22.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

अनिश्चित तेल बाजार

तेल निर्यातक देशों द्वारा आपूर्ति घटाने से दाम बढ़ना निश्चित है. इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि पर नकारात्मक असर होगा.

कई कारणों से पिछले कुछ समय से अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल और गैस के दामों में लगातार उतार-चढ़ाव चल रहा है. रूस-यूक्रेन युद्ध ने इसे और गंभीर बना दिया है. दुनियाभर में मंदी की आशंकाओं के चलते ऐसा लग रहा था कि तेल की कीमतें गिर सकती हैं और ऐसा हो भी रहा था, लेकिन पेट्रोलियम निर्यातक देशों एवं उनके सहयोगियों के संगठन ओपेक प्लस द्वारा आपूर्ति घटाने के निर्णय से दामों में उछाल आना संभावित है. इस फैसले की वजह घटती कीमतों को रोकना है.

अब सवाल यह है कि अगर रोजाना करीब बीस लाख बैरल तेल की आपूर्ति कम होती है, तो खरीदार देशों पर क्या असर होगा. भारत कच्चे तेल का दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा आयातक देश है. हम अपनी ऊर्जा जरूरतों का अस्सी प्रतिशत हिस्सा बाहर की खरीद से पूरा करते हैं. तेल व गैस कीमतों में बढ़ोतरी का सीधा असर हमारे व्यापार घाटे और विदेशी मुद्रा भंडार पर पड़ता है. बीते कुछ समय से डॉलर के मुकाबले रुपये के दाम में कमी से भी दबाव बढ़ा है.

भारत समेत दुनिया की अधिकतर अर्थव्यवस्थाओं के सामने आपूर्ति शृंखला में अवरोध से पैदा हुई मुश्किलों तथा बढ़ती मुद्रास्फीति की चुनौती भी है. ऐसी स्थिति में तेल निर्यातक देशों द्वारा आपूर्ति घटाने से दाम बढ़ना निश्चित है. इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि पर नकारात्मक असर होगा. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अगले वित्त वर्ष में वैश्विक आर्थिक वृद्धि की दर 2.7 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है. हालांकि इस वर्ष यह दर 3.2 प्रतिशत रह सकती है, पर तेल व गैस महंगा होने से हर वस्तु के दाम बढ़ सकते हैं.

ऐसे में मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना मुश्किल हो जायेगा. इससे बाजार में मांग भी घटेगी और बचत में भी कमी आयेगी. रूस-यूक्रेन युद्ध तथा जलवायु परिवर्तन ने कई देशों की खाद्य सुरक्षा पर भी प्रश्नचिन्ह लगा दिया है. उस पर महंगा तेल व गैस खरीदना आम लोगों के लिए कठिन हो जायेगा. यूरोपीय देशों में इन चीजों के दाम अभी से आसमान छूने लगे हैं.

जाड़े के मौसम में ऊर्जा की जरूरत भी ज्यादा होगी. अमेरिका ने ओपेक प्लस देशों के इस फैसले पर निराशा जतायी है. संभव है कि वह अपने भंडार से अधिक तेल निकालकर कीमतों को नियंत्रित करने का प्रयास करे, पर भारत जैसे देशों के पास वह विकल्प नहीं है. कोरोना महामारी की मार और रूस-यूक्रेन युद्ध के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास की गति दुनिया में सबसे अधिक है तथा वृद्धि दर में आगे कुछ गिरावट आने के बाद भी इसके संतोषजनक रहने की उम्मीद है. पर हम निश्चिंत नहीं रह सकते हैं और हमें आगामी चुनौतियों को लेकर सतर्क रहने की आवश्यकता है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें