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एकता की पहल है काशी तमिल संगमम

वाराणसी में आयोजित काशी तमिल संगम उद्देश्यों एवं कार्यक्रमों की दृष्टि से ऐतिहासिक माना जायेगा. उत्तर एवं दक्षिण, विशेषकर तमिलनाडु, को संपूर्ण भारतीय संस्कृति और सभ्यता के साथ एकता के सूत्र में जोड़ने का जो कार्य पहले होना चाहिए था

By अवधेश कुमार | November 24, 2022 8:03 AM
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वाराणसी में आयोजित काशी तमिल संगम उद्देश्यों एवं कार्यक्रमों की दृष्टि से ऐतिहासिक माना जायेगा. उत्तर एवं दक्षिण, विशेषकर तमिलनाडु, को संपूर्ण भारतीय संस्कृति और सभ्यता के साथ एकता के सूत्र में जोड़ने का जो कार्य पहले होना चाहिए था, वह अब हो रहा है. मानव समाज के बीच भौगोलिक दूरियां चाहे जितनी हों, संस्कृति, सभ्यता और धर्म जुड़े हों, तो उनमें परस्पर एकता का भाव अटूट रहता है. ‘काशी तमिल संगमम’ को इसी उद्देश्य का आयोजन कहा जा सकता है.

निश्चित रूप से इसके राजनीतिक निहितार्थ भी निकाले जायेंगे और हैं भी. तमिलनाडु में सत्तारूढ़ द्रमुक जिस तरह इस आयोजन से तिलमिलायी है, उसका अर्थ स्पष्ट है. इस भावना के विस्तार के साथ द्रविड़ भावना से राजनीति की धारा कमजोर पड़ सकती है. तमिलनाडु का एक बड़ा वर्ग स्वयं को आम भारतीय से अलग यानी द्रविड़ संस्कृति का भाग मानता है.

अंग्रेजों ने आर्य-द्रविड़ खाई पैदा की और वह कमजोर होने की बजाय हमारे अपने देश के महान इतिहासकारों, संस्कृतिकर्मियों, बुद्धिजीवियों और नेताओं के द्वारा ज्यादा गहरी की गयी. ऐसा कोई प्रामाणिक ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक तथ्य नहीं, जिनके आधार पर मान लिया जाए कि आर्य और द्रविड़ संस्कृतियां अलग-अलग थीं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में संगमम का उद्घाटन करते हुए ठीक ही कहा कि हमें आजादी के बाद हजारों वर्षों की परंपरा और इस विरासत को मजबूत करना था, एकता का सूत्र बनाना था, लेकिन दुर्भाग्य से इसके लिए बहुत प्रयास नहीं हुए. उन्होंने धर्म, संस्कृति और सभ्यता से जुड़े एकता के उन सूत्रों का उल्लेख भी किया, जो आज भी साकार रूप में हैं. मसलन, तमिल विवाह परंपरा में काशी यात्रा की एक महत्वपूर्ण रस्म है. दूसरे, प्राचीन काल से अब तक तमिलनाडु की अनेक विभूतियों ने काशी में जीवन का बहुत बड़ा हिस्सा बिताया है.

तीसरे, काशी में बाबा विश्वनाथ और तमिल में रामेश्वरम है, यानी एक ही चेतना अलग-अलग रूपों में देखने को मिलती है. चौथे, मोक्षदायी नगरों में काशी के साथ कांची का भी वर्णन है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने याद दिलाया कि तमिलनाडु के तीनकाशी में काशी से शिवलिंग ले जाकर विश्वनाथ मंदिर की स्थापना की गयी थी. भगवान राम ने वहां रामेश्वरम शिवलिंग की स्थापना की.

आर्य-द्रविड़ मतभेद की बातें इतनी बार गुंजित की गयीं कि वही सच दिखने लगा. परिणामस्वरूप तमिलों के एक बड़े वर्ग में अलगाववाद का भाव पैदा हुआ. हिंदी के विरुद्ध सबसे उग्र और हिंसक आंदोलन तमिलनाडु में ही हुआ क्योंकि इसे आर्यों की भाषा बताया गया. संस्कृत के ग्रंथों का सम्मान और उन पर अध्ययन की परंपरा तमिलनाडु में है. पहले भी इस दूरी को पाटने की कोशिश हुई. चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने हिंदी को संपूर्ण भारत की राष्ट्रभाषा बनाने का अभियान चलाया.

किंतु वह आगे नहीं बढ़ पाया. काशी से इसे आगे बढ़ाने की पहल बिल्कुल स्वाभाविक है. वैदिक विद्वान राजेश्वर शास्त्री तमिलनाडु से थे, परंतु काशी में रहते थे. हनुमान घाट पर रहने वाले पट्टाभिराम शास्त्री भी वहीं के थे. तमिल मंदिर काशी कामकोटेश्वर पंचायतन मंदिर हरिश्चंद्र घाट के किनारे है और केदार घाट पर कुमारस्वामी मठ एवं मार्कंडेय आश्रम हैं. तमिल का राज्य गीत लिखने वाले मनोनमनियम सुंदरनर के गुरु का संबंध भी काशी से था.

संगम में तमिलनाडु के 2500 प्रतिनिधि शामिल हुए. इनके लिए भ्रमण में आम धर्मस्थलों, कांची काम कोठी शंकराचार्य मठ व शंकराचार्य मंदिर के साथ तमिल कवि सुब्रमण्यम भारती का आवास भी शामिल है. शंकराचार्य का मंदिर और पीठ का काशी में होना बताता है कि दोनों के बीच गहरी सांस्कृतिक, धार्मिक एकता रही है. सुब्रह्मण्यम भारती जैसे प्रतिष्ठित कवि का निवास काशी में होना बताता है कि आर्य और द्रविड़ के बीच बनायी गयी दूरी भारत की एकता को तोड़ने का षड्यंत्र ही था.

प्रधानमंत्री ने सुब्रह्मण्यम भारती के नाम पर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में पीठ स्थापना की भी घोषणा की. उन्होंने तिरुक्कुरल पुस्तक का विमोचन किया, जिसका 13 भाषाओं में अनुवाद हुआ है. संगमम में व्यवसायों के भी संगम का कार्यक्रम है. इस तरह यह आर्य-द्रविड़ भेद तथा भारतीय संस्कृति से अलग तमिल संस्कृति के झूठ पर चोट करने के सुविचारित अभियान की शुरुआत है. जैसा प्रधानमंत्री ने कहा, तमिलनाडु के साथ दक्षिण के राज्यों में ऐसे आयोजन हों और उनमें देश के दूसरे हिस्सों से लोग जाएं, भारत को जियें और जानें.

आखिर दक्षिण में पैदा शंकराचार्य ने देश के चार कोनों पर चार पीठ भारत के सांस्कृतिक, आध्यात्मिक एकता को सशक्त करने के लिए ही तो स्थापित किये थे. विदेशियों ने तो साजिश की थी, लेकिन जिन भारतीयों ने भारत विरोधी विचार को आगे बढ़ाया उन्हें क्या कहेंगे? अनेक बुद्धिजीवी और नेता यह भूल जाते हैं कि भारतीय राष्ट्र की अवधारणा भौगोलिक या राजनीतिक नहीं रही. संस्कृति ही इसका मूल तत्व रहा है. विविधता के मध्य एकता का तंतु स्थापित करने वाला विश्व का यह अनोखा राष्ट्र है. राजनीतिक रूप से अनेक राजाओं का शासन अलग-अलग क्षेत्रों में था, परंतु सांस्कृतिक रूप से अविच्छिन्न रहा.

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