कम खर्च चिंताजनक
केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2023 के बजट आवंटन का 35.2 प्रतिशत ही खर्च किया है, जबकि पिछले साल इसी अवधि में यह आंकड़ा 36.7 प्रतिशत था.
वर्तमान वित्त वर्ष के बजट में आवंटित धन को केंद्रीय मंत्रालयों ने पूरी तरह खर्च नहीं किया है. इसकी मुख्य वजह यह है कि केंद्र सरकार द्वारा समर्थित योजनाओं के लिए जो धन राज्यों को दिये गये थे, उन्हें ठीक से खर्च नहीं किया जा सका है. अब यह धन, जो 80 हजार करोड़ रुपया तक हो सकता है, वापस केंद्र सरकार के राजकोष में आ जायेगा. विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं पर जो अतिरिक्त खर्च केंद्र सरकार ने किया है, उसकी कुछ भरपाई इस धन से हो सकेगी.
एक ओर जहां यह केंद्र सरकार के लिए कुछ राहत की बात है, वहीं इससे यह चिंताजनक संकेत भी मिलता है कि योजनाओं का प्रारूप बनाने तथा समुचित धन हासिल करने के बाद भी मंत्रालय व सरकारें खर्च करने में असमर्थ हैं. इसका सीधा अर्थ यह है कि कई योजनाओं को साकार नहीं किया जा सका है. केंद्रीय उड्डयन मंत्रालय को 10,667 करोड़ रुपये मिले थे, लेकिन अगस्त तक इस रकम का केवल चार प्रतिशत ही खर्च हो सका है.
पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने पांच, दवा मंत्रालय ने सात, महिला व बाल विकास मंत्रालय ने छह प्रतिशत ही खर्च किया है. शिक्षा मंत्रालय का आंकड़ा 19 फीसदी है. कुछ अन्य मंत्रालयों का भी यही हाल है. कुल मिलाकर केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2023 के बजट आवंटन का 35.2 प्रतिशत ही खर्च किया है, जबकि पिछले साल इसी अवधि में यह आंकड़ा 36.7 प्रतिशत था. अनेक राज्यों द्वारा केंद्रीय आवंटन को लौटाने का मामला पुराना है, लेकिन इस प्रवृत्ति पर रोक लगायी जानी चाहिए तथा जवाबदेही सुनिश्चित की जानी चाहिए.
केंद्र सरकार के मंत्रालयों को भी बेहद मामूली खर्च का स्पष्टीकरण देना चाहिए. वित्त मंत्रालय ने कहा है कि सरकार अक्टूबर से मार्च के बीच यानी चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में कुल 5.92 लाख करोड़ रुपये की उधारी लेगी. इस तरह के उधार पर ब्याज भी देना होता है और ब्याज दरें बढ़ भी रही हैं. ऐसे में अगर आवंटित रकम खर्च न हो तो, इसका दोहरा नुकसान होता है.
एक ओर विकास और कल्याण योजनाएं प्रभावित होती हैं, तो दूसरी तरफ अधिक ब्याज देना पड़ता है. अत्यंत आवश्यक कल्याणकारी योजनाओं के लिए भारत सरकार को बहुत अधिक खर्च करना पड़ रहा है. इसके मद्देनजर कुछ अन्य खर्चों में कटौती की स्थिति भी आ सकती है. आम तौर पर कटौती पिछले साल के खर्च के हिसाब को देखकर होती है. जिन राज्यों और मंत्रालयों द्वारा खर्च की गति धीमी या सुस्त है, उन्हें कटौती का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है.