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जलवायु परिवर्तन से जल संकट का खतरा

यह सौभाग्य की बात है कि हमारे देश में लगभग 4000 अरब क्यूबिक मीटर जल वर्षा से प्राप्त होता है, जिसमें से लगभग 2000 क्यूबिक मीटर जल नदी, झील, जलाशय और हिमनदों में उपलब्ध है.

By अशोक भगत | July 16, 2024 12:33 PM
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जलवायु परिवर्तन आज की मुख्य समस्या में से एक है, जिसका भीषण प्रभाव पर्यावरण, मानव एवं जीव जंतु के साथ प्राकृतिक संसाधनों एवं अर्थव्यवस्था पर भी दिखने लगा है. ‘नेचर’ जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया है कि 2050 तक जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक आय में 19 प्रतिशत की कमी आ जायेगी. इसका प्रभाव भारत पर ज्यादा पड़ेगा, जहां 22 प्रतिशत की कमी का अनुमान है. इसमें सबसे बड़ा हिस्सा जल का बताया गया है. जलवायु परिवर्तन से प्रभावित क्षेत्रों में जल संसाधन एक प्रमुख चिंता का विषय है. जल के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है. स्वच्छ जल मानव जीवन के आर्थिक विकास के साथ-साथ पारिस्थितिकीय तंत्र के लिए बहुत आवश्यक है. जहां इसमें खतरा पैदा हो रहा है, वहीं वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड जैसी ग्रीनहाउस गैसों की वृद्धि से ओजोन लेयर बुरी तरह प्रभावित हो रहा है. इसके कारण पृथ्वी के तापमान में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. तापमान बढ़ने के कारण वर्षा के पैटर्न में बदलाव आया है. समुद्र तल के जल स्तर में भी वृद्धि देखी जा रही है. इन तमाम परिवर्तनों के कारण बाढ़ एवं सूखे जैसी परिस्थितियां दिखाई दे रही हैं.

जलवायु परिवर्तन का असर पूरी दुनिया में विभिन्न प्रकार से दिखाई दे रहा है, जिसके कारण जलाशयों के आकार में संकुचन, हिमनदों में बर्फ का पिघलना, छोटे-छोटे जल स्रोतों का सूखना, नदियों में पानी के स्तर में गिरावट, भूमिगत जल स्तर में गिरावट आदि प्रमुख हैं. जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अगर इसी प्रकार बढ़ता रहा, तो आने वाले समय में जल संकट से हमें जूझना पड़ेगा. दरअसल, प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन लगभग 135 लीटर (शहरी क्षेत्र) और 200 लीटर (महानगर क्षेत्र) में पानी की आवश्यकता होती है, पर फिलहाल देश के बड़े क्षेत्र की आबादी को 55 लीटर स्वच्छ जल उपलब्ध कराने में भी हमारा प्रबंधन असमर्थ है. एक गैर सरकारी संगठन द्वारा जारी आंकड़े के अनुसार, विश्व स्तर पर लगभग 2.3 अरब लोग जल की कमी वाले देशों में रहते हैं.

लगभग दो अरब लोगों को शुद्ध पेयजल नहीं मिल पा रहा है. भारत जैसे देश में केंद्रीय भूजल बोर्ड के द्वारा किये गये सर्वेक्षण से पता चला है कि कुल क्षेत्र के 16 प्रतिशत हिस्से में जल की वार्षिक पुनर्भरण मात्रा से वार्षिक निकासी अधिक है. इससे स्पष्ट है कि पानी का दोहन से भूजल स्तर में लगातार कमी आ रही है. जमीन के अंदर पानी के भंडारण से ज्यादा दोहन हो रहा है. यह सौभाग्य की बात है कि हमारे देश में लगभग 4000 अरब क्यूबिक मीटर जल वर्षा से प्राप्त होता है, जिसमें से लगभग 2000 क्यूबिक मीटर जल नदी, झील, जलाशय और हिमनदों में उपलब्ध है. बावजूद इसके इस जल की मात्रा का वितरण पूरे देश में एक समान नहीं है, जिसके कारण कहीं पर सूखे और कहीं पर बाढ़ जैसी स्थितियां पैदा होती रहती हैं. इस वर्षा जल की बड़ी मात्रा बंगाल की खाड़ी में चली जाती है, जिसका हम विदोहन नहीं कर पा रहे हैं.

जलवायु परिवर्तन के कारण जल चक्र में बड़े बदलाव दिखाई दे रहे हैं, जिसके कारण 1971 से 2020 के बीच लगभग एक से 1.7 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा में कमी आयी है. इससे 25 से 30 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी हमें कम प्राप्त हो पा रहा है. हम 600 मिलियन लोगों को प्रतिदिन 135 लीटर वार्षिक घरेलू जल उपलब्ध कराने में कमजोर पड़ रहे हैं. भूजल स्तर में उत्तरोत्तर गिरावट के कारण कृषि जल की 60 प्रतिशत से अधिक मांग भी भूजल के द्वारा ही पूरा किया जा रहा है. इसमें से 2.6 मिलियन गहरे नलकूप, 9.1 मिलियन उथले नलकूप एवं 8.8 मिलियन कुआं हैं. फिलहाल इससे काम चलाया जा रहा है. इस जलवायु परिवर्तन से जल संसाधनों को संरक्षित करना एवं बनाये रखना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है.

इसके लिए सर्वप्रथम लोगों में जलवायु परिवर्तन के कारणों एवं इससे निपटने हेतु जागरूकता लाने की आवश्यकता है. इससे बेहतर कल की शुरुआत हो सकती है. इसके लिए जल संरक्षण, जल बचत तकनीक, जल पुनः उपयोग, भूमिगत जल पुनः भरण, वृक्षारोपण, जल स्रोतों का संरक्षण, जल उपयोग तकनीक का विकास आदि पर ध्यान देना होगा. इसके द्वारा जल संसाधनों का निरंतर एवं सुनिश्चित उपयोग क्षमता में वृद्धि की जा सकती है. इसके साथ ही हमें कृषि के क्षेत्र में सूक्ष्म सिंचाई का बड़े पैमाने पर उपयोग करना होगा. देश में बड़े पैमाने पर सूक्ष्म सिंचाई के द्वारा 144.99 लाख हेक्टेयर रकबा (2021-22) को आच्छादित किया गया है. इसे और बढ़ाने की आवश्यकता है.

जलवायु परिवर्तन एवं जल संसाधन संरक्षण के साथ-साथ जल स्रोतों के संवर्धन को भी अभियान का हिस्सा बनाना वर्तमान की सबसे प्रमुख आवश्यकता है. ग्रीन हाउस गैसों को कम करना, वर्षा जल का संचयन, जल भंडारण क्षमता में वृद्धि करना, मेड़बंदी, बोराबांध इत्यादि को बढ़ावा देने की आवश्यकता को हमें आज का युग-धर्म बना लेना चाहिए. प्राकृतिक जल प्रबंधन व जल संरक्षण के साथ साथ जल स्रोतों के संवर्द्धन की स्पष्ट नीति का अभाव भी वर्तमान समस्याओं का प्रमुख कारक है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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