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अमेरिकी वीजा में आसानी

आज भारत की स्थिति निरंतर मजबूत हो रही है. भारत पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और विकासशील देशों के नेतृत्व की कमान में हिस्सेदार है.

अमेरिका में पढ़ने या काम करने जाने के लिए वीजा मिलने में होने वाली मुश्किलों के आसान होने के आसार हैं. अमेरिकी दूतावास इस साल 10 लाख से अधिक भारतीय छात्रों को वीजा दे सकता है. इसके अलावा, उच्च कौशल के कामकाजी लोगों को दिये जाने वाले एच-1बी और एल वीजा के लिए भारत के लोगों को प्राथमिकता दी जायेगी. अमेरिका ये वीजा दूसरे देशों के उन पेशेवरों को देता है, जिनके पास सैद्धांतिक या तकनीकी विशेषज्ञता होती है.

उल्लेखनीय है कि हाल के दिनों में भारतीय विदेश मंत्रालय ने लगातार इस मुद्दे को अमेरिकी सरकार के सामने उठाया है कि दोनों देशों के बीच हर मामले में नजदीकी बढ़ने के बावजूद अमेरिका की वीजा प्रणाली भारतीय आवेदनकर्ताओं को लेकर गंभीर नहीं है. बहुत से ऐसे मामले हैं, जहां भारतीयों को सारी औपचारिकताओं को पूरी करने के बाद भी वीजा मिलने में कई महीने लग जाते हैं. अक्सर यह अवधि साल भर से अधिक होती है. अमेरिकी नीतियों में तो पेंच रहा ही है, साथ में अमेरिका का यह कहना रहा है कि ऐसा संसाधनों के अभाव में होता है.

इस पर भारत सरकार ने समुचित सहयोग करने का भरोसा भी दिया था. इसका एक परिणाम यह हुआ है कि हैदराबाद में अमेरिका ने नये भवन में अपना वाणिज्य दूतावास स्थापित किया है, जो अपेक्षाकृत बड़ा है और वहां अधिक आवेदनों का निपटारा हो सकता है. अमेरिका में पढ़ाई करने वाले विदेशों छात्रों में दूसरे स्थान पर भारतीय हैं. पहले स्थान पर चीन आ गया है. इसी तरह, भारत और चीन से सबसे अधिक उत्कृष्ट कौशल के लोग अमेरिका जाते हैं या कामकाजी वीजा के लिए आवेदन करते हैं.

अमेरिका की तकनीकी कंपनियां इन कौशलयुक्त प्रतिभाओं पर ही निर्भर हैं. जानकारों की मानें, तो अमेरिकी वीजा प्रक्रिया में मुश्किलें इसलिए भी आती हैं, क्योंकि अमेरिका की घरेलू और विदेश नीति वीजा का इस्तेमाल दबाव बनाने के लिए भी करती है. आज की विश्व व्यवस्था में भारत की स्थिति निरंतर मजबूत हो रही है. भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और विकासशील देशों के नेतृत्व की कमान में हिस्सेदार है.

स्वतंत्र विदेश नीति पर चलने के साथ भारत की प्रतिष्ठा बढ़ी है, पर यह कुछ देशों को स्वाभाविक रूप से रास नहीं आ रहा है. लेकिन भारत पर दबाव बनाने की कोशिशें अब बेमतलब साबित होने लगी हैं. अमेरिकी सरकार पर वहां के संस्थानों का दबाव भी बढ़ रहा है क्योंकि भारतीय प्रतिभा के बिना अमेरिकी विकास पर नकारात्मक असर हो रहा है.

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