कुतुब मीनार से भी ऊंचे नोएडा के ट्विन टावर के अवशेष ही बचे हैं. वे भी कुछ दिनों के बाद नहीं दिखेंगे. ट्विन टावर को ध्वस्त करने के बाद उठा गुबार शांत हो चुका है. इसके बनने और तोड़े जाने की कथा को बिल्डर की हवस और सरकारी महकमों में फैले भ्रष्टाचार से जोड़ कर देखना चाहिए. इन पर कार्रवाई करनी होगी, वर्ना आगे भी हमें ऐसी इमारतों को तोड़ने के लिए मजबूर होना होगा. नोएडा को एक आदर्श शहर के रूप में देखा जाता है.
यहां तमाम बिल्डर आवास परियोजनाएं चलाते रहे हैं. उनसे पूछा जाना चाहिए कि उन्होंने अपने ग्राहकों से किये वादों को कितनी ईमानदारी से निभाया है. सुपरटेक बिल्डर्स ने नोएडा अथॉरिटी के अफसरों से मिल कर अपने टावर्स के प्लॉट पर और टावर खड़े कर दिये, जो मूल योजना का हिस्सा नहीं थे. सुपरटेक ने उस जगह पर भी टावर खड़े कर दिये थे, जिसे हरियाली के लिए छोड़ा जाना था. उसे लगा कि ऐसा कर मोटा पैसा कमाया जा सकता है तथा उसकी हरकतों पर कोई एतराज भी नहीं करेगा. गड़बड़ यहीं से चालू होती है.
सुपरटेक ने अपनी करतूत के लिए स्थानीय अफसरों और कर्मचारियों को बहुत पैसा खिलाया, इसमें किसी को कोई शक नहीं होना चाहिए. उसे सरकारी बाबुओं ने पूरा सहयोग दिया. अब उत्तर प्रदेश सरकार तीन आइएएस अफसरों समेत 30 सरकारी अधिकारियों पर कार्रवाई करने जा रही है. बेशक ट्विन टावर जागरूक नागरिकों के कारण ही टूटे. उन्होंने सुपरटेक की मनमानी के खिलाफ अदालतों का दरवाजा खटखटाया.
उन नागरिकों की आवाज सुनी भी गयी. इतने शक्तिशाली बिल्डर से लड़ना कोई खेल नहीं था, पर ये जागरूक और साहसी नागरिक पीछे नहीं हटे और लड़ते रहे. इसमें बहुत समय और संसाधन भी लगा. बहरहाल, भारत के इतिहास में यह पहली बार हुआ, जब किसी गगनचुंबी इमारत को विस्फोटक लगा कर उड़ाया गया.
अब यह सरकार को देखना होगा कि वह भ्रष्ट भवन निर्माताओं तथा सरकारी बाबुओं को कड़ी से कड़ी सजा दे, जो किसी भी हाउसिंग प्रोजेक्ट में घपला-घोटाला करते हैं. नोएडा में ट्विन टावर को गिराने की घटना को सारी दुनिया ने देखा. इससे कोई बहुत बेहतर संदेश तो नहीं गया है. बेहतर तो तब होता, जब इन्हें बनने ही नहीं दिया जाता.
चूंकि उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद, नोएडा, ग्रेटर नोएडा जैसे शहरों में ढेरों आवासीय परियोजनाएं चल रही हैं और उनमें लाखों लोगों ने अग्रिम राशि देकर घर बुक कराया है, तो उत्तर प्रदेश सरकार को लोगों क हितों की रक्षा के लिए संवेदनशील होना पड़ेगा. यह बात देशभर में तेजी से हो रहे शहरीकरण पर लागू होती है. उत्तर प्रदेश सरकार ट्विन टावर को हरी झंडी दिखाने वाले भ्रष्ट बाबुओं पर कार्रवाई करने जा रही है.
उन सबकी ठोस जांच होनी चाहिए ताकि एक कड़ा संदेश जाए. राज्य सरकार ने कई भवन निर्माताओं पर कड़ी कार्रवाई की है तथा कुछ कंपनियों के अधिकारियों को जेल भी भेजा गया है. ट्विन टावर की कहानी कई वर्ष पहले से शुरू हो गयी थी. कहना न होगा कि ट्विन टावर को खड़ा करने में सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च हुए होंगे, ढेरों मजदूरों ने खून-पसीना बहाया होगा तथा भारी मात्रा में संसाधन लगे होंगे.
कुछ ज्ञानी लोग कह रहे थे कि ट्विन टावर में उन लोगों को रहने की अनुमति दी जा सकती थी, जिनके अपने घर नहीं है. ये बचकानी सोच है. जो भी हो, ट्विन टावर को ध्वस्त कर भारत ने ये संदेश तो दिया ही है कि देश भ्रष्टाचार को नहीं सहेगा. ट्विन टावर भ्रष्टाचार की बुनियाद पर खड़ी थी. अब इस बिंदु पर विचार करना होगा कि आखिर रियल एस्टेट सेक्टर में इतना भ्रष्टाचार कैसे फैल गया.
भ्रष्ट बिल्डरों को किसी भी सूरत में नहीं छोड़ा जाना चाहिए. उनका साथ देने वाले सरकारी कर्मियों को भी दंडित करना होगा. देश में जहां भी बिल्डरों के खिलाफ शिकायतें हैं, उन पर त्वरित निर्णय लिया जाना चाहिए. ट्विन टावर को गिराना एक ठोस शुरुआत है, पर यह क्रम जारी रहना चाहिए. फ्लैट खरीदने वाले लोगों को छत के साथ-साथ खुला और हरा-भरा वातावरण भी मिलना चाहिए.
इस मसले पर चर्चा में यह बात भी होनी चाहिए कि सरकार को सस्ते आवास मुहैया कराने की दिशा में अधिक सक्रिय होना चाहिए. रियल एस्टेट सेक्टर में सुधार के लिए बीते कुछ वर्षों में कई कानूनी पहलें हुई हैं तथा घर खरीदने पर कुछ छूट और अनुदान की व्यवस्था भी हुई है, पर अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है.
हर नागरिक के एक छत होने के सपने को साकार करने के लिए यह जरूरी है कि सरकार प्रमुख शहरों में या उससे सटे शहरों में सस्ती जमीन की व्यवस्था करे. फिलहाल स्थिति यह है कि हर माह लाख रुपये तक कमा लेने वाले युवा भी घर लेने को लेकर गंभीर नहीं हैं. उन्हें लगता है कि घर आवंटित होने में देरी हो सकती है या घर लेने के बाद वे 10-20 साल तक हर माह किस्त देने के जाल में फंस जायेंगे. उनकी यह सोच एक लिहाज से जायज भी है. सब जानते हैं कि रियल एस्टेट कंपनियों ने ग्राहकों को कितना धोखा दिया है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)