मानसून की चिंता
केंद्र सरकार ने राज्यों को तैयारी करने को कहा है ताकि अगर स्थिति बेहद खराब होती भी है, तो उसका सामना किया जा सके.
भारतीय मौसम विभाग के अनुमान के अनुसार, हमारे देश में इस साल मानसून के सामान्य रहने की उम्मीद है, पर बारिश पर अल नीनो के असर की आशंका बनी हुई है. अभी अल नीनो के चलते दक्षिण अमेरिका के नजदीक प्रशांत महासागर का पानी गर्म हो रहा है. अल नीनो भारत में मानसून की हवाओं के कमजोर होने और मौसम के सूखा होने की बड़ी वजह रहा है.
ऐसे में केंद्र सरकार ने राज्यों को तैयारी करने को कहा है ताकि अगर स्थिति बेहद खराब होती भी है, तो उसका सामना किया जा सके. सुझाव में यह भी कहा गया है कि अगर बारिश कम होती है, तो पर्याप्त मात्रा में खरीफ फसलों की उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए. खरीफ फसलों की बुवाई के आगामी मौसम के लिए समुचित रणनीति बनाने के लिए एक राष्ट्रीय सम्मेलन भी आयोजित किया गया. इस आयोजन में खेती से संबंधित चुनौतियों से निपटने के लिए दीर्घकालिक प्रयासों पर भी चर्चा हुई.
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने राज्यों से आग्रह किया कि खेती में तकनीक का अधिकाधिक इस्तेमाल किया जाए ताकि लागत में कमी की जा सके, उत्पादन में वृद्धि हो सके तथा किसानों की आमदनी बढ़े. उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि कृषि क्षेत्र में लाभ सुनिश्चित करना वर्तमान समय की आवश्यकता है. इसमें तकनीक के बड़ी भूमिका हो सकती है.
केंद्र सरकार द्वारा कृषि भूमि की उत्पादकता बढ़ाने, किसानों के लिए बेहतर अवसर पैदा करने, कृषि उत्पादों के संरक्षण एवं विपणन के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने के लिए कई तरह के प्रयास हुए हैं. ऐसी कोशिशों के अच्छे परिणाम भी सामने आ रहे हैं. संवैधानिक व्यवस्था के अंतर्गत कृषि राज्य का विषय है. राज्य सरकारों की ओर से भी प्रयत्न हो रहे हैं, पर उन्हें अधिक सक्रियता दिखानी होगी.
राज्यों को केंद्रीय योजनाओं और आवंटित राशि का प्रभावी ढंग से इस्तेमाल करना चाहिए. भौगोलिक विविधता के कारण देश के अलग-अलग हिस्सों में जलवायु परिवर्तन के असर में भी भिन्नता है. केंद्र और राज्य सरकारों को इसके आधार पर भविष्य के रणनीति बनानी चाहिए. इस संबंध में मौसम विभाग द्वारा हर साल तापमान पर राज्यवार अध्ययन प्रकाशित करने का निर्णय महत्वपूर्ण है.
जाड़े में तापमान बढ़ने से रबी फसलों पर प्रतिकूल प्रभाव दिखने लगाया है. पर हमारे किसानों ने कुल अनाज उत्पादन पर खास असर नहीं होने दिया है. इसी भरोसे पर तमाम चिंताओं के बावजूद फसल वर्ष 2023-24 (जुलाई से जून) में इस वर्ष से तीन प्रतिशत अधिक अन्न उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है.