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अक्षय ऊर्जा से होगा गांवों का कायापलट

गांधी जी हमेशा ग्रामीण स्वराज की बात करते थे, और अक्षय ऊर्जा उस स्वप्न को साकार कर सकती है. यह ऐसी ऊर्जा होगी जिसका निर्माण गांवों में ही हो सकेगा

अक्षय ऊर्जा की परिकल्पना या सोच अक्षय शब्द से आती है. यानी ऐसी ऊर्जा जिसका क्षय न होता हो, मतलब जो खत्म नहीं होती हो. अक्षय ऊर्जा एक ऐसी ऊर्जा है, जिसका निर्माण और उपयोग करने में हम पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाते. आज के समय में ऊर्जा एक ऐसी जरूरत बन चुकी है जिसके बिना कुछ भी नहीं हो सकता. विकास की कतार में सबसे आखिर में खड़ा व्यक्ति भी किसी-न-किसी रूप में ऊर्जा का इस्तेमाल करता है. अक्षय ऊर्जा आज पूरे विश्व के भीतर एक आंदोलन का रूप ले चुकी है. भारत में भी इसे बढ़ावा देने की कोशिशें हो रही हैं, जिसके दो कारण हैं.

पहला, यह माना जा रहा है कि अक्षय ऊर्जा हमें प्रदूषण के जहर से बचा सकता है. दूसरा, तमाम विशेषज्ञों का मानना है कि अक्षय ऊर्जा ही वह एकमात्र साधन है जिससे देश को ऊर्जा के क्षेत्र में आजादी मिल सकती है और ऊर्जा आयात पर निर्भरता खत्म हो सकती है. अक्षय ऊर्जा आने वाले समय में हमारी जिंदगी का हिस्सा बनने जा रहा है. उदाहरण के लिए, भारत के लिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था अभी भी महत्वपूर्ण है, मगर गांवों में चाहे बिजली हो या रसोई गैस या अन्य चीजें, वे सब बाहर से आती हैं

गांधी जी हमेशा ग्रामीण स्वराज की बात करते थे, और अक्षय ऊर्जा उस स्वप्न को साकार कर सकती है. यह ऐसी ऊर्जा होगी जिसका निर्माण गांवों में ही हो सकेगा, वहीं उसकी कीमत तय होगी और वहीं उसका उपभोग किया जायेगा. गांवों में खेतों के ऊपर, पंचायतों की जमीन या घरों के ऊपर सोलर पैनल लग सकेंगे, या लोग आपस में समूह बनाकर अपनी बिजली बना सकेंगे. उसी बिजली से गांव में लोग ट्यूबवेल, स्ट्रीट लाइट चला सकेंगे या खाना बना सकेंगे या कुटीर उद्योग भी चला सकेंगे.

यदि गांव में जरूरत से ज्यादा बिजली बनती है, तो उसे ग्रिड को बेचा भी जा सकेगा. इसी तरह से, बायोगैस के लिए भी गांवों में प्रचुर संभावनाएं हैं. यदि गांवों में सौर ऊर्जा और बायोगैस का प्रयोग शुरू हो जाए, तो गांव ऊर्जा क्षेत्र में पूरी तरह से स्वावलंबी बन सकते हैं. इनके अतिरिक्त, भारत के एक बहुत बड़े इलाके में विंड टनल्स हैं, यानी वहां हवा की गति बहुत अधिक है. ऐसे इलाकों में पवन चक्की या विंड फार्म लगाये जा सकते हैं. भारत में दक्षिण और पश्चिम भारत में इस तरह से बिजली बनाने का काम शुरू भी हो चुका है.

ये पवन चक्कियां खेतों में लग जाती हैं, जिससे किसी को कोई नुकसान नहीं होता. इसी प्रकार, भारत का तटीय क्षेत्र लगभग साढ़े सात हजार किलोमीटर लंबा है और वहां अक्षय ऊर्जा के विकास की अपार संभावनाएं हैं. वहां समुद्रों के ऊपर पंखों जैसे टर्बाइनों का जाल बिछाकर इतनी अक्षय ऊर्जा का उत्पादन हो सकता है कि जिससे पूरे भारत की जरूरत पूरी हो सकती है. इन तटीय क्षेत्रों के बहुत सारे इलाकों की अर्थव्यवस्था मछली पालन पर निर्भर है और अक्षय ऊर्जा के विकास से वहां की अर्थव्यवस्था में मूलभूत परिवर्तन लाया जा सकता है.

केंद्र सरकार ने पवन ऊर्जा को लेकर एक नयी नीति बनायी है तथा उसके लिए प्रोत्साहन भी दिया जा रहा है. खास तौर पर ओडिशा, तमिलनाडु, गुजरात और महाराष्ट्र की सरकारें इस दिशा में काफी काम कर रही हैं. समुद्री पवन से ऊर्जा के विकास में विदेशी कंपनियां भी बहुत दिलचस्पी दिखा रही हैं, जो अपनी पूंजी तथा तकनीक लेकर आ रही हैं. इनके अलावा, भारत में अक्षय ऊर्जा का एक बड़ा स्रोत हाइड्रोजन से बनने वाली ऊर्जा होगी जो एक तरह से पानी से बनने वाली ऊर्जा है.

इसमें अभी काफी निवेश की जरूरत बतायी जा रही है, लेकिन यह ऐसी ऊर्जा है जिससे गांवों, कस्बों, जिलों में बिजली बनायी जा सकेगी और उससे उस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था चलेगी. अक्षय ऊर्जा के स्रोतों में, भारत के संदर्भ में एक और महत्वपूर्ण स्रोत है हाइड्रोपावर या जल-विद्युत या पनबिजली. इसकी भारत में बहुत पुरानी परंपरा रही है और ऊर्जा जरूरत को पूरा करने में इसका बड़ा योगदान रहा है. इससे भी किसी तरह का नुकसान नहीं होता है.

जलविद्युत बनाने में छोटे प्लांट ज्यादा कारगर हो सकते हैं जिनमें नदी को बांधने की जरूरत नहीं होती. ‘रन ऑफ द रिवर’ एक मिनी पावर प्लांट होता है, जिसमें नदी को थोड़ा सा मोड़कर धारा के नीचे टर्बाइन लगा दिया जाता है, नदी के पानी को रोका नहीं जाता. इसमें गांवों में विस्थापन जैसी कोई समस्या नहीं आती और किसी चीज का क्षय नहीं होता.

कुल मिलाकर, भारत के संदर्भ में अक्षय ऊर्जा से आम गांव में रहने वाले व्यक्ति की अर्थव्यवस्था, पूरे गांव की अर्थव्यवस्था, किसान की अर्थव्यवस्था, ग्रामीण उद्योग-धंधों की अर्थव्यवस्था, इन सबमें एक बहुत बड़ा परिवर्तन आ सकता है. ये सारी बातें संभावनाएं नहीं हैं, भारत इस यात्रा पर आगे बढ़ चुका है. कई क्षेत्रों में हम आगे निकल चुके हैं, कई में गति तेज होनी बाकी है. जैसे, सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और जल-विद्युत के क्षेत्र में भारत आगे है. लेकिन, हाइड्रोजन ऊर्जा के क्षेत्र में भारत को अभी यात्रा शुरू करनी है. हम ऐसा कह सकते हैं कि कोई गाड़ी स्टेशन से चल चुकी है, और कोई गाड़ी अभी स्टेशन से चलने वाली है.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

(बातचीत पर आधारित)

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