महिला सुरक्षा प्राथमिक

Women Safety : भारतीय न्याय संहिता में विवाह का झांसा देकर यौन शोषण के लिए भी दंड का प्रावधान किया गया है. उन्होंने राज्य सरकारों को यह भी आश्वासन दिया है कि महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के प्रयासों में केंद्र सरकार पूरा सहयोग करेगी.

By संपादकीय | August 27, 2024 7:42 AM
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Women Safety : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि सरकार महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों के लिए कठोर दंड का प्रावधान कर रही है. पिछले माह से लागू हुए तीन नयी संहिताओं का उल्लेख करते हुए उन्होंने रेखांकित किया कि अवयस्कों के विरुद्ध यौन अपराधों के लिए मृत्यु दंड एवं आजीवन कारावास जैसी सजाओं की व्यवस्था है. भारतीय न्याय संहिता में विवाह का झांसा देकर यौन शोषण के लिए भी दंड का प्रावधान किया गया है. उन्होंने राज्य सरकारों को यह भी आश्वासन दिया है कि महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के प्रयासों में केंद्र सरकार पूरा सहयोग करेगी.

उल्लेखनीय है कि स्वतंत्रता दिवस के अपने संबोधन में भी उन्होंने महिलाओं की सुरक्षा को प्राथमिकता देने का आह्वान किया था. हाल में कोलकाता समेत देश के विभिन्न हिस्सों से नृशंस अपराधों की कई घटनाएं हुई हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि तमाम कोशिशों के बावजूद महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध होने वाले अपराधों की संख्या बढ़ती गयी है. वर्ष 2022 के आंकड़े इंगित करते हैं कि हर दिन देश में औसतन 1220 ऐसी घटनाएं होती हैं, यानी हर घंटे 51 मामलों में प्राथमिकी दर्ज की जाती है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे- 5 के अनुसार, 15 से 49 वर्ष की आयु की लगभग एक-तिहाई महिलाओं के साथ हिंसा हुई है. विभिन्न अध्ययनों में ऐसा पाया गया है कि बहुत से अपराधों की शिकायत दर्ज नहीं की जाती है. इसका मतलब है कि वास्तविक स्थिति कहीं अधिक भयावह है.

साल 2018 में औसतन हर 15 मिनट में बलात्कार का एक मामला दर्ज किया गया था. कानूनी प्रावधानों को कठोर किया जाना जरूरी कदम है, पर साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि मामलों की त्वरित सुनवाई हो तथा दोषियों को जल्दी सजा मिले. साल 2018 और 2022 के बीच सजा होने वाले मामलों का अनुपात 27 से 28 प्रतिशत के बीच रहा था. कुछ स्थानों पर फास्ट ट्रैक अदालतें हैं, पर संसाधनों की कमी से जांच और सुनवाई में देरी होती रहती है. कई रिपोर्टों में यह भी रेखांकित किया जा चुका है कि पुलिस तंत्र और न्यायालयों में समुचित संवेदनशीलता का अभाव है.

इन स्थानों पर कार्यरत बहुत से लोग सामाजिक पूर्वाग्रहों और स्त्री-विरोधी मानसिकता से ग्रस्त होते हैं. उनके लिए समुचित प्रशिक्षण की व्यवस्था की जानी चाहिए. समाज और परिवार के स्तर पर भी जागरूकता और संवेदना बढ़ाने की आवश्यकता है. यह बेहद चिंताजनक बात है कि महिलाओं और बच्चों के उत्पीड़न, शोषण और दुष्कर्म के अधिकतर दोषी परिजन, सहकर्मी और परिचित लोग होते हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने बिल्कुल सही कहा है कि महिलाओं के विरुद्ध अपराधों को क्षमा नहीं किया जा सकता है. सभ्य समाज में ऐसे अपराधों और अपराधियों के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए.

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