रोना संक्रमण को रोकने के लिए लागू लॉकडाउन की सबसे गहरी चोट कामगारों को लगी है. मार्च के आखिरी हफ्ते में लॉकडाउन की घोषणा से पैदा हुई अनिश्चितता की वजह से देश के कई शहरों से दिहाड़ी और अनियमित कामगारों का तुरंत पलायन शुरू हो गया था. इस अफरातफरी में उत्पादन और कारोबार बंद होने से बढ़ी बेरोजगारी ने भी बड़ा योगदान किया था. हालांकि केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से उन्हें राहत पहुंचाने की कोशिशें लगातार हो रही हैं और यह भी ध्यान रखा जा रहा है कि कोरोना वायरस का संक्रमण न फैले, परंतु यह भी सच है कि ये कोशिशें कमतर साबित हुई हैं तथा बड़ी संख्या में श्रमिक आज भी लाचार व बदहाल हैं.
ऐसे में विभिन्न राज्यों में राहत शिविरों में या अपने आवास पर फंसे बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर अपने घरों को लौटने के लिए बेचैन हैं. उनकी वापसी के लिए विभिन्न राज्यों ने साझेदारी में योजनाबद्ध तरीके से काम करना शुरू कर दिया है. इसमें ओडिशा प्रमुख है. कर्नाटक जैसे कुछ राज्यों ने यह आशंका जतायी है कि अपने राज्य के कामगारों को कोरोना प्रभावित राज्यों व क्षेत्रों से वापस लाना खतरनाक भी हो सकता है. उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने अधिकारियों को वापस आ रहे लाखों प्रवासी कामगारों के लिए रोजगार की व्यवस्था करने की योजना बनाने का निर्देश भी जारी कर दिया है. महाराष्ट्र सरकार भी मजदूरों की वापसी के लिए अनेक राज्य सरकारों और केंद्र के संपर्क में है.
विभिन्न स्थानों से तीर्थयात्रियों और छात्रों की वापसी से यह उम्मीद जगी है कि बेरोजगारी में परेशान प्रवासी कामगारों के घर लौटने का इंतजाम जल्दी ही हो सकेगा. इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई भी चल रही है और अगले सप्ताह कोई निर्देश आने की संभावना है. इसमें कोई दो राय नहीं है और केंद्र सरकार के इस तर्क का आधार भी है कि मजदूरों की वापसी संक्रमण फैलने की वजह बन सकती है, पर इस सच को भी दरकिनार नहीं किया जाना चाहिए कि उन्हें हर जगह समुचित राहत नहीं मिल पा रही है तथा निकट भविष्य में उनकी कमाई का कोई जरिया मिल पाना भी मुश्किल है.
जैसे चरणबद्ध तरीके से तथा चिकित्सकीय निगरानी में अभी तक लोगों का आवागमन हुआ है, उस अनुभव को काम में लाया जाना चाहिए. यदि कामगार छुपकर लौटते हैं, तो न केवल इससे उनकी जान को खतरा है, बल्कि संक्रमण को भी रोकना संभव नहीं होगा. सरकारी निर्देशों और निवेदनों के बावजूद छंटनी, वेतन न देना या कटौती करना, आवास का किराया लेना, व्यवसाय व उद्योग बंद कर देना आदि सिलसिले लगातार जारी हैं. सर्वोच्च न्यायालय ने प्रवासियों के साथ उचित व्यवहार का निर्देश अधिकारियों को दिया था. इसका पालन भी पूरी तरह नहीं हो पा रहा है. ऐसे में धीरे-धीरे और सुरक्षित वापसी की प्रकिया बेचैन और बेबस प्रवासियों के लिए बड़ी राहत हो सकती है. इस पर विचार किया जाना चाहिए.