसक करें, या फिर आप कुछ ऐसी सकारात्मक बातें करें कि तुरंत ही आप लाइमलाइट में आ जाएं. एक तीसरी बात है बिल्कुल नयी चीज करना, जिसकी कभी किसी ने कल्पना न की हो. एक बात और, क्षमा ने कहा था कि वह खुद से प्यार करती है, इसलिए खुद से शादी कर रही है. तो इस बारे में केवल इतना ही कहा जा सकता है कि ‘संसार में यदि कोई अवसाद ग्रसित न हो, कोई मानसिक तौर पर बीमार न हो, तो हर मनुष्य, चाहे वह एक या दो वर्ष का छोटा सा बच्चा ही क्यों न हो, उसे अपना जीवन बहुत प्रिय होता है.

आप एक दो वर्ष के बच्चे को छत से नीचे लटका कर देखिये, वह ऊपर आने के लिए अपना हाथ-पैर पटकने लगता है. हर मनुष्य को अपने आप से प्यार होता है. क्षमा कोई अलग नहीं है, जिसे स्वयं से प्यार है. क्षमा को वो प्रसिद्धि एक पल में मिली, जिसके लिए कोई व्यक्ति अपने बीस-पच्चीस वर्ष फूंक देता है. वह कार्य जो समाज में कभी भी नहीं हुआ है, जब कोई उसे पहली बार करता है, तो वह व्यक्ति सदैव याद रहता है.

देखिए, आज की युवा पीढ़ी पैसे से कहीं अधिक प्रसिद्धि की ओर भाग रही है. आज से दो दशक पूर्व युवा पीढ़ी का उद्देश्य प्रसिद्धि पाना नहीं, बल्कि पैसा कमाना था. वर्तमान युवा पीढ़ी पैसा तो कमाना चाहती है, लेकिन उससे कहीं अधिक चाहत उसे प्रसिद्धि की है. वो चाहती है कि लोग उसे जानें, उसके बारे में चर्चा करें. चाहे वह इंस्टाग्राम हो या ट‍्विटर, फॉलोवर बढ़ाने के नित नये तरीके खोजे जा रहे हैं. इसके लिए गिमिक्स खेले जाते हैं. फॉलोवर्स बढ़ाने के लिए लोग अपने जीवन तक को खतरे में डाल लेते हैं. तो ये तो बहुत छोटा सा काम है, जिसमें युवती ने अपने जीवन के नितांत सुखों को भी प्राप्त किया.

संसार की हर युवती और युवक सुंदर दिखना चाहता है, तो यहां उसे अपने आपको सजाने-संवारने का भी मौका मिला, और बहुत ही अलहदा तरीके से उसने प्रसिद्धि भी पायी. यहां इस प्रश्न का उत्तर देना भी जरूरी है कि क्या इस कृत्य का समाज पर कोई प्रभाव पड़ेगा? इसका उत्तर है नहीं. कोई खुद से विवाह नहीं करेगा. सभी युवा इस बात से भलीभांति परिचित हैं कि पहली बार किया गया कोई भी कृत्य चर्चा का विषय बनता है. स्वाभाविक तौर पर जब कोई व्यक्ति कुछ नया काम करता है, तो लोग उसको फॉलो करते हैं. यहां जो फॉलोवर होता है, वह उससे कहीं अधिक का लक्ष्य रखता है. मान लीजिए मैंने एक चोटी पर चढ़ने का लक्ष्य रखा था और मैंने उसे पूरा कर लिया. तो जो मुझे फॉलो करेगा, वह सोचेगा कि वह मुझसे एक सीढ़ी ऊंची चढ़े, तभी उसकी एक अलग पहचान बन पायेगी. इस मामले में इस तरह की कोई टारगेट वैल्यू निश्चित हो ही नहीं सकती. इसलिए इस बात की संभावना बहुत कम है कि इसे फॉलो किया जाए.

इस कृत्य का प्रभाव इस रूप में पड़ सकता है कि युवा पीढ़ी समाज में चल रही परंपराओं से अलग हटकर निरंतर कुछ और करने की सोच की ओर बढ़ेगी. जो हमारी सामान्य सामाजिक परंपरा है, यहां रूढ़िवादी परंपरा की बात नहीं हो रही है, उन परंपराओं से विमुख होने की बात करके यह बताने की कोशिश करेगी कि हम इनके विरुद्ध हैं. वह हर वो रास्ता अपनाने की कोशिश कर सकती है जिससे प्रसिद्धि का मार्ग सहज हो जाए. इसके लिए नये तर्क गढ़ने की कोशिश भी की जायेगी. क्योंकि यदि आप दो िदन भी चर्चा में रहते हैं, तो लोगों की स्मृति में कहीं-न-कहीं अंकित हो जाते हैं.

जहां तक सोलोगेमी के पक्ष में कुछ लोगों के खड़े होने का प्रश्न है, तो इस संसार में वाद एक ऐसी चीज है, जिसका प्रतिवाद भी होगा और विवाद भी होगा. क्रिया की प्रतिक्रिया भी होगी. जो बात जितनी अधिक विवादों में रहती है, वह उतनी ही तीव्रता से प्रसिद्धि पाती है. उसे खूब प्रसिद्धि मिलती है. इसी प्रसिद्धि के फेरे में तो लोग अपने बारे में कई झूठी कहानियां भी फैलाते हैं. यह दुर्भाग्यपूर्ण, किंतु वास्तविकता है कि सकारात्मकता को लोगों तक पहुंचने में, उसके बहाव में बहुत लंबा समय लगता है और नकारात्मकता बहुत तीव्र गति से फैलती है. तो यह सिर्फ एक नकारात्मक प्रसिद्धि का मसला है. उससे अधिक कुछ भी नहीं. इसे लेकर हमें चिंतित होने की कोई जरूरत नहीं है.

(बातचीत पर आधारित) (यह लेखिका के निजी विचार हैं)

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