डॉ अमित सिंह, असिस्टेंट प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान, दिल्ली विश्वविद्यालय
amitsinghjnu@gmail.com
अमेरिका ने अपने छात्र वीजा नियमों में जो बदलाव किया है, वह अचानक से नहीं हुआ है. पिछले कुछ वर्षों से पूरे विश्व में डीग्लोबलाइजेशन की मुहिम बहुत तेजी हुई है. यूरोपीय संघ से यूके के निकलने का भी यही कारण है. कोराना संकट के बाद तो लगभग पूरी दुनिया में डीग्लोबलाइजेशन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और जहां पहले से यह प्रक्रिया चल रही थी, वहां तेज हो गयी है.
बहुत से प्रवासी अच्छे आर्थिक अवसरों, स्वास्थ्य व शिक्षा सुविधाओं के लिए अमेरिका या यूरोपीय देशों में आते हैं. इस प्रवासन का बहुत वर्षों से इन देशों के समाज, संस्कृति, राजनीति और अर्थव्यवस्था पर बहुत असर पड़ा है. इन लोगों को लगता है कि दूसरे देश से आये लोग उनकी नौकरी समेत स्वास्थ्य व अन्य सुविधाएं उनसे छीन रहे हैं. उनकी चीजों पर कब्जा कर रहे हैं. इसी कारण धीरे-धीरे क्रमिक तरीके से पूरी दुनिया में, विशेष रूप से पश्चिमी देशों में डीग्लोबलाइजेशन को लेकर कुछ चीजें शुरू हुई.
जब ट्रंप की सरकार आयी तो उनका भी नारा था अमेरिका फाॅर अमेरिकंस और अमेरिका फर्स्ट. कोरोना काल में वीजा पर रोक का मुख्य कारण अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव का होना है. ट्रंप सरकार कई मोर्चों पर असफल रही है, इसी असफलता को ढकने के लिए वह बहुत से प्रपंच रच रही है. पिछले चुनाव में ट्रंप ने जो वादा किया था, वह अभी पूरा नहीं हुआ है. इसी बीच कोराना संकट आ गया.
इस संकट के कारण सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक समेत तमाम पहलुओं पर अमेरिका समेत पूरे विश्व पर प्रभाव पड़ा है. और उसकी वजह से पूरे विश्व में कई उद्योग बंद हो गये हैं, विशेष रूप से अमेरिका में इसका काफी असर हुआ है. चीन के साथ व्यापार युद्ध के कारण अमेरिका की अर्थव्यवस्था पहले से ही धीमी हो रही थी जो कोरोना के कारण और धीमी हो गयी और हजारों लोगों की नौकरियां चली गयी हैं. अमेरिका में कोराना बहुत हद तक फैल चुका है और स्वास्थ्य सुविधाओं के ऊपर उनका बहुत खर्च हो रहा है.
ऐसे में ट्रंप प्रशासन को लग रहा है कि प्रवासियों को वापस उनके देश भेजकर वे अपने स्वास्थ्य व्यवस्था को चरमराने से रोक लेंगे और कोरोना संकट से अच्छी तरह निपट पायेंगे. अमेरिका में विदेशी विद्यार्थियों की संख्या बहुत ज्यादा है. इनमें सबसे अधिक संख्या चीनियों की है, उसके बाद भारतीयों की. वर्ष 2019 में लगभग दो लाख अंतरराष्ट्रीय छात्र अमेरिका पढ़ने गये. ये अंतरराष्ट्रीय छात्र प्रतिवर्ष करीब 41 अरब अमेरिकी डाॅलर अमेरिका की अर्थव्यवस्था में योगदान देते हैं, जिनमें भारतीय विद्यार्थियों द्वारा दिया गया योगदान लगभग 20 प्रतिशत है.
‘ब्लैक लाइफ मैटर्स’ आंदोलन पर रोक लगाने के लिए भी वीजा पर रोक लगायी गयी है. इन आंदोलनों में शामिल होनेवाले ज्यादातर लोग युवा हैं, जिनमें कई छात्र हैं. इस आंदोलन में भाग लेने वालों में दक्षिण एशियाई लोगों की संख्या भी अच्छी-खासी है क्योंकि उन्हें कालों की श्रेणी में रखा जाता है और उनके साथ भी रंगभेद होता है. यहां भारतीय लोग दक्षिण एशिया का प्रतिनिधित्व करते हैं. कोरोना के कारण क्लास चल नहीं रही है और ज्यादातर विश्वविद्यालयों में ऑनलाइन क्लास हो गयी है. हाॅवर्ड विश्वविद्यालय ने बोला है कि वह 2021 जुलाई तक अपनी ऑनलाइन क्लास जारी रखेगा. ऐसे में अमेरिका को लगता है कि यदि ये छात्र भारत वापस लौट आते हैं तो ‘ब्लैक लाइफ मैटर्स’ में कुछ छात्रों की भागीदारी कम हो जायेगी.
पहले भी देखने में आया है कि ट्रंप सरकार ने एच1बी वीजा के नियम-काूनन कठोर किये हैं. भारत सरकार के हस्तक्षेप करने के बाद भारत के लिए थोड़ी रियायतें भी दी गयी हैं. लेकिन कोरोना संकट के बाद अमेरिका ने दिसंबर 2020 तक एच1बी वीजा रद्द कर दिया है. क्योंकि इससे जो कुशल कामगार हैं, वो अमेरिका में जाकर अच्छी नौकरी ले लेते थे. वीजा पर रोक लगाने से भारत से कुशल कामगारों का अमेरिका आना रुक जायेगा और उनकी जगह वे अपने देशवासियों को नौकरी दे पायेंगे. तो वीजा पर रोक के माध्यम से ट्रंप प्रशासन अपने बहुत से हित साधना चाहता है.
यदि ऑनलाइन क्लास एक वर्ष तक चलता है और छात्र वापस भारत आते हैं, तो नियम के अनुसार पांच महीने तक अमेरिका में नहीं रहने पर उनका एफ1 वीजा रद्द हो जायेगा और उन्हें वीजा के लिए दुबारा आवेदन करना होगा. इस कारण विश्वविद्यालय भी उनके उपर कुछ कार्रवाई कर सकती है. छात्रों को यह भी डर है कि ऐसी स्थिति में कहीं उनका कोर्स डिस्कंटीन्यू न हो जाये और उनका करियर चौपट न हो जाये.
कोरोना काल में यदि वे वापस भारत आते हैं तो उन्हें इस बात का भी डर है कि यात्रा करने पर कहीं वे संक्रमित न हो जायें. हालांकि दोनों देशों के बीच बातचीत हुई है और अमेरिकी प्रशासन ने बोला है कि वह कुछ ऐसी रियायतें देगा जिससे भारतीय या भारतीय विद्यार्थियों को ज्यादा परेशानी न हो. हर वर्ष करीब दो लाख भारतीय छात्र अमेरिका पढ़ने जाते हैं, और इतने बड़े पैमान पर वीजा रद्द होने पर छात्रों को वापस आना होगा. वर्तमान परिस्थिति में अगर छात्र देश लौटते हैं तो सरकार के लिए भी सामाजिक, आर्थिक समेत तमाम तरह की परेशानियां खड़ी हो जायेंगी.
(बातचीत पर आधािरत)