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US Election : आलोचकों को गलत साबित कर दिया ट्रंप ने

Donald Trump : अमेरिका का यह चुनावी नतीजा विश्व स्तर पर आये वैचारिक बदलाव को तो प्रतिबंबित करता ही है, यह परिणाम वैश्विक राजनीति के साथ-साथ अमेरिका की घरेलू राजनीति को भी गहरे तौर पर प्रभावित करेगा.

Donald Trump : डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका में राष्ट्रपति का चुनाव विशाल अंतर से जीतकर घर और बाहर अपने आलोचकों को गलत साबित कर दिया है. ट्रंप की जीत का पहला संकेत ट्रंप विरोधी और कमला हैरिस समर्थक अखबार ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने दिया था. उसने ट्रंप की जीत की संभावना जाहिर की थी. दरअसल आखिरी एग्जिट पोल से भी नतीजे का अनुमान लगाया जाने लगा था, जिसमें 70 प्रतिशत अमेरिकियों ने माना था कि उनके अपने देश में लोकतंत्र खतरे में है. यह ‘खतरा’ ही बताने के लिए काफी था कि अमेरिकी मतदाता इस चुनाव को किस तरह से देख रहे हैं.


अमेरिका का यह चुनावी नतीजा विश्व स्तर पर आये वैचारिक बदलाव को तो प्रतिबंबित करता ही है, यह परिणाम वैश्विक राजनीति के साथ-साथ अमेरिका की घरेलू राजनीति को भी गहरे तौर पर प्रभावित करेगा. दरअसल लोकतांत्रिक विश्व की राय अमेरिका के इस चुनाव के प्रति विभाजित थी. बौद्धिकों ने ट्रंप का विरोध और हैरिस का समर्थन किया था. लेकिन यह भी सच है कि दुनिया के अनेक देश ट्रंप को विजयी देखना चाहते थे. दुनियाभर के शेयर बाजारों के खुश होने की वजह यही है. अमेरिका के चुनावी नतीजे से यह भी साफ हुआ कि अमेरिकी मतदाता महिला राष्ट्रपति को स्वीकारने के लिए तैयार नहीं है, जो आधी अश्वेत हैं, और जिनकी जड़ें भारत और अफ्रीका में हैं. कमला हैरिस को नकार देने का एक संदेश यह है कि अश्वेत बराक ओबामा को चुना जाना तो ठीक था, लेकिन राष्ट्रपति के रूप में अश्वेत महिला स्वीकार्य नहीं है. इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि अश्वेत लोगों का कानूनी और गैरकानूनी अप्रवासन चुनाव में एक बड़ा मुद्दा था. हालांकि इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि देर से चुनाव मैदान में उतरने के बावजूद कमला हैरिस ने कम समय में प्रभावी ढंग से चुनाव अभियान को संभाला.


अमेरिकी मतदाताओं ने वोट देते हुए वैश्विक चलन का ही अनुसरण किया, जिसके तहत अमूनन आक्रामक और लोकप्रियतावादी राजनेताओं को चुना जा रहा है. ट्रंप ने इस चुनाव में अपने उन पारंपरिक वोटरों को लुभाने पर पूरा जोर लगा दिया था, जिन्होंने 2020 के राष्ट्रपति चुनाव में भी उनका समर्थन किया था, भले ही तब ट्रंप चुनाव हार गये थे. एक दूरदर्शी राजनेता की तरह ट्रंप ने अपने पारंपरिक वोटरों से लगातार समर्थन की अपील की थी. उनकी अपील का मतदाताओं पर असर पड़ा. शुरुआती नतीजे ने बताया है कि महत्वपूर्ण प्रांतों ने रिपब्लिकन गवर्नरों को चुना और यह पार्टी सीनेट में बहुमत हासिल करने के करीब है. इससे आने वाले दिनों में ट्रंप की स्थिति और मजबूत ही होगी और हैरिस और उनकी पार्टी के लिए मुश्किलें बढ़ेंगी.


ट्रंप की जीत इस अर्थ में महत्वपूर्ण है कि इसने अमेरिका और दुनिया को विरोध, अनिश्चय और हिंसा से बचा लिया है. अगर इस बार का चुनावी नतीजा पिछले चुनाव की तरह होता, तो ट्रंप के समर्थक निश्चित तौर पर सड़कों पर उतर आते. यह भी साफ है कि ट्रंप ने लोगों की भावनाओं को भांप लिया था. अमेरिकी मतदाता मेक्सिको सीमा पर दीवार खड़ी करने के पक्ष में और देश से बाहर अपने सहयोगियों को खुश करने के लिए अपने पैसे का दुरुपयोग करने के खिलाफ थे. कमला हैरिस के नारों को लोगों ने नहीं स्वीकारा, जबकि अमेरिका को फिर से महान बनाने के ट्रंप के नारे को मतदाताओं ने हाथोंहाथ लिया. इससे पहले शायद ही किसी प्रत्याशी का अमेरिका में इतना विरोध हुआ, जितना कि ट्रंप का हुआ. इसके बावजूद ट्रंप जीते. यह भी देखने लायक है कि आलोचना के वावजूद ट्रंप ने अपना अंदाज और रवैया नहीं बदला. इस बार के चुनावी अभियान में भी उनकी आक्रामकता जारी रही थी.


हालांकि आने वाले दिनों में ट्रंप कौन-कौन से कदम उठाते हैं, इस बारे में इंतजार करना होगा. रूस से भयभीत यूरोप ज्यादा से ज्यादा अमेरिकी धन और हथियार चाहते हैं. यह देखना होगा कि ट्रंप आने वाले दिनों में यूरोप में शांति बहाली की दिशा में काम करते हैं, या फिर शक्तिशाली हथियार लॉबी के आगे झुक जाते हैं. रूस द्वारा यूक्रेन पर हमला करने के बाद अमेरिका ने 64.1 अरब डॉलर से भी अधिक सैन्य मदद की. बाइडेन प्रशासन ने रूस के खिलाफ पैसे और हथियार कुछ अपनी इच्छा से बांटे और कुछ यूरोप के दबाव में. देखना होगा कि ट्रंप के दौर में यह सिलसिला जारी रहता है या नहीं.


दूसरी जो चीज देखने लायक होगी, वह यह कि पश्चिम एशिया में ट्रंप का रुख क्या रहता है? अपने यहां के यहूदी वोट और उनके अकूत धन तथा ज्ञान ने अमेरिकी नेताओं को हमेशा ही प्रभावित किया है. यह देखा जा सकता है कि ट्रंप की जीत का इंतजार करने से पहले ही इस्राइल में बेंजामिन नेतन्याहू ने अपने उस रक्षा मंत्री को हटा दिया, जो गाजा में सैन्य अभियान का विरोध कर रहे थे. पश्चिम एशिया के अरबों और मुस्लिमों के लिए यह चुनौती भरा समय है. हालांकि यह मानने का कारण है कि इस्राइल का समर्थन करने की अमेरिकी नीति पर ट्रंप कायम रहेंगे. यही नहीं, इस्राइल के पक्ष में पश्चिम एशिया की भू-राजनीति को बदलने के नेतन्याहू के प्रयासों को भी ट्रंप का समर्थन जारी रहने वाला है. (ये लेखक के के निजी विचार हैं )

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