जयंती विशेष : अंतरिक्ष अनुसंधान के अग्रदूत विक्रम साराभाई

Vikram Sarabhai : वे जीवनभर प्रयासरत रहे कि विज्ञान के विभिन्न प्रयोग आम आदमी के काम आएं. उनका मानना था कि ऐसा नहीं हुआ, तो वैज्ञानिक प्रयोगों की कोई सार्थकता नहीं रहेगी. साल 1975 में भारत ने एक रूसी कॉस्मोड्रोम से ‘आर्यभट्ट’ उपग्रह को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित कर दुनिया को चकित कर डाला. यह विक्रम की परियोजना की सफलता थी.

By कृष्ण प्रताप सिंह | August 12, 2024 7:15 AM

Vikram Sarabhai : हम जब भी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की अगुआई में देश को अंतरिक्ष में ऊंची छलांगें लगाते देखते हैं, तो गर्व से भर जाते हैं. क्या ऐसे अवसरों पर हमें इसरो की नींव की ईंट रहे वैज्ञानिक विक्रम अंबालाल साराभाई की याद भी आती है? उनकी ही कमान में 1962 में गठित भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति को 15 अगस्त, 1969 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का रूप दिया गया. विक्रम ‘भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के पितामह’ हैं. वे 1963 में 21 नवंबर को केरल में तिरुअनंतपुरम के पास थुम्बा में देश का पहला रॉकेट लांच कर ‘रॉकेट पिता’ भी बन चुके थे. दुनिया के महान भौतिक विज्ञानियों में शुमार विक्रम खगोलशास्त्री और उद्योगपति भी थे.

वे जीवनभर प्रयासरत रहे कि विज्ञान के विभिन्न प्रयोग आम आदमी के काम आएं. उनका मानना था कि ऐसा नहीं हुआ, तो वैज्ञानिक प्रयोगों की कोई सार्थकता नहीं रहेगी. साल 1975 में भारत ने एक रूसी कॉस्मोड्रोम से ‘आर्यभट्ट’ उपग्रह को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित कर दुनिया को चकित कर डाला. यह विक्रम की परियोजना की सफलता थी.


देश 24 जनवरी, 1966 को एक विमान दुर्घटना में अपने परमाणु कार्यकम के जनक होमी जहांगीर भाभा को गंवा कर ठगा-सा रह गया था. उनके रहते हमारा परमाणु कार्यक्रम दुनिया की कई शक्तियों की आंखों की किरकिरी बना हुआ था, जिसके चलते उक्त दुर्घटना को लेकर यह संदेह भी जताया गया. तब यह सवाल गंभीर था कि उनकी जगह किसे दी जाए, जो उक्त कार्यक्रम को आगे बढ़ा सके. अंतत: यह तलाश विक्रम साराभाई पर ही खत्म हुई और मई, 1966 में उन्होंने परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष पद का कार्यभार संभाला. साल 1919 में 12 अगस्त को अहमदाबाद के स्वतंत्रता आन्दोलन को समर्पित एक प्रगतिशील विचारों वाले उद्योगपति परिवार में जन्मे विक्रम अपने पिता अंबालाल व माता सरला देवी की आठ संतानों में से एक थे.

उनके माता-पिता वहां ‘रिट्रीट’ नामक निजी स्कूल चलाते थे और उन्होंने प्राथमिक शिक्षा इसी स्कूल से प्राप्त की. गुरुदेव रवीन्द्रनाथ, जे कृष्णामूर्ति, मोतीलाल नेहरु, वी.एस. श्रीनिवास शास्त्री, जवाहरलाल नेहरू, सरोजिनी नायडू, मौलाना आजाद, सी एफ एड्रूज व सी वी रमन जैसी शख्सियतें जब भी अहमदाबाद आतीं, उनके माता-पिता की अतिथि बनती थीं. एक बार तो महात्मा गांधी भी उनके घर में रहे थे. बालक विक्रम का सौभाग्य कि उस पर इन महान व्यक्तित्वों के सान्निध्य का गहरा असर हुआ.


द्वितीय विश्वयुद्ध की शुरुआत में वे कैम्ब्रिज से अध्ययन कर वापस आये तथा भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरू में सर सीवी रमन के शोध छात्र बनकर वैज्ञानिक गतिविधियों को समर्पित हो गये. साल 1945 में वे फिर कैम्ब्रिज गये और 1947 में लौटकर अहमदाबाद में प्रयोग व अनुसंधान का अपना सपना पूरा करने में लग गये. इससे पहले 1942 में शास्त्रीय नर्तकी मृणालिनी से विवाह कर उन्होंने दांपत्य जीवन में प्रवेश कर लिया था. उनकी दो संतानें हैं- मल्लिका व कार्तिकेय. मल्लिका ने कुचीपुड़ी व भरतनाट्यम की नृत्यांगना, मंचों की अभिनेत्री और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में ख्याति अर्जित की है, तो कार्तिकेय दुनिया के अग्रणी पर्यावरण शिक्षकों में से एक हैं.


उनका 30 दिसंबर, 1971 की रात तिरुअनंतपुरम से मुंबई जाने का कार्यक्रम था. वे अपने उन दिनों के सहयोगी एपीजे अब्दुल कलाम से बात कर सोये ही थे कि उन्हें हृदयाघात हुआ और नींद में ही उनका निधन हो गया. उस वक्त वे महज 52 वर्ष के थे. अंतिम संस्कार के लिए उनके पार्थिव शरीर को तिरुवनंतपुरम से अहमदाबाद ले जाया गया. उन्होंने समय के साथ अपने योगदानों को लेकर भरपूर प्रशंसाएं व मान्यताएं हासिल कीं. उन्होंने 1947 में अहमदाबाद में जो भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला स्थापित की थी, वह आगे चलकर भारत में अंतरिक्ष विज्ञान के उद्गम स्थल के रूप में विख्यात हुई. साल 1962 में उन्होंने शांतिस्वरूप भटनागर पदक प्राप्त किया, तो 1966 में पद्मभूषण. मरणोपरांत उन्हें 1972 में पद्म विभूषण सम्मान से सम्मानित किया गया.

अगले साल 1973 में अंतरराष्ट्रीय खगोलीय संघ ने फैसला किया कि सेरेनिटी सागर में एक चंद्र क्रेटर ‘बेसेल ए’ को साराभाई क्रेटर के रूप में जाना जायेगा. भारत के चंद्र मिशन चंद्रयान-2 के लैंडर (जिसको 20 सितंबर, 2019 को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास उतरना था) का नाम भी विक्रम रखा गया. अहमदाबाद में उनके द्वारा स्थापित एक सामुदायिक विज्ञान केंद्र से भी अब उनका नाम जोड़ दिया गया है. हैदराबाद के बीएम बिड़ला विज्ञान केंद्र में स्थित अंतरिक्ष संग्रहालय भी उनको ही समर्पित है. साल 2019 में उनकी जन्म शताब्दी पर इसरो ने विक्रम साराभाई पत्रकारिता पुरस्कार भी शुरू करने की घोषणा की. यह पुरस्कार उन पत्रकारों को दिया जाता है, जिन्होंने अंतरिक्ष विज्ञान, अनुप्रयोग और अनुसंधान की रिपोर्टिंग के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया हो.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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