डाटा खपत में किफायत बरतें
हमारे देश में मौजूदा दूरसंचार ढांचा इतना सक्षम नहीं है कि वह तेजी से बढ़ी मांग का सामना कर सके और समुचित स्पीड से नेटवर्क एवं कनेक्टिविटी मुहैया करा सके.
बालेंदु शर्मा दाधीच
तकनीकी विशेषज्ञ
balendudadhich@gmail.com
कोरोना वायरस के लगातार बढ़ते संक्रमण और उससे ग्रस्त होने की आशंका में आज दुनिया का बहुत बड़ा हिस्सा अपने घरों में बंद है. ऐसी स्थिति में इंटरनेट हम सबके लिए ऑक्सीजन जैसा बन गया है. लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग (मिलने-जुलने से परहेज) के समय में इंटरनेट के बिना सामान्य जिंदगी की कल्पना करना बेहद मुश्किल है. मनोरंजन से लेकर बातचीत तक और सूचनाएं पाने से लेकर दफ्तर का कामकाज निपटाने तक में हम सक्षम नहीं रहेंगे, अगर इंटरनेट अपनी पूरी रफ्तार के साथ हमारे साथ नहीं होगा. आज जबकि करोड़ों लोग अपने दफ्तरों में नहीं जा रहे हैं और वर्क फ्रॉम होम यानी घर से ही दफ्तर का काम कर रहे हैं, इंटरनेट हमारे लिए भोजन से ज्यादा नहीं, तो कमोबेश भोजन जैसी ही एक बड़ी जरूरत बन गया है.
लेकिन जिस अंदाज में पूरी दुनिया में लोग अपने स्मार्टफोन और कंप्यूटर पर इंटरनेट का बहुत ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं, उसकी वजह से ऐसा भी हो सकता है कि इंटरनेट पर बढ़ता बोझ सारे तकनीकी ढांचे को ही कहीं ले न बैठे. हो सकता है कि इंटरनेट बढ़ती मांग को पूरा करने में नाकाम हो जाये और यह भी हो सकता है कि हमारे 4जी तथा ब्रॉडबैंड कनेक्शनों की बैंडविड्थ इतनी ज्यादा खर्च हो जाये कि तब हमारे पास वीडियो देखने और चैट करने के लिए तो छोड़िये, बेहद जरूरी सरकारी कामों और इलाज में मदद के लिए भी इंटरनेट कनेक्टिविटी की गुंजाइश न रह जाये.
जिन लोगों को आनेवाले संकट का पता है या उसका अनुमान लगा पा रहे हैं, वे स्वाभाविक रूप से चिंतित हैं. भारत के सेलुलर ऑपरेटर एसोसिएशन ने दूरसंचार मंत्रालय को पत्र लिखकर कहा है कि वीडियो स्ट्रीमिंग तथा ओवर द टॉप एप्स का संचालन करनेवाली कंपनियों को यह निर्देश दिया जाये कि वे अपनी स्ट्रीमिंग का रिजोल्यूशन कम करें ताकि दबाव कम हो सके. अगर देशभर के लोगों से कहा जाये कि वे कम रिजोल्यूशन पर वीडियो या फिल्में देखें, तो शायद उसका इतना जल्दी और सटीक परिणाम नहीं मिल पाये. परंतु अगर चंद कंपनियां, जो इस बाजार को कंट्रोल करती हैं, वे अपने स्तर पर फैसला कर लें, तो बैंडविड्थ की खपत को कम किया जा सकता है.
इन दिनों इंटरनेट पर उन्हीं चीजों की सबसे ज्यादा खपत हो रही है, जिन पर सबसे ज्यादा बैंडविड्थ या डेटा खर्च होता है, जैसे कि वीडियो कॉल, नेटफ्लिक्स जैसे ओटीटी एप्स की फिल्में और कार्यक्रम, यूट्यूब के वीडियो, वर्क फ्रॉम होम के टूल्स (टीम्स, जूम और स्लैक आदि). छात्रों की कक्षाएं भी ऑनलाइन हो गयी हैं, तो जिम तथा योग की क्लासेज भी वीडियो के जरिये दी जा रही हैं. इन सबके बीच जो सबसे जरूरी चीज है, वह है इंटरनेट और आपका डेटा प्लान.
हो सकता है कि आपको यह मजाक लगे, लेकिन आपने ऐसी बहुत सारी खबरें पढ़ी ही होंगी कि जब बहुत ज्यादा डिमांड या खपत होने लगती है, तो बहुत बड़े बड़े इंटरनेट ठिकाने भी ठप हो जाते हैं. जरा सोचिए कि क्या यही बात समूचे इंटरनेट के साथ नहीं हो सकती है? वजह सीधी सी है. आम तौर पर इंटरनेट पर जितना डाउनलोड होता था, आज का डेटा डाउनलोड उससे कई गुना अधिक बढ़ गया है. कम से कम डेढ़ गुना तो आप इसे आसानी से मान सकते हैं. यह समझा जाना चाहिए कि इंटरनेट के मौजूदा इन्फ्रास्ट्रक्चर की एक सीमा है. अब सवाल यह है कि क्या हम उस सीमा के करीब पहुंच रहे हैं और क्या हम उस सीमा को लांघ सकते हैं? अहम सवाल यह है कि क्या तब इंटरनेट का सारा ढांचा भरभराकर गिर सकता है और हमारी दुनिया कोरोना वायरस के साथ-साथ संचार और सूचना के एक बहुत बड़े संकट में चली जा सकती है.
इसी आशंका के मद्देनजर यूरोपीय संघ ने कुछ दिन पहले सभी वीडियो शेयरिंग वेबसाइटों और प्लेटफॉर्मों से अपील की थी कि वे हाइ डेफिनेशन वीडियो की स्ट्रीमिंग करना बंद कर दें. जब जरूरी न हो, तब एचडी वीडियो का इस्तेमाल न किया जाये, ऐसा उन्होंने आग्रह किया है. फेसबुक भी कह चुका है कि भारी मांग के कारण उसकी सेवाओं पर असर पड़ा रहा है. इस समय भारत में औसतन प्रति व्यक्ति 10.7 गीगाबाइट डेटा का मासिक इस्तेमाल किया जा रहा है. अगले एक महीने में यह कम से कम डेढ़ गुना बढ़ सकता है. हमारे देश में मौजूदा दूरसंचार ढांचा इतना सक्षम नहीं है कि वह तेजी से बढ़ी मांग का सामना कर सके और समुचित स्पीड से नेटवर्क एवं कनेक्टिविटी मुहैया करा सके.
आप अपने टेलीफोन कॉल्स के ड्रॉप होने की समस्या से बखूबी परिचित हैं, जो बरसों बाद भी हल नहीं हो सकी है, यहां तक कि सरकार की ओर से दूरसंचार कंपनियों को दी गयीं तमाम चेतावनियों के बावजूद भी. यही हालत इंटरनेट सेवाओं के साथ हो सकती है और तुरंत इस आशंका के समुचित समाधान के लिए पहलकदमी नहीं हुई, तो घर में बंद रहते हुए रोजमर्रा के जीवन को काटना भी मुश्किल होगा और घर से दफ्तर का काम करना भी. जरूरी सेवाओं को मुहैया कराने और संक्रमण की रोकथाम पर भी नकारात्मक असर पड़ेगा.
यूरोपीय संघ के इस आग्रह के जवाब में कंटेंट पेश करनेवाली इंडस्ट्री ने अपनी तरफ से कुछ कदम उठाना शुरू कर दिया है. वीडियो स्ट्रीमिंग करनेवाली तथा ओवर द टॉप या ओटीटी कही जानेवाली वेबसाइटों तथा एप्स ने अपने वीडियो स्ट्रीमिंग की क्वालिटी को कम करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है.
आप जानते हैं कि ज्यादा बेहतर क्वालिटी का वीडियो देखने पर बहुत ज्यादा डेटा डाउनलोड होता है, जबकि कम क्वालिटी के मामले में बात एकदम विपरीत है. नेटफ्लिक्स ने ऐलान किया है कि वह अगले एक महीने के लिए अपने वीडियो की बिट रेट घटाने जा रही है. यूट्यूब, अमेजॉन और एप्पल ने भी अपने-अपने प्लेटफॉर्मों पर वीडियो स्ट्रीमिंग की क्वालिटी घटाने का फैसला किया है. इससे काफी फर्क पड़ जाना चाहिए. अलबत्ता, ऐसी विकट स्थिति में यह बहुत आवश्यक है कि आप और हम भी अगर इंटरनेट की खपत में किफायत बरतें, तो इसका अनंत काल तक इस्तेमाल करते रह सकते हैं. जैसे पानी के लिए कहा जाता है कि उसकी बूंद-बूंद बचाइये, वैसे ही मैं कहता हूं कि हमें इंटरनेट का एक-एक एमबी डेटा भी बेवजह खर्च करने से बचना है.