जल प्रबंधन एवं संचयन में महिलाओं की भूमिका अहम
इस मिशन ने न सिर्फ महिलाओं के काम को आसान किया है, बल्कि उन्हें स्वावलंबी बनाने के लिए रोजगार की सुविधा भी प्रदान की है.
राजेश कुमार शर्मा / कुमार प्रेमचंद
सभी के लिए ‘शुद्ध पेयजल एवं स्वच्छता की उपलब्धता को मानव अधिकार’ बताया गया है. सुरक्षित और पर्याप्त पेयजल एवं स्वच्छता की सुविधाओं के माध्यम से मानव स्वास्थ्य, शिक्षा व्यवस्था, आर्थिक, रोजगार एवं सामाजिक स्थिति तथा खासकर महिलाओं के सशक्तीकरण में व्यापक स्तर पर सुधार लाया जा सकता है. देश के ग्रामीण परिवारों को प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 55 लीटर के हिसाब से शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने हेतु जल जीवन मिशन की शुरुआत हुई है. जल जीवन मिशन में नयी जलापूर्ति योजनाओं से संबंधित निर्णयों में उनकी प्राथमिकताओं पर ध्यान केंद्रित कर महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देना है. इस मिशन का उद्देश्य महिलाओं को जलापूर्ति प्रणालियों के प्रबंधन और रखरखाव के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल प्रदान करना है. झारखंड में पेयजल उपलब्ध कराने हेतु लगभग एक लाख भूजल आधारित सोलर संचालित लघु ग्रामीण जलापूर्ति योजनाओं एवं सतही जल आधारित 723 बहु-ग्रामीण जलापूर्ति योजनाओं का क्रियान्वयन हो रहा है. राज्य के कुल 62.16 लाख ग्रामीण परिवारों में से 31.97 लाख परिवारों को (51.43 प्रतिशत) नल के माध्यम से शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराया जा रहा है. उल्लेखनीय है कि 15 अगस्त 2019 से पूर्व राज्य में मात्र 5.55 प्रतिशत (3.45 लाख) ग्रामीण परिवार ही नल से जल से प्राप्त कर रहे थे. जल जीवन मिशन के द्वारा राज्य में कुल 28.52 लाख ग्रामीण परिवारों (48.58 प्रतिशत) को नल से जल आपूर्ति से जोड़ा गया है.
जल जीवन मिशन के क्रियान्वयन में महिलाओं की सहभागिता एवं नेतृत्व को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गयी है, ताकि उनकी भागीदारी से जलापूर्ति योजनाओं के सफल संचालन एवं रख-रखाव, विवेकपूर्ण उपयोग, गंदे जल का प्रबंधन, गुणवत्ता, जांच एवं जल स्रोतों के स्थायित्व को सुनिश्चित किया जा सके. इस मिशन ने न सिर्फ महिलाओं के काम को आसान किया है, बल्कि उन्हें स्वावलंबी बनाने के लिए रोजगार की सुविधा भी प्रदान की है. अब झारखंड सरकार द्वारा महिलाओं को प्लंबर, सौर ऊर्जा तकनीशियन तथा पंप संचालन हेतु प्रशिक्षित किया जा रहा है, जिससे वे नल-जल योजनाओं के कुशल संचालन तथा रख-रखाव में दक्ष होकर अपनी आजीविका सुनिश्चित कर सकें. उदाहरण के लिए बोकारो जिले के हेसाबातू बहु ग्रामीण जलापूर्ति योजना, जिसके माध्यम से 10 पंचायतों के 11,295 परिवारों को नल से शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराया जा रहा है, के संचालन एवं रख-रखाव हेतु ग्राम पंचायत-माराफारी की जलसहिया पूनम देवी एवं अन्य जलसहियाओं द्वारा लाभुकों/परिवारों से निरंतर जल शुल्क संग्रहण का कार्य किया जा रहा है. पंचायत एवं समुदाय की सहभागिता से लगभग 1.35 करोड़ रुपये बहु-ग्रामीण जलापूर्ति योजना के खाते में जमा है.
हर घर नल आने की वजह से प्राकृतिक जल स्रोतों की अनदेखी हो सकती है और जल का अपव्यय भी संभावित है. अतः जल के समुचित उपयोग हेतु आम जन व खासकर महिलाओं को प्राकृतिक जल स्रोतों के संरक्षण और साफ-सफाई के बारे में जागरूक करना आवश्यक है क्योंकि गर्मियों में पानी की किल्लत के समय यही प्राकृतिक स्रोत जलापूर्ति में सहयोग देते हैं. बोकारो जिले का बासगोड़ा गांव एक अच्छा उदाहरण है, जहां हर घर में लोगों ने खुद से सोक पिट बनाया है. इस गांव में कहीं भी जल-जमाव देखने को नहीं मिलेगा. महिलाएं जल संचय व संरक्षण में भी महत्वपूर्ण योगदान दे सकती हैं. पानी के कुशल उपयोग, वर्षा जल संचयन, जल उपचार और पुनः उपयोग पर उनको प्रशिक्षण देना महत्वपूर्ण है. यह संरक्षित जल के संयुक्त उपयोग को सुनिश्चित करता है. यह पेयजल स्रोत में वृद्धि, पेयजल आपूर्ति प्रणाली, ग्रे-जल उपचार और पुनः उपयोग को भी सुनिश्चित करता है. झारखंड में ग्रामीण महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के लिए जलसहिया को जल जांच का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. महिलाएं गांव में फील्ड टेस्ट किट से पानी की जांच कर रही हैं और नमूनों को जिला स्तर के जांच केंद्रों में भेज रही हैं.
जलवायु परिवर्तन के परिप्रेक्ष्य में जल की उपलब्धता सुनिश्चित करना एवं उसकी गुणवत्ता बनाये रखना एक बड़ी चुनौती है. झारखंड में जहां एक लाख भूजल आधारित योजनाओं के माध्यम से लगभग 43 प्रतिशत परिवारों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराया जाना है, भूजल के स्थायित्व हेतु भूजल पुनर्भरण भी बड़ी चुनौती है. पंचायत एवं जलसहियाओं द्वारा इस दिशा में जल संरक्षण, वर्षा जल संचयन, पेयजल के विवेकपूर्ण उपयोग एवं गंदे जल के प्रबंधन हेतु स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को जोड़ने की आवश्यकता होगी. हर घर में किचन से निकलने वाले पानी को किचन गार्डन के छोटे सोक पिट से जोड़ दें, तो बहुत हद तक गंदे जल का प्रबंधन परिवार स्तर पर संभव है. स्थायी जल प्रबंधन को बढ़ावा देने में उनके ज्ञान का लाभ उठाने के लिए स्थानीय स्वयं सहायता समूहों जैसे महिला संगठनों के साथ साझेदारी बढ़ाना भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है.
(ये लेखकद्वय के निजी विचार हैं.)