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अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव और भारत, पढ़ें पत्रकार मयंक छाया का खास आलेख

US Election :आशा है कि कमला हैरिस प्रशासन भारत के प्रति बाइडेन प्रशासन के व्यावहारिक दृष्टिकोण को जारी रखेगा. बेशक, भारत कश्मीर के पक्ष में उनके बयान को शायद ही भूल पाये, जो उन्होंने मोदी सरकार द्वारा 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद दिया था.

US Election : आज अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव है. इस चुनाव में चाहे डोनाल्ड ट्रंप जीतें या कमला हैरिस, हाल के वर्षों में अमेरिका ने भारत के प्रति जो दोस्ताना व्यवहार दिखाया है, उसमें कोई कमी नहीं आयेगी. अगर कमला जीतती हैं, तो वे अपनी दिवंगत तमिल माता डॉ श्यामला गोपालन हैरिस से मिली आधी भारतीय जातीयता के कारण संबंधों में कुछ चमक ला सकती हैं. पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अपनी व्यक्तिगत मित्रता की चर्चा अक्सर करते हैं. दोनों नेता इस समीकरण को आगे बढ़ा सकते हैं. मार्च 2000 में तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की महत्वपूर्ण भारत यात्रा के बाद से उनके उत्तराधिकारियों- जॉर्ज बुश, बराक ओबामा, ट्रंप और राष्ट्रपति जो बाइडेन दौर में दोनों देशों के संबंध उत्तरोत्तर मजबूत हुए हैं.

एक तरह से, संबंधों में यह सुधार पिछले तीन दशकों में चीन के नाटकीय उदय के समानांतर है, जो अब वैश्विक प्रभाव में अमेरिका को टक्कर दे रहा है. चीनी संदर्भ को ध्यान में रखते हुए यह उम्मीद की जा सकती है कि हैरिस या ट्रंप वर्तमान दिशा में कोई बदलाव करेंगे. जब तक अमेरिका चीन को अपना वैश्विक दुश्मन मानता रहेगा, कोई भी अमेरिकी प्रशासन निकट भविष्य में भारत के साथ संबंध कमजोर करने का जोखिम नहीं उठायेगा. भारत-चीन संबंध में हाल में आयी नरमी का इस पर असर नहीं होगा.


आशा है कि कमला हैरिस प्रशासन भारत के प्रति बाइडेन प्रशासन के व्यावहारिक दृष्टिकोण को जारी रखेगा. बेशक, भारत कश्मीर के पक्ष में उनके बयान को शायद ही भूल पाये, जो उन्होंने मोदी सरकार द्वारा 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद दिया था. उन्होंने कहा था, ‘हम सब देख रहे हैं.’ वे कश्मीर में मानवाधिकार की स्थिति की भी आलोचना करती रही हैं. वह बयान पांच साल पहले का है और राष्ट्रपति के रूप में उनकी विदेश नीति की मजबूरियां उपराष्ट्रपति की उनकी भूमिका की तुलना में बहुत अलग तरह की होंगी. अभी तक ऐसा कोई संकेत नहीं है कि राष्ट्रपति के रूप में वे कश्मीर को लेकर भारत में कोई हलचल मचाना चाहेंगी. इसका एक मुख्य कारण यह है कि वे शुरुआती चरण में विभाजित घरेलू राजनीति में अधिक उलझी रहेंगी, जिसमें कश्मीर जैसे मुद्दों की कोई प्रासंगिकता नहीं है. दूसरी ओर, ट्रंप द्वारा दक्षिण एशिया क्षेत्र और इसके केंद्र भारत के मामलों में कम रुचि दिखाने की उम्मीद है. उनका सारा ध्यान सीमा शुल्क पर रहेगा, जो उनका पसंदीदा मुद्दा है. उन्होंने भारत पर द्विपक्षीय व्यापार संबंधों का दुरुपयोग करने आरोप लगाया है और भारत सहित अन्य देशों से होने वाले आयात पर भारी शुल्क लगाने की धमकी दी है. इसके अलावा उनके भारत के प्रति मैत्रीपूर्ण रहने की संभावना है.


ब्लूमबर्ग इकोनॉमिक्स के एक अनुमान के अनुसार ट्रंप की शुल्क योजना से भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 0.1 प्रतिशत कम हो जायेगा. यह मामूली कमी है, पर संबंधों पर इसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ सकता है. एक पहलू, जिस पर अक्सर ध्यान नहीं जाता, यह भी है कि भारत में ट्रंप के व्यापारिक हित हैं. पुलित्जर पुरस्कार विजेता पत्रकार डेविड के जॉनस्टन के अनुसार, ‘उनके कुछ सबसे लाभदायक निवेश भारत में हैं, जहां इमारतों पर उनका नाम है.’ उस व्यापारिक हित का भी भारत के प्रति उनके दृष्टिकोण पर थोड़ा असर हो सकता है. महत्वपूर्ण और उभरती हुई तकनीक पर पहल पर असर की कोई संभावना नहीं है. यह पहल अंतरिक्ष, सेमीकंडक्टर और उन्नत दूरसंचार जैसी तकनीकों के संबंध में रणनीतिक सहयोग पर केंद्रित है, जो एक तरह से इसकी अपनी ढाल है. यह सुनिश्चित करने के लिए कि चीन इन क्षेत्रों में बहुत आगे न निकल जाए, भारत और अमेरिका का परस्पर सहयोग महत्वपूर्ण है. इसी तरह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्वांटम कंप्यूटिंग, जैव प्रौद्योगिकी और स्वच्छ ऊर्जा आदि अहम क्षेत्र हैं, जो अगले 100 वर्षों के लिए दुनिया के काम करने के तरीके को तय करेंगे.


ट्रंप वैश्वीकरण के समर्थक नहीं हैं, इसलिए भारत के समस्याग्रस्त पड़ोसियों, जैसे पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान और कुछ हद तक श्रीलंका और नेपाल पर उनके कोई खास ध्यान देने की संभावना नहीं है. यह हैरिस के विपरीत हो सकता है, हालांकि शायद वे भी पदभार संभालने के तुरंत बाद इन मसलों में हाथ डालने का विकल्प न चुनें. शायद दोनों के बीच सबसे अहम अंतर जलवायु परिवर्तन से निपटने में होगा, जिसके परिणाम भारत और दक्षिण एशिया में हर दिन महसूस किये जाते हैं. ट्रंप ने जलवायु परिवर्तन को एक ‘धोखा’ कहा हैं, जबकि हैरिस से बाइडेन की तरह सक्रिय होने की उम्मीद की जा सकती है, जो भारत के लिए फायदेमंद होगा. पहले की तरह ही इस राष्ट्रपति चुनाव के दौरान भी भारत का उल्लेख केवल मामूली रूप से किया गया है. हालांकि, भारतीय मूल के अमेरिकी पांच स्विंग राज्यों- एरिजोना, जॉर्जिया, मिशिगन, उत्तरी कैरोलिना और पेंसिल्वेनिया में निर्णायक हो सकते हैं. सर्वे के अनुसार, इन राज्यों में चार लाख दक्षिण एशियाई-अमेरिकी मतदाता हैं, जिनमें से अधिकतर भारतीय मूल के हैं. ये मतदाता निर्णायक साबित हो सकते हैं. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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