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केंद्रीय बजट और लोगों की उम्मीदें, पढ़ें अर्थशास्त्री अभिजीत मुखोपाध्याय का आलेख

Union Budget 2025 : विकास में तीव्र मंदी को देखते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए केंद्रीय बजट में कई उपायों की घोषणा करने की आशा है. इसके अतिरिक्त, आरबीआइ की एमपीसी अंततः ब्याज दरों को कम करने का निर्णय ले सकती है.

Union Budget 2025 : जुलाई-सितंबर तिमाही में जीडीपी का अनुमान सात तिमाहियों के निचले स्तर 5.4 प्रतिशत पर आने के बाद, वार्षिक अनुमान में संशोधन कर उसे कम किये जाने की उम्मीद थी. इस दूसरी तिमाही के नतीजों ने भारत में धीमी वृद्धि की लगातार तीसरी तिमाही को भी चिह्नित किया. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, जैसी की उम्मीद है, जीडीपी के पहले अग्रिम अनुमान में, वित्त वर्ष 2024-25 में वास्तविक जीडीपी में 6.4 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान लगाया गया है, जबकि वित्त वर्ष 2023-2024 के जीडीपी के अनंतिम अनुमान (पीइ) में वृद्धि दर 8.2 प्रतिशत है.

विकास में तीव्र मंदी को देखते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए केंद्रीय बजट में कई उपायों की घोषणा करने की आशा है. इसके अतिरिक्त, आरबीआइ की एमपीसी अंततः ब्याज दरों को कम करने का निर्णय ले सकती है. केंद्रीय बजट 2025 से मुद्रास्फीति, राजकोषीय घाटे पर नियंत्रण और निर्यात प्रोत्साहन जैसी व्यापक आर्थिक चुनौतियों के समाधान की भी उम्मीद है. वित्तीय स्थिरता को बनाये रखते हुए भारत को सतत विकास की ओर ले जाने में ये उपाय महत्वपूर्ण साबित होंगे.


सीतारमण को आगामी केंद्रीय बजट में रोजगार सृजन पर ध्यान देते हुए विनिर्माण और बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करना होगा. उन्हें उपभोग को बढ़ावा देने के तरीके भी तलाशने होंगे. नीति निर्माताओं के लिए असली सिरदर्द विनिर्माण क्षेत्र बना हुआ है. विनिर्माण वृद्धि 2023-24 के 9.9 प्रतिशत से घटकर 2024-25 में 5.3 प्रतिशत हो गयी. आगामी बजट में विनिर्माण की मुश्किलों को दूर करने की आवश्यकता है. बजट में पूंजीगत व्यय पर सरकार के पूरा ध्यान देने की संभावना है, खासकर धीमी जीडीपी वृद्धि के मद्देनजर. आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए बुनियादी ढांचे के विकास, विशेष रूप से सड़कों, रेलवे और शहरी परियोजनाओं के लिए बजटीय आवंटन में वृद्धि हो सकती है.

रियल एस्टेट सेक्टर एक बार फिर हाउसिंग सेक्टर को बुनियादी ढांचा का दर्जा देने के लिए दबाव डाल रहा है. आयकर अधिनियम के तहत आवास ऋण के ब्याज भुगतान पर कर कटौती सीमा को दो लाख से बढ़ाकर पांच लाख करने की भी मांग उठ रही है. स्टार्टअप और एमएसएमइ कर छूट, ऋण तक बेहतर पहुंच और नवाचार व रोजगार सृजन को प्रोत्साहित करने के लिए बनायी गयी नयी नीतियों को लेकर आशान्वित हैं. ये क्षेत्र देश में उद्यमशीलता और रोजगार को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण हैं. अर्थव्यवस्था में मंदी को देखते हुए, भारतीय व्यवसाय मौजूदा कॉरपोरेट कर दर में कुछ कटौती की आशा कर सकते हैं. हालांकि, केंद्र सरकार के वित्तीय परिदृश्य को देखते हुए कॉरपोरेट कर की दर में समग्र कटौती की संभावना नहीं है. यद्यपि, नयी विनिर्माण कंपनियों और वैश्विक क्षमता केंद्रों (जीसीसी) के लिए कुछ प्रमुख कॉरपोरेट कर दरों में कटौती को बढ़ाने जैसे प्रावधान अर्थव्यवस्था को गति देने में मदद कर सकते हैं.


विनिर्माण प्रक्रियाओं और प्रौद्योगिकियों को आगे बढ़ाने के लिए आरएंडडी में निवेश करना महत्वपूर्ण है. यह नवाचार को बढ़ावा दे सकती है और विनिर्माण क्षेत्र की क्षमताओं को मजबूत कर सकती है. उद्योग और सेवाओं के विभिन्न क्षेत्रों से भी लोगों को उम्मीदें हैं. सार्वजनिक स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे, डिजिटल शिक्षा और कौशल विकास कार्यक्रमों के लिए अधिक आवंटन के साथ स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा को महत्वपूर्ण बढ़ावा मिल सकता है. बढ़ती चिकित्सा लागत और अस्पताल के बढ़ते खर्चों के साथ, स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र ने एक समर्पित स्वास्थ्य नियामक के निर्माण की मांग की है. इसी संदर्भ में, बीमा उद्योग उन सुधारों की वकालत कर रहा है जो स्वास्थ्य बीमा को अधिक सुलभ और टिकाऊ बना सकते है. इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग अपने विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से नीतिगत उपायों को लेकर आशावादी है.


निसंदेह, अप्रत्यक्ष कर के मोर्चे पर भी लोगों की ऐसी ही अपेक्षाएं हैं. इनमें से कुछ पर बजट में विचार किया जा सकता है. मध्यम वर्ग के करदाताओं की उम्मीदें सालाना 15 लाख रुपये तक कमाने वाले व्यक्तियों के लिए आयकर स्लैब में संशोधन पर टिकी हैं. उद्योग निकायों ने भी इस मांग को दोहराया है और सरकार से उपभोग को बढ़ावा देने और खर्च योग्य आय बढ़ाने के लिए व्यापक सुधारों पर विचार करने का आग्रह किया है. पेट्रोलियम उत्पादों पर उत्पाद शुल्क को कम करने का दबाव भी बढ़ रहा है, यह एक ऐसा कदम होगा जो मुद्रास्फीति के दबाव को कम कर सकता है और बढ़े हुए उपभोक्ता खर्च और आर्थिक गतिविधि में मदद कर सकता है. ऐसे समय में, जब हर कोई कर में कटौती चाहता है, भारत की विकास दर में गिरावट उसके बजट पर दबाव डाल रही है. यहां उपभोग को बढ़ावा देने और निवेश की मांग के लिए बेहतर समाधान तलाशने की जरूरत है. हालांकि, अभी यह स्पष्ट नहीं है कि अतिरिक्त धन कहां से आयेगा. इसलिए बजट में हर किसी की आस पूरी होगी कहा नहीं जा सकता. फिर भी, भारतीय अर्थव्यवस्था के पटरी पर लौटने की उम्मीद की जा सकती है. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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