क्या पुतिन को झुका पायेंगे पश्चिमी देश
रूस द्वारा यूक्रेन पर युद्ध थोपना गलत है, लेकिन ‘नाटो’ देशों द्वारा यूक्रेन में प्रवेश की कोशिश उसके मूल में है. यदि यूक्रेन और ‘नाटो’ देश अपनी हठधर्मिता छोड़ दें, तो शांति भी स्थापित हो सकती है और आर्थिक संकट भी दूर हो सकते हैं.
रूसी राष्ट्रपति पुतिन द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण के बाद से अमेरिका और उसके सहयोगी देशों सहित लगभग 50 देशों ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाये हैं. इतिहास गवाह है कि कुछ मामलों को छोड़ कर पश्चिमी देश ऐसे प्रतिबंधों को लगा कर या लगाने की धमकी देकर अपनी बातें शेष विश्व से मनवाते रहे हैं. फरवरी, 2022 से पूर्व भी अमेरिका द्वारा रूस पर कई प्रतिबंध लगाये जा रहे थे, लेकिन उसके बाद और अधिक प्रतिबंध लगाये गये हैं.
पुतिन ने अपने हालिया बयान में कहा है कि यूरोपीय देश रूस पर प्रतिबंध लगाकर अपने ही नागरिकों के जीवन स्तर की बलि तो चढ़ा ही रहे हैं, गरीब मुल्कों की खाद्य सुरक्षा भी खतरे में डाल रहे हैं. रूस पर प्रतिबंधों के चलते गरीब मुल्क, जो खाद्य पदार्थों के लिए शेष दुनिया पर निर्भर करते हैं, उनके लिए न केवल खाद्य आपूर्ति प्रभावित हो रही है, बल्कि बढ़ती कीमतों के चलते खाद्य पदार्थ गरीब मुल्कों की पहुंच से भी बाहर हो रहे हैं.
इन प्रतिबंधों के चलते बड़ी संख्या में अमेरिकी और यूरोपीय कंपनियां रूस छोड़ रही हैं. रूस ने तकनीकी कारणों का हवाला देते हुए जर्मनी जाने वाली गैस पाइपलाइन ‘नार्ड स्ट्रीम’ बंद कर दी है और इसके चलते यूरोपीय देश रूसी गैस और तेल पर अपनी निर्भरता घटाने की बात कर रहे हैं.
तेल और आवश्यक कच्चे माल के अभाव में यूरोपीय कंपनियां ठप्प हो रही हैं और यूरोप में रोजगार प्रभावित हो रहा है. यूक्रेनी विदेश मंत्री ने भी यह कहा है कि यूरोप के गृहस्थों के कुशलक्षेम को रूस बर्बाद कर रहा है. गौरतलब है कि ‘स्विफ्ट’ नाम की भुगतान प्रणाली के माध्यम से वैश्विक लेनदेन संपन्न होता रहा है. जब रूस को इस प्रणाली से बेदखल किया गया, तो अमेरिका एवं उसके सहयोगी राष्ट्रों को उम्मीद थी कि चूंकि रूस अपने निर्यातों के भुगतान प्राप्त नहीं कर पायेगा, तो उसे उनके सामने झुकना ही पड़ेगा, लेकिन वे देश अपने उद्देश्य में सफल न हो सके. रूस के निर्यात घटने की बजाय बढ़ गये.
ताजा जानकारी के अनुसार, तेल और गैस से निर्यातों से ही रूस को इस साल 38 प्रतिशत अधिक प्राप्तियां होने वाली हैं. रूसी निर्यातों की आधी आमदनी तेल और गैस से होती है. पहले से अधिक मात्रा में गैस और तेल के निर्यात और बढ़ती वैश्विक कीमतों के चलते रूस को इस वर्ष मात्र गैस और तेल के निर्यात से ही 332.5 अरब डॉलर की कमाई होने वाली है. कहा जा सकता है कि रूस को अमेरिकी प्रतिबंधों से नुकसान कम फायदा ज्यादा हो रहा है.
एक ओर जहां यूरोप बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है, वहीं रूस पहले से अधिक मजबूत दिख रहा है. आज अमेरिका और यूरोपीय देश भयंकर मंदी के खतरे और महंगाई से गुजर रहे हैं और इसमें रूस एक प्रमुख कारण बताया जा रहा है. अमेरिका में पिछली दो तिमाहियों में जीडीपी घटी है और यूरोपीय देशों की भी हालत कुछ ऐसी ही है.
यूरोप में ऊर्जा संकट और धीमी ग्रोथ के कारण अब मंदी का चित्र साफ उभर रहा है. फिलहाल अमेरिका की हालत यूरोप जैसी नहीं है, लेकिन पिछली दो तिमाहियों में जीडीपी के संकुचन, तेजी से बढ़ रही महंगाई (जो अगस्त 2022 में 8.3 प्रतिशत रही है) और खासतौर पर ऊर्जा की बढ़ती कीमतों तथा फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दर बढ़ाने के चलते अमेरिका भी मंदी की चपेट में आ सकता है.
यूरोप अपनी तेल की जरूरतों के लिए 25 प्रतिशत तक रूस पर निर्भर करता है. पिछले साल यूरोप के लिए 40 प्रतिशत गैस की आपूर्ति रूस से हुई थी. अब जब आपूर्ति बाधित हो रही है, तो यूरोप भयंकर ऊर्जा संकट में जाने वाला है. यूरोपीय देशों ने अपने कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों को फिर से चलाने का निर्णय लिया है, लेकिन यह इतना आसान नहीं होगा.
ऐसे में यह भी चिंता व्यक्त की जा रही है कि पहली बार यूरोप को इन सर्दियों में ऊर्जा की कमी के चलते तापीकरण में कठिनाई हो सकती है. हालांकि अमेरिका और यूरोपीय देश ही नहीं, उनके अन्य सहयोगियों को भी प्रतिबंधों और युद्ध के अन्य परिणामों से जूझना पड़ रहा है, पर निकट भविष्य में यूरोप पर ही संकट का ज्यादा असर होगा. यूरोपीय देशों की मुद्राओं में भारी अवमूल्यन हो रहा है तथा महंगाई के साथ अर्थव्यवस्थाओं में असंतुलन भी बढ़ रहे हैं.
यह पहली बार हुआ है कि अमेरिकी ब्लॉक के देशों को प्रतिबंधों का इतना नुकसान हो रहा है. अभी आवश्यक है कि ये देश अपने नागरिकों को समस्याओं से बचाएं. दुनिया में शांति की जरूरत है, लेकिन उसके लिए ‘नाटो’ को दूसरे मुल्कों की शांति भंग करने की इजाजत नहीं दी जा सकती. रूस द्वारा यूक्रेन पर युद्ध थोपना गलत है, लेकिन ‘नाटो’ देशों द्वारा यूक्रेन में प्रवेश की कोशिश उसके मूल में है. यदि यूक्रेन और ‘नाटो’ देश अपनी हठधर्मिता छोड़ दें, तो शांति भी स्थापित हो सकती है और आर्थिक संकट भी दूर हो सकते हैं. संबद्ध पक्षों को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए.