विश्व पुस्तक मेला और हिंदी किताबों का संसार
World Book Fair : इंटरनेट से संचालित तमाम माध्यमों के कारण पुस्तक-संस्कृति खतरे में है. अब समय आ गया है कि लिटरेचर फेस्टिवल की तरह बुक फेयर को अन्य महानगरों और राज्य की राजधानियों में भी आयोजित किया जाये.
World Book Fair : पुस्तक प्रेमियों के लिए विश्व पुस्तक मेला मिलने-जुलने की जगह है. यह पाठकों के लिए खुशी का मौका होता है. पुस्तकों के इस उत्सव में शामिल होने दूर-दूर से लोग आते हैं. यह देख कर लगता है कि किताबों से प्यार करने और चाहने वाले लोगों की कमी नहीं है. यूं तो हमेशा यही महसूस होता है कि किताब पढ़ने वालों की संख्या कम होती जा रही है, लोग मोबाइल पर समय बिता रहे हैं और सब इंटरनेट चला रहे हैं.
विदित हो कि एक से नौ फरवरी तक दिल्ली में आयोजित पुस्तक मेले में चुनाव के कारण एक दिन कम कर दिया गया, जिसकी भरपाई बाकी दिनों में अतिरिक्त घंटे जोड़ कर की जायेगी. इंटरनेट से संचालित तमाम माध्यमों के कारण पुस्तक-संस्कृति खतरे में है. अब समय आ गया है कि लिटरेचर फेस्टिवल की तरह बुक फेयर को अन्य महानगरों और राज्य की राजधानियों में भी आयोजित किया जाये. प्रगति मैदान के दो से छह नंबर हॉल में आयोजित पुस्तक मेले में हिंदी के अधिकांश बड़े प्रकाशक दो से तीन में ही सिमटे हुए हैं. जबकि अंग्रेजी के प्रकाशक और पाठकों ने मेले का स्थान अधिक घेर रखा है.
हिंदी की प्रतिष्ठित वेब पत्रिका समालोचन के अरुण देव हिंदी किताबों के बारे में अपनी राय रखते हैं कि हिंदी पाठकों के विस्तृत क्षेत्र और संख्या को देखते हुए हिंदी का प्रकाशन जगत सीमित पाठकों तक पहुंचता है. कल्पनाशील उद्यमियों को अभी भी हिंदी को जरूरत है, जो सार्थक साहित्य को उनके पाठकों तक पहुंचा सके. पुस्तकों के प्रसार और लेखकों के प्रचार के लिए भी प्रकाशन जगत को अभी बहुत कुछ करना होगा. अगर पुस्तकें अधिक बिकती हैं, तो इसका सीधा लाभ प्रकाशक को ही मिलता है. इसके लिए उन्हें विशेष प्रयास करने की जरूरत है. यहां ऐसे प्रकाशक चाहिए जिनकी प्रतिबद्धता सिर्फ साहित्यिक पुस्तकों के विक्रय तक सीमित न हो, और न वह सरकारी खरीद पर निर्भर हो.
प्रकाशक के केंद्र में पाठक हों. वह उन तक पहुंचने के लिए लगातार काम करे. हिंदी के पुस्तकों की प्रस्तुति भी विश्वस्तरीय होनी चाहिए. हिंदी प्रकाशन की दुनिया में संपादक नामक प्राणी एक सिरे से ही गायब है. वह मैनेजर की भूमिका में है या प्रूफ रीडर की. अब हिंदी के प्रकाशनों के पास अपने संपादक, कवर डिजाइनर और अच्छे प्रूफ रीडर होने चाहिए. पिछले सालों में तेजी से उभरे सेतु प्रकाशन समूह के अमिताभ राय का कहना है कि हिंदी में कथेतर और समाज विज्ञान के क्षेत्र में किताबों की मांग तेजी से बढ़ी है. रामचंद्र गुहा, इश्तियाक अहमद और सुदीप्त कविराज जैसे लेखकों के हिंदी अनुवाद पढ़े जाने वालों की संख्या तेजी से बढ़ी है. हिंदी का परिसर लगातार विस्तृत होता जा रहा है.
कवि पत्रकार विमल कुमार का कहना है कि हिंदी के बड़े प्रकाशकों ने किताबों के बाजार पर कब्जा कर लिया है और लेखकों को स्टार बनाना शुरू किया है. अच्छे और ईमानदार लेखकों को पीछे धकेल दिया है. अरविंद कुमार किताब वाला कहते हैं कि हिंदी में जिज्ञासा, नया लिखने-पढ़ने की कमी है. कोई नयी सोच प्रशंसा नहीं, ईर्ष्या जगाती है. स्टैग्नेशन है. इसीलिए एक छोटे से संसार में जिंदगी निकल जाती है. उधर प्रकाशकों के विचार अलग हैं. राजकमल प्रकाशन समूह के एमडी अशोक माहेश्वरी का कहना है कि किताबों के साथ समय बिताने वालों की संख्या काफी है. लोग दूर-दूर से किताबों के लिए आते हैं. हमें खुशी होती है कि हम पुस्तक मेले में हैं. उदासी की बात है कि चुनाव के कारण पुस्तक मेला बंद रहा. एक नियम बनाया जा सकता था कि जिनकी उंगली पर वोट डालने का निशान हो, उनको पुस्तक मेले में फ्री एंट्री दी जायेगी. यह एक सकारात्मक बात होती और पुस्तक प्रेमियों को उदास नहीं होना पड़ता.
मिथलेश ध्यानी वाणी प्रकाशन से जुड़े हैं. वे कहते हैं कि सबसे खास बात यह है कि नये पाठक हिंदी साहित्य की ओर आकर्षित हो रहे हैं. पाठक पूछते हैं कि ‘मैं हिंदी की पुस्तक पढ़ना चाहता हूं, क्या आप मुझे कोई अच्छी पुस्तक सुझा सकते हैं?’ यह पूछना दर्शाता है कि हिंदी साहित्य के लिए नये बाजार की संभावनाएं भी खुल रही हैं. नवारुण के संजय जोशी बताते हैं कि हम मेले में सिर्फ एक कथेतर किताब ला सके जिसका शीर्षक है ‘फेक न्यूज, मीडिया और लोकतंत्र.’ यहां पर क्षेत्र विशेष की किताबों के प्रति उत्साह को देखते हुए हमें अफसोस है हम विभिन्न कथेतर विधाओं की अपनी पुस्तकें मेले में नहीं ला सके.
हिंद युग्म के शैलेष भारतवासी का कहना है कि इस पुस्तक मेले में इस तथ्य की तरफ हमारा ध्यान गया कि पिछले चार-पांच सालों से युवाओं की आमद साल-दर-साल बढ़ने लगी है. इस बार के नयी दिल्ली के विश्व पुस्तक मेला में 50 प्रतिशत ये अधिक आगंतुक युवा ही हैं. हिंद युग्म के स्टॉल पर आने वाले 90 प्रतिशत से अधिक पाठक युवा हैं. मेला के चार दिन बीत चुके हैं और इन चार दिनों में जो रुझान मिले हैं, उससे हम बाकी दिनों के लिए बहुत उत्साहित हैं. गौरतलब हो कि इस साल विश्व पुस्तक मेले के ऑथर्स लाउंज को लेखकों और पाठकों को समर्पित किया गया है, जहां लेखक साहित्यिक समारोहों के बीच बातचीत कर सकते हैं, चिंतन कर सकते हैं और खुद को तरोताजा कर सकते हैं.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)