रविभूषण, वरिष्ठ साहित्यकार
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विश्वप्रसिद्ध इस्राइली इतिहासकार युवाल नोआह हरारी ने पिछले मार्च महीने यह कहा था कि पाषाण-युग से अब तक के समय में महामारी से काफी संख्या में लोग मरते रहे हैं. मनुष्य के पास इसका सर्वोत्तम बचाव एकाकीपन नहीं, बल्कि सही सूचना है. महामारी के विरुद्ध युद्ध में मानव जाति की विजय इसलिए संभव हुई, क्योंकि रोगजनकों का भरोसा जहां अंध परिवर्तन पर था, वहां डॉक्टरों ने सूचना के वैज्ञानिक विवेचन पर भरोसा किया.
नवंबर, 2002 और जुलाई, 2003 के आठ महीनों के बीच दक्षिणी चीन में जिस सार्स रोग का आरंभ हुआ था, वह कुछ समय बाद ही 37 देशों में फैल गया. जुलाई, 2003 में यह महामारी लगभग समाप्त हो रही थी और उस समय तक वैक्सीन (टीका) तैयार हो गया था. इबोला वायरस अफ्रीका में दिसंबर, 2013 में आरंभ हुआ और दो वर्ष बाद जून, 2016 में समाप्त हुआ. उस समय संयुक्त राज्य अमेरिका की भूमिका इबोला संकट को दूर करने में प्रमुख रही, पर कोरोना वायरस के निदान में अब तक उसकी प्रमुख भूमिका नहीं रही है. आज अमेरिका कोरोना वायरस से प्रभावित सबसे बड़ा देश है, जहां इससे संक्रमित मरीजों की संख्या साढ़े सोलह लाख है और इससे मृतकों की एक लाख के करीब है.
20 जनवरी, 2017 को डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति बनने से पहले आगामी महामारियों के संबंध में जो चेतावनियां दी गयी थीं, उन पर ध्यान नहीं दिया गया. आज से 64 वर्ष पहले संयुक्त राज्य अमेरिका में स्थापित (1955) एलर्जी एवं संक्रामक रोग के राष्ट्रीय संस्थान (एनआइएआइडी) के निदेशक डॉ एंथनी फाउची, जो प्रमुख अमेरिकी चिकित्सक एवं प्रतिरक्षा विज्ञानी हैं, जनवरी, 2020 से व्हाइट हाउस कोरोना वायरस टास्क फोर्स के प्रमुख सदस्य हैं. डॉ फाउची ने वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सहित अब तक छह अमेरिकी राष्ट्रपतियों- रोनाल्ड रीगन, जॉर्ज बुश, बिल क्लिंटन, जॉर्ज डब्ल्यू बुश और बराक ओबामा को एचआइवी/ एड्स एवं अन्य घरेलू और वैश्विक स्वास्थ्य के मुद्दों पर सलाह दी है.
वे वर्ष 1984 से अब तक एनआइएआइडी के निदेशक पद पर हैं. उन्होंने ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से पहले जनवरी, 2017 के आरंभ में एक आकस्मिक प्रकोप की चेतावनी दी थी और उन्होंने यह भी कहा था कि महामारी से बचने के लिए कहीं अधिक तैयारी की आवश्यकता है. डॉ फाउची अमेरिकी सरकार के प्रमुख संक्रामक रोग विशेषज्ञ हैं. ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के पहले उन्होंने जॉर्ज टाउन यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर में ‘पैनडेमिक प्रीपेयर्डनेस इन द नेक्स्ट यूएस प्रेसिडेंशियल एडमिनिस्ट्रेशन’ शीर्षक विषय पर दिये अपनी स्पीच में यह कहा था कि आगामी प्रशासन के लिए संक्रामक रोगों का कार्यक्षेत्र चुनौतीपूर्ण होगा.
कोरोना वायरस के तीन वर्ष पहले महामारी के जिस अचानक प्रादुर्भाव की उन्होंने जो चेतावनी दी थी, वह आज बिल्कुल सही निकली. छात्रों और अकादमिक क्षेत्र के वैश्विक स्वास्थ्य विशेषज्ञता के अपने अनुभवों के आधार पर उन्होंने यह संदेश दिया था. वह आयोजन हॉर्वर्ड ग्लोबल हेल्थ इंस्टीट्यूट की पार्टनरशिप में था और इस इंस्टीट्यूट के निदेशक आशीष के झा ने यह कहा था कि महामारी की तैयारी की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है, पर अभी अधिक कार्य करना होगा और व्यापक स्तर पर इससे निबटने की तैयारी करनी होगी. उन्होंने यह कहा था कि हम लोग कई अर्थों में आज तक आगामी महामारी को रोकने की दिशा में तैयार नहीं हैं.
आगामी संक्रामक रोग को रोकने के लिए जिस धनराशि की आवश्यकता थी, उसे समय पर निर्गत नहीं किया गया. डॉ फाउची को 2016 के ग्रीष्म में जीका वायरस के फैलने के समय का अनुभव था, उन्होंने कहा कि यह बहुत-बहुत दर्दनाक था कि जब राष्ट्रपति ने फरवरी में इसके लिए 1.9 बिलियन डॉलर देने को कहा, हम लोग इसे सितंबर तक प्राप्त नहीं कर सके. तीन वर्ष पहले डॉ फाउची सहित जिन विशेषज्ञों ने आगामी महामारी की चेतावनी दी थी, उस पर अमेरिका ने ध्यान नहीं दिया.
कोरोना वायरस चीन के वुहान शहर से फैला. चीन के वुहान सेंट्रल अस्पताल के नेत्र चिकित्सक डॉ ली वेन लियांग ने 30 दिसंबर, 2019 को अपने साथी डॉक्टरों को एक चैट ग्रुप में भेजे गये अपने संदेश में इस वायरस के संभावित खतरों के बारे में बताया था और यह चेतावनी दी थी कि इससे बचने के लिए वे खास प्रकार के हिफाजती कपड़े पहनें और संक्रमण से बचने के लिए जरूरी सावधानी बरतें.
उस समय डॉ ली पर अफवाह फैलाने का आरोप लगाया गया था और उन्हें उस पत्र पर हस्ताक्षर करने को कहा गया था, जिसमें गलत सूचना देने के आरोप के साथ उसके कारण समाज में भय फैलाने की बात कही गयी थी. डॉ ली बाद में कोरोना वायरस से संक्रमित हुए और 10 जनवरी को अस्पताल में भर्ती हुए. 7 फरवरी, 2020 को डॉ ली वेन लियांग की कोरोना वायरस से मृत्यु हो गयी.
उनके अस्पताल में भर्ती होने के दस दिन बाद चीन ने कोरोना वायरस के कारण आपातकाल की घोषणा की. अमेरिका और चीन ने अगर पहले ही ये चेतावनियां सुनी होतीं और इन्हें ध्यान में रखकर कार्य किया होता, तो कोरोना वायरस का ऐसा कहर दिखायी नहीं देता. भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी वक्त रहते इन चेतावनियों पर ध्यान दिया होता, परिणाम कुछ और होता.