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डिजिटल चैनलों पर रोक

ऐसे मंचों के प्रसारण से सामाजिक सद्भाव संकटग्रस्त होता है, लोगों की मानहानि होती है तथा छात्र-युवाओं को गलत जानकारियां मिलती हैं.

सूचना, समाचार और जानकारी के आदान-प्रदान में इंटरनेट ने व्यापक योगदान दिया है, लेकिन इसके माध्यम से दुष्प्रचार, अफवाह और झूठ फैलाने का सिलसिला भी निर्बाध जारी है. यूट्यूब चैनलों तथा सोशल मीडिया के अन्य मंचों पर ऐसे तत्वों की भरमार है. केंद्र सरकार ने ऐसे 18 चैनलों को बंद करने का आदेश दिया है. भारत से चलनेवाले इन चैनलों पर यह कार्रवाई फरवरी में निर्देशित सूचना तकनीक से संबंधित नये नियमों के तहत हुई है.

इन चैनलों पर आरोप है कि ये ऐसी झूठी खबरों को प्रसारित कर रहे थे, जिनसे राष्ट्रीय सुरक्षा, अन्य देशों से भारत के संबंधों तथा कानून-व्यवस्था प्रभावित हो सकती थी. इनके अलावा पाकिस्तान से संचालित कुछ यूट्यूब चैनलों, कुछ ट्विटर हैंडलों, फेसबुक पेज और वेबसाइट को भी ब्लॉक किया गया है. समाचार पत्रों जैसे सूचना के पारंपरिक माध्यम स्थापित सिद्धांतों और मानदंडों के अनुसार काम कराते हैं, इसलिए उनकी खबरें भरोसेमंद होती हैं तथा समाज, देश और दुनिया की भलाई से प्रेरित होती हैं.

कुछ हद तक यह बात टेलीविजन के बारे में कही जा सकती थी, पर अब यह माध्यम भी शोर-शराबे, निरर्थक बहसों तथा सनसनीखेज प्रस्तुति की भेंट चढ़ गया है. इंटरनेट एक निर्बाध साधन है और उसके सही इस्तेमाल से पारंपरिक मीडिया की अनेक कमियों की भरपाई भी हुई है, लेकिन अब इस पर झूठ व फरेब का दबदबा बढ़ता जा रहा है. सनसनीखेज और लुभावने शीर्षकों द्वारा क्लिकबैट पत्रकारिता हो रही है, जिसका एकमात्र उद्देश्य अधिक दर्शक-पाठक और क्लिक जुटाकर पैसा बनाना है.

ऐसे चैनल और साइट केवल कमाई देखते हैं. उन्हें न तो पत्रकारिता के मूल्यों से कोई मतलब है और न ही उन्हें यह चिंता है कि देश और समाज पर उनके कृत्यों का क्या असर पड़ेगा. ऐसी हरकतों से सैकड़ों यूट्यूब चैनल और सोशल मीडिया पेज भारी कमाई कर रहे हैं और लोगों को गुमराह कर रहे हैं. ऐसे मंचों के प्रसारण से सामाजिक सद्भाव संकटग्रस्त होता है, लोगों की मानहानि होती है तथा छात्र-युवाओं को गलत जानकारियां मिलती हैं.

इंटरनेट और सोशल मीडिया की बड़ी कंपनियां दावे तो करती हैं कि वे ऐसी हरकतों पर लगाम लगायेंगी, लेकिन असलियत यह है कि वे इसमें पूरी तरह नाकाम रही हैं. ऐसे कई मामले आते रहे हैं, जब ये कंपनियां सरकारों और कानून-व्यवस्था से जुड़ी एजेंसियों के निर्देश का भी पालन नहीं करती हैं. ऐसे में सरकार को नये नियमों को लागू करना पड़ा है.

हमने सोशल मीडिया पर कोरोना काल में संक्रमण, इलाज और टीकों को लेकर फर्जी दावे होते हुए देखा है. त्योहारों और चुनावों में माहौल बिगाड़ने की कोशिशें भी होती रही हैं. अब मामला राष्ट्रीय सुरक्षा के खतरे और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के बिगड़ने तक जा पहुंचा है. उम्मीद है कि सरकार ऐसे ढेरों चैनलों को रोकेगी और इंटरनेट को स्वस्थ माध्यम बनाने के लिए प्रयासरत होगी. साथ ही, सोशल मीडिया कंपनियों को भी अधिक उत्तरदायी बनाया जाना चाहिए.

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