बढ़ेगा गेहूं निर्यात
पिछले साल भारत ने 61.2 लाख टन गेहूं का निर्यात किया था, जबकि उसके पहले के साल में यह आंकड़ा केवल 11.2 लाख टन रहा था.
रूस-यूक्रेन संघर्ष से एक ओर जहां तेल, गैस और अन्य खनिज पदार्थों की सुचारु आपूर्ति पर प्रश्नचिह्न लग गया है, वहीं खाद्य पदार्थों के अभाव की आशंकाएं भी पैदा हो गयी हैं. उल्लेखनीय है कि रूस दुनिया का सबसे बड़ा गेहूं निर्यातक है और यूक्रेन भी बड़ा भागीदार है. ऐसे में वैश्विक बाजार में भारतीय गेहूं की मांग बढ़ने की संभावना है. चीन के बाद भारत दुनिया का सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक देश है.
कुछ समय से अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं और अन्य खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ रही हैं. यूरोप में भू-राजनीतिक संकट गहराने के बाद दाम तेजी से बढ़े हैं. साथ ही, आयातक देश विकल्पों की तलाश में हैं क्योंकि रूस-यूक्रेन युद्ध की समाप्ति के बाद भी बाजार में लंबे समय तक अनिश्चितता रह सकती है. रूस पर लगाये गये प्रतिबंधों के कारण उसकी आपूर्ति बाधित रहेगी.
भारत के पास घरेलू उपभोग के बाद बड़ी मात्रा में गेहूं का अधिशेष है. इसके निर्यात में बढ़ोतरी से अधिक दामों का लाभ होने के साथ व्यापार संतुलन की खाई को पाटने में भी मदद मिलेगी. कोरोना महामारी के दौरान जब वैश्विक आपूर्ति शृंखला में अवरोध आया था, तब भारत से गेहूं समेत विभिन्न कृषि उत्पादों के निर्यात में वृद्धि हुई थी. यह सिलसिला अब भी जारी है.
सरकार की ओर से आगामी सप्ताहों में इस संबंध में अनेक उपाय किये जा रहे हैं. सरकार द्वारा स्वीकृत 213 प्रयोगशालाओं में गेहूं की गुणवत्ता का परीक्षण किया जायेगा ताकि अच्छे दाम भी मिलें और आयातक देशों में भारतीय गेहूं के प्रति भरोसा भी बढ़े. इसकी निगरानी का जिम्मा भारतीय मानक ब्यूरो को दिया गया है. उत्पादकों और वितरकों से बंदरगाहों तक गेहूं की त्वरित ढुलाई सुनिश्चित करना भी सरकार के ध्यान में है.
इसके लिए अतिरिक्त रेल डिब्बों को उपलब्ध कराया जायेगा. बंदरगाहों को भी निर्देश जारी कर दिया गया है कि वे गेहूं निर्यात को प्राथमिकता दें. बंदरगाहों के आसपास गोदामों की संख्या भी बढ़ायी जा रही है. अब तक मुख्य रूप से पश्चिमी भारत के दो बंदरगाहों से गेहूं बाहर भेजा जाता था, पर अब अन्य बंदरगाहों, विशेष रूप से पूर्वी हिस्से में स्थित बंदरगाहों, का भी इस्तेमाल होगा.
इन उपायों की आवश्यकता इसलिए भी है कि धीमी ढुलाई और कमतर गुणवत्ता के कारण निर्यात बढ़ाने की पहले की कोशिशों के अपेक्षित परिणाम नहीं मिले थे. पर कुछ समय से स्थिति में सुधार है और विभिन्न देश भारत से खरीद भी करना चाहते हैं.
पिछले साल भारत ने 61.2 लाख टन गेहूं का निर्यात किया था, जबकि उसके पहले के साल में यह आंकड़ा केवल 11.2 लाख टन रहा था. इस महीने से गेहूं की ताजा उपज बाजार में आ जायेगी. माना जा रहा है कि सरकारी प्रयासों की वजह से निर्यात को एक करोड़ टन तक पहुंचाया जा सकता है. निर्यात बढ़ने से एक ओर जहां किसानों की आमदनी बढ़ेगी, वहीं सरकारी खरीद की मात्रा में भी कमी आयेगी.