शुभ की कामना

मनुष्य की जिजीविषा मृत्यु के भय पर भारी पड़ी. अब जब हम महामारी से मुक्ति की आशा और संवरती आर्थिकी के साथ नव वर्ष में हैं, तो हमारे साथ बीते वर्ष के अनुभव और सीख की गठरी भी है.

By संपादकीय | January 1, 2021 7:31 AM
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बीता वर्ष भयावह महामारी और आर्थिक उथल-पुथल से उत्पन्न दुखों एवं दुष्चिंताओं से त्रस्त व ग्रस्त रहा. इनके साथ विश्व के कई भागों में हिंसा, युद्ध, अशांति और अस्थिरता की समस्याएं भी रहीं. प्रदूषण एवं जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के ठोस उपाय भी न हो सके. निराशा और अवसाद के दौर से निकलकर नये वर्ष में प्रवेश करते हुए हम सभी के मन में शुभ की कामना है. जिस तरह से बीता वर्ष अन्य बीते वर्षों की तरह नहीं था, उसी तरह यह साल भी सामान्य नव वर्ष नहीं है.

यह भी रेखांकित किया जाना चाहिए कि बीते साल ने मनुष्यता के अनुभव को समृद्ध किया, जिसके आधार पर हम नये साल को सुंदर और सार्थक बना सकते हैं. अदृश्य विषाणु के प्राणघातक संक्रमण से संघर्षरत चिकित्सकों और वैज्ञानिकों, व्यवस्था बनाये रखने में जुटे शासन-प्रशासन के कर्मियों तथा आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने में लगे लोगों के साहस और उनकी लगन को हमने देखा. कई कर्मियों ने अपने कर्तव्य का निर्वाह करते हुए संक्रमित होकर जान भी दे दी. पड़ोसी देशों की आक्रामकता से अपनी सीमाओं की रक्षा करते हुए हमारे सैनिकों ने बलिदान दिया.

हमारे किसानों ने अपनी मेहनत से उत्पादन में बढ़ोतरी कर गिरती अर्थव्यवस्था को सहारा दिया. आर्थिक गतिविधियों के फिर से शुरू होते ही हमारे श्रमिक निर्माण और उत्पादन को बढ़ाने में जुट गये. तकनीक के सहारे बहुत सारे लोग अपने पेशेवर कामों में लगे रहे. मनुष्य की जिजीविषा मृत्यु के भय पर भारी पड़ी. अब जब हम महामारी से मुक्ति की आशा और संवरती आर्थिकी के साथ नव वर्ष में हैं, तो हमारे साथ बीते वर्ष के अनुभव और सीख की गठरी भी है. व्यक्ति, राष्ट्र या मानव सभ्यता के स्तर पर संकट के बादल छाते रहते हैं, पर मनुष्यता की विकास यात्रा अग्रसर ही रहती है.

हमें अपेक्षा और आकांक्षा के साथ उत्साह के भाव से भी लबरेज होना चाहिए. हरिवंश राय बच्चन के शब्द हैं- ‘वर्ष नव, हर्ष नव, जीवन उत्कर्ष नव.’ इस क्रम में हमें समस्याओं और चुनौतियों का ध्यान सदैव रहना चाहिए. यह ध्यान भी रहे कि सामूहिकता और सामाजिकता से ही समाधान संभव है. भेदभाव, घृणा, हिंसा, अपराध जैसे आचरण इस संभावना की राह की बाधाएं हैं. प्रकृति को नष्ट करना अपने अस्तित्व को ही खतरे में डालना है.

विषाणु का उपचार तो पा लिया गया है और आगे भी ऐसे आकस्मिक समस्याओं से निपटने की क्षमता हममें है, किंतु समाज में विभेद, राष्ट्रों के वैमनस्य और आगे निकलने की नकारात्मक होड़ जैसी बीमारियों को दूर करना भी हमारी प्राथमिकताओं में होना चाहिए. बीते वर्ष ने भारत समेत समूचे संसार को बड़े झटके दिये, पर अब हमें संभलना भी है, चलना भी है और ध्येय के लिए गतिशील भी होना है. यह सब एक-दूसरे का हाथ थामे, एक-दूसरे को सहारा देते हुए करना है. हमें स्वस्थ, समृद्ध और सार्थक होना है.

Posted by: Pritish Sahay

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