नये विचारों से बदलाव की मुहिम
कलात्मक सोच और नवाचार का विचार सदा से ही इंसानी जीवन में बदलाव और बेहतरी की धुरी रहा है. सांस्कृतिक मूल्यों को सहेजने से लेकर वैज्ञानिक आविष्कारों को आम जीवन से जोड़ने तक, रचनात्मक समझ और नवोन्मेष का भाव जरूरी है
कलात्मक सोच और नवाचार का विचार सदा से ही इंसानी जीवन में बदलाव और बेहतरी की धुरी रहा है. सांस्कृतिक मूल्यों को सहेजने से लेकर वैज्ञानिक आविष्कारों को आम जीवन से जोड़ने तक, रचनात्मक समझ और नवोन्मेष का भाव जरूरी है, क्योंकि एक विचार कुछ सहेजने और दूसरा नया रचने से जुड़ा है. ये समग्र रूप से मानवीय संवेदना, मानसिक सजगता और सामाजिक जीवन के परिष्करण का आधार बनते हैं.
सृजनशील सोच और नवप्रवर्तन को बढ़ावा देने के लिए दुनियाभर में 21 अप्रैल को विश्व रचनात्मकता और नवोन्मेष दिवस मनाया जाता है. संयुक्त राष्ट्र द्वारा जन-जागरूकता लाने के लिए 2002 में यह विशेष दिवस के रूप में नामित किया गया था. दुनिया के 46 देशों में विभिन्न संगठनों, स्कूलों और उद्यमियों के लिए बीते 20 वर्षों से यह खास दिन एक वैचारिक अवसर बना हुआ है.
विश्व रचनात्मकता और नवोन्मेष दिवस की इस वर्ष की थीम ‘कॉलेब्रेशन’ यानी ‘सहयोग’ है. इसका उद्देश्य ऐसे कार्यों को बढ़ावा देने का है जो वैश्विक स्तर पर सतत विकास, शांति, न्याय और प्रभावी संस्थाओं के विस्तार को बल दे सकें. सामाजिक और आर्थिक उन्नति में शिक्षा का बड़ा योगदान होता है. शिक्षा के क्षेत्र में नवाचार की अहम भूमिका होती है.
हमारे देश में कारोबार शुरू करने या पूंजी लगाने के हालात और कौशल भी हर किसी के पास नहीं है. उद्यमशीलता के लिए मौजूदा माहौल भी सरल और सहायक नहीं हैं. दुखद ही है देश के कितने ही काबिल और होनहार विद्यार्थी शोध और अनुसंधान के लिए अन्य देशों को चुनते हैं. भारत को ब्रेन ड्रेन के लिए जाना जाता है. नये विचारों और नव-अनुसंधान को प्रोत्साहन देना सामाजिक और आर्थिक पहलुओं पर बड़ा बदलाव ला सकता है. बढ़ती बेरोजगारी और बदलते मानवीय व्यवहार के इस तकलीफदेह दौर में नवाचार और कला, जीवन को सहेजनेवाले साबित हो सकते हैं.
रोजगार के मोर्चे पर तो ‘क्रिएटिव इकोनॉमी’ यानी रचनात्मक अर्थव्यवस्था अब सतत विकास का अहम उपकरण बन गयी है. संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन के मुताबिक रचनात्मक अर्थव्यवस्था, व्यापार, श्रम और उत्पादन सहित रचनात्मक उद्योगों के सभी भागों को समग्र रूप से परिभाषित करती है. संयुक्त राष्ट्र की इस संस्था ने करीब 20 वर्षों से रचनात्मक वस्तुओं और सेवाओं में व्यापार की बदलती स्थितियों का लेखा-जोखा करते हुए पाया कि क्रिएटिव इकोनॉमी अब दूसरे उद्योगों से आगे काफी निकल गयी है.
महामारी के दो वर्ष का ठहराव शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में भी रुकावटें पैदा करनेवाला ही रहा है. ऐसे में ‘सहयोग’ की थीम पर विचार करते हुए दुनिया को समझना होगा कि नये विचारों के आगमन और अनुसंधान के बिना विकास मार्ग पर नहीं बढ़ा जा सकता. अनुसंधान और नूतन वैचारिक पहल अगर सृजनात्मकता के भाव भी जुड़ी हो तो रचने-सहेजने का सुखद मेल मानवीय जीवन के हर पक्ष को बेहतर बना सकता है.