फिल्मों में हिंसा और बच्चे
Violence and Children: रिपोर्ट कहती है कि जो माता-पिता बच्चों के प्रति संवेदनापूर्ण व्यवहार करते हैं, उनके बच्चे स्क्रीन पर हिंसक दृश्यों व संवादों से परहेज करते हैं, लेकिन जो अभिभावक सख्ती से पेश आते हैं, उनके बच्चों में न केवल हिंसक हो जाने की आशंका रहती है, बल्कि उनके हिंसक दृश्यों और संवादों में रुचि लेने की आशंका भी बढ़ जाती है.
Violence and Children : जर्नल ऑफ एजुकेशन ह्यूमेनिटीज एंड सोशल साइसेंज का एक हालिया अध्ययन बताता है कि फिल्में, टीवी और वीडियो गेम्स में दिखायी जाने वाली हिंसा का बच्चों पर नकारात्मक असर पड़ता है. अध्ययन के मुताबिक, छोटे बच्चे स्क्रीन पर देखी गयी हिंसा का अनुकरण करते हैं. उन्हें लगता है कि अपनी इच्छित वस्तु पाने के लिए हिंसक होना सही है. ऐसे ही, हिंसक दृश्यों और संवादों के बीच पलते किशोर हिंसा के प्रति संवेदनहीन हो जाते हैं. यानी अपने आसपास होने वाली हिंसा उन्हें परेशान नहीं करती. इससे बचने का तरीका यही है कि अभिभावक बच्चों के लालन-पालन के मामले में जवाबदेही भरा रवैया अपनाएं और बच्चों में सकारात्मक मीडिया रुचि विकसित करें.
रिपोर्ट कहती है कि जो माता-पिता बच्चों के प्रति संवेदनापूर्ण व्यवहार करते हैं, उनके बच्चे स्क्रीन पर हिंसक दृश्यों व संवादों से परहेज करते हैं, लेकिन जो अभिभावक सख्ती से पेश आते हैं, उनके बच्चों में न केवल हिंसक हो जाने की आशंका रहती है, बल्कि उनके हिंसक दृश्यों और संवादों में रुचि लेने की आशंका भी बढ़ जाती है. चूंकि आज के किशोरों और युवाओं में वर्चुअल दुनिया को वास्तविक समझ लेने का भ्रम है, इस कारण फिल्मों में हिंसा को बढ़ावा देने के नतीजे भयावह हो रहे हैं. एक समय हिंदी फिल्मों में हिंसा हॉलीवुड की फिल्मों के जरिये आती थी, लेकिन अब दक्षिण भारत की कुछ फिल्में इस मामले में अग्रणी बनी हुई हैं. बच्चों पर फिल्मों के असर से जुड़े अध्ययन होते रहते हैं.
कुछ साल पहले विज्ञान पत्रिका ‘पीएलओएस’ में खुलासा किया गया था कि बॉलीवुड की फिल्मों में शराब और फास्ट फूड का अधिक सेवन दिखाये जाने का बच्चों पर बुरा असर पड़ रहा है. जाहिर है कि जिस दौर में हर किसी के हाथ में मोबाइल है, उस समय फिल्मों और टीवी में हिंसा व आक्रामकता को प्रमुखता देने की कोशिश बहुत नुकसानदेह हो सकती है. यह कितना दुखद है कि एक तरफ फिल्मों के हिंसक दृश्य और संवाद बच्चों व किशोरों को हिंसा के प्रति कम संवेदनशील बना रहे हैं, दूसरी ओर, सोशल मीडिया का लगातार इस्तेमाल छोटे बच्चों को मानसिक रूप से बीमार बना रहा है.
इसी को देखते हुए ऑस्ट्रेलिया में बच्चों के बीच सोशल मीडिया को प्रतिबंधित करने का कानून लाना पड़ा. हालांकि दुनिया के बड़े हिस्से में इस पर सहमति नहीं है, लेकिन इस पर लगभग सर्वसम्मति है कि आज के इस दौर में हिंसा को हतोत्साहित करने की बड़ी जिम्मेदारी परिवार और समाज की है, जिनमें टीवी में कार्यक्रम तैयार करने वाले और फिल्मकार भी शामिल हैं.