Urban Scheme: जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाली अतिवृष्टि से इन समस्याओं को बेहद गंभीर बना दिया है. इतना ही नहीं, जब यह पानी निकलता है, तो नदियों को प्रदूषित करने के साथ-साथ उन्हें उथला भी बना देता है. इस कारण नदियों के तटीय इलाकों में भी पानी भरने की आशंका बनी रहती है. बीते कुछ वर्षों में शायद ही देश का कोई ऐसा बड़ा शहर होगा, जहां किसी साल बाढ़ नहीं आयी हो. कुछ शहरों में तो यह स्थायी समस्या बन चुकी है. गर्मी के मौसम में बड़े शहरों में पानी की किल्लत की परेशानी भी इसी से जुड़ी हुई है. ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि ऐसी समस्याओं का ठोस समाधान निकाला जाए क्योंकि बड़े शहर देश के विकास एवं समृद्धि में अग्रणी भूमिका निभाते हैं.
भारत सरकार नालियों की बेहतरी तथा जलाशयों के विस्तार के लिए एक महत्वाकांक्षी योजना ला रही है. इसमें दो साल की अवधि में 300 मिलियन डॉलर खर्च किये जायेंगे. इस योजना में मुंबई, चेन्नई और बेंगलुरु समेत सात बड़े शहरों को शामिल किया गया है. सभी बड़े शहरों में नालियों का बड़ा नेटवर्क है, पर उनमें कचरा भरा है. दिल्ली और बेंगलुरु में कभी जलाशयों की बड़ी संख्या थी. पर अंधाधुंध शहरीकरण ने उन्हें निगल लिया. मुंबई शहर में बहने वाली छोटी नदी अब नाला बन चुकी है. समुचित इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी, प्रशासनिक लापरवाही, नागरिकों का दोषपूर्ण आचरण, भूमि माफिया, जल संरक्षण नहीं करना आदि अनेक कारण हैं, जो शहरों को नर्क में बदल रहे हैं. यह सही है कि अनेक नगर निगमों और नगरपालिकाओं के पास पूंजी और मानव संसाधन की कमी है, पर यह भी एक तथ्य है कि कुछ नगर निगमों का बजट मध्य आकार के राज्यों के बजट से अधिक है, पर उन शहरों में भी बदहाली है.
शहरी बाढ़ और स्वच्छ जल की कम उपलब्धता की समस्याएं एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. अगर हम नालियों की ठीक रखेंगे, तो वर्षा जल की निकासी में आसानी होगी और नदियों का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा. जलाशय आबाद रहेंगे, तो पानी भी मिलेगा और भूजल का स्तर भी बढ़ेगा. बारिश के पानी को अगर सहेजा जाए, तो भूजल और जल आपूर्ति पर दबाव कम होगा. शहरी व्यवस्था को बेहतर करने में सरकार की यह पहल उल्लेखनीय योगदान कर सकती है. इस योजना को प्रभावी ढंग से लागू किया जाना चाहिए.