गर्म होते समुद्र
अगर समुद्र के पानी का तापमान बढ़ता रहा, तो धरती के तापमान को नियंत्रित करने के प्रयासों को बड़ा झटका लग सकता है.
धरती का तापमान बढ़ने के साथ-साथ समुद्र भी गर्म होते जा रहे हैं. बीते चार साल से समुद्री तापमान रिकॉर्ड स्तर पर था, पर मार्च के मध्य में यह अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया. इस रुझान को देखकर विशेषज्ञ आशंकाओं से भर गये हैं कि आगे इसके परिणाम कितने गंभीर हो सकते हैं. इस गर्मी में यह पूर्वानुमान है कि अल नीनो का प्रभाव रहेगा, जिसके कारण बहुत अधिक गर्मी पड़ने, खतरनाक चक्रवातों के आने और प्रवाल भित्तियों के बड़े नुकसान होने की आशंका है.
पिछले एक-डेढ़ दशक में कई ऐसे वर्ष रहे हैं, जब औसत तापमान ऐतिहासिक रूप से उच्च स्तर पर रहा है. ऐसी स्थिति में ला नीना के चलते वातावरण में ठंडक आने से भी कोई विशेष असर नहीं पड़ रहा है. ग्लेशियर पिघलने से समुद्री जल स्तर में वृद्धि हो रही है. इससे तटीय इलाकों के डूबने के खतरे के साथ समुद्री तूफान आने तथा समुद्री जीवों एवं पौधों के तबाह होने का संकट गहरा होता जा रहा है. अगर समुद्र के पानी का तापमान बढ़ता रहा, तो धरती के तापमान को नियंत्रित करने तथा जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न समस्याओं के समाधान के प्रयासों को बड़ा झटका लग सकता है.
वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन के कारण 2000 से बाढ़ की घटनाओं में 134 प्रतिशत वृद्धि हुई है और सूखे की अवधि में 29 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. भारत ऐसे संकटों से सबसे अधिक प्रभावित देशों में है. हमारा समुद्र तट बहुत वृहत है तथा इसके निकट बड़ी आबादी की बसावट है तथा विभिन्न प्रकार की आर्थिक गतिविधियां होती हैं. समुद्री तापमान में बढ़ोतरी से तटीय क्षेत्र के पर्यावरण एवं जलवायु पर नकारात्मक असर होगा. हमारा देश दुनिया के बहुत से हिस्सों की तरह बढ़ती गर्मी और समय से पहले तापमान अधिक होने की समस्या से जूझ रहा है.
वर्ष 2023 लगातार दूसरा ऐसा साल है, जब भारत समय से पहले गर्मी आने की चुनौती का सामना कर रहा है. शोध बताते हैं कि भारत के 45 प्रतिशत से ज्यादा जिलों के भू-परिदृश्य के पैटर्न बदल गये हैं, जिससे वे जलवायु परिवर्तन के लिए अत्यधिक संवेदनशील यानी सबसे पहले प्रभावित होने वाले क्षेत्र बन गये हैं. जलवायु परिवर्तन की चुनौती ऐसी ही बनी रही, तो भारत के 14 राज्यों में 2050 तक प्राकृतिक आपदाओं का संकट बहुत अधिक बढ़ जायेगा.
पिछले कुछ वर्षों से अमेरिका, यूरोप जैसे अपेक्षाकृत ठंडे क्षेत्रों में गर्मी तेजी से बढ़ी है. साथ ही, जंगलों में आग लगने, सूखा पड़ने, बाढ़ आने जैसी स्थितियां पैदा हो रही हैं. तापमान की समस्या वैश्विक है, इसलिए सभी देशों को मिलकर समाधान के लिए तुरंत सक्रिय होना होगा.