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जमींदोज होने की कगार पर पलामू किला, चेरो राजवंश के उत्तराधिकारी वन क्षेत्र से मुक्त करने की कर रहे हैं मांग

पलामू टाइगर रिज़र्व के बेतला नेशनल पार्क से सटे पहाड़ी पर दो किले हैं. एक नीचे है, जिसे पुराना पलामू किला कहा जाता है और दूसरा पहाड़ी के ऊपर है, जिसे नया पलामू किला कहा जाता है. इतिहासकारों की मानें तो राजा मेदिनी राय ने आठ जनवरी 1663 को अपने पुत्र प्रताप राय के नाम पर इसकी नींव रखी थी. 

पलामू, सैकत चटर्जी. लातेहार जिले के बरवाडीह प्रखंड अंतर्गत पलामू किला न सिर्फ पलामू प्रमंडल बल्कि पूरे झारखंड की शान है. वर्षों से उपेक्षित रहने के बावजूद यह किला अभी भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है. अब इस किले के मालिकाना हक को लेकर आवाज उठने लगी है. दूसरी तरफ वन विभाग इसे पलामू टाइगर रिज़र्व का हिस्सा बता रहा है. इन सबके बीच पलामू किला मौन अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है. किले की हालत ऐसी हो गयी है कि जल्द इसका जीर्णोद्धार नहीं किया गया तो ये जमींदोज हो जायेगा. 

इतिहास के पन्नों से 

पलामू टाइगर रिज़र्व के बेतला नेशनल पार्क से सटे पहाड़ी पर दो किले हैं. एक नीचे है, जिसे पुराना पलामू किला कहा जाता है और दूसरा पहाड़ी के ऊपर है, जिसे नया पलामू किला कहा जाता है. नये किले में मिले शिलालेख और इतिहासकारों की मानें तो राजा मेदिनी राय ने आठ जनवरी 1663 को अपने पुत्र प्रताप राय के नाम पर इसकी नींव रखी थी. पुराना किला कब और किसने बनाया, इसे लेकर इतिहासकारों में मतभेद है. पर इतना तय है कि इस किले का निर्माण का प्रारंभ माहोर राजाओं ने किया था, जिसे बाद में रक्सेल राजाओं ने अधिकार में लेकर इसका विकास किया. रक्सेल राजाओं के बाद कालांतर में यह किला चेरो राजा भगवंत राय के अधीन हो गया. यह समय 16वीं सदी का प्रारंभिक काल था. इस किले का स्वर्ण युग राजा मेदिनी राय के शासन काल को कहा जाता है, जो 1658 से 1678 ई तक का रहा. 1661 में मेदिनी राय ने पुराने किले का जीर्णोद्धार भी कराया था. यह किला रक्सेल, मुग़ल, अंग्रेजों के अलावा कई छोटे- छोटे हमलों का गवाह भी बना.  

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एक अप्रैल 1973 को किला बना पीटीआर का हिस्सा 

एक अप्रैल 1973 को जब पलामू टाइगर रिज़र्व का नोटिफिकेशन हुआ तो दोनों किला सहित कमलदह झील का पूरा इलाका इसके अंतर्गत आ गया. तब से अब तक यह पीटीआर के रिज़र्व क्षेत्र में ही आता है. बेतला पार्क से सटे होने के कारण ये दोनों किले पर्यटकों  के लिए आकर्षण के केंद्र हैं. कहा यह जाता है कि आरक्षित वन क्षेत्र में होने के कारण इस किले का कोई जीर्णोद्धार नहीं हो पाता है. यहां तक कि किले की दीवारों पर उगी झाड़ी और पेड़ों को साफ़ करना भी वन अधिनियम के खिलाफ है. भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा भी कई बार इस किले का जीर्णोद्धार किये जाने की कोशिश की गयी, पर वन विभाग के नियमों से तालमेल के अभाव में काम पूरा नहीं हो पाया. 

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पलामू किला को वन क्षेत्र से मुक्त किया जाये 

अब खुद को चेरो राजवंश के उत्तराधिकारी बताने वाले दीनानाथ सिंह व उनके साथी किला को वन क्षेत्र से मुक्त करने की मांग कर रहे हैं. अपने पक्ष में उनका तर्क है कि वन विभाग के नियमों के कारण ही किला अपने वजूद को खो रहा है. वे कहते हैं कि अगर उनकी तरफ से किले की साफ-सफाई करने का प्रयास किया जाता है तो वन विभाग द्वारा केस कर दिया जाता है. उनका आरोप है कि पीटीआर प्रबंधन किले की सफाई या जीर्णोद्धार न तो खुद करता है और न ही किसी को करने देता है. किले में चूंकि कोई सुरक्षा के इंतज़ाम नहीं हैं. इसलिए मनचले युवक-युवतियों का अड्डा भी बना रहता है. किला परिसर में असामाजिक तत्वों का जमावड़ा भी लगा रहता है. यहां शराब पीना आम बात हो गयी है. अपने पूर्वजों की इस पवित्र भूमि पर इस तरह के कार्यों के होने से चेरो समुदाय आक्रोशित और व्यथित है. उनका कहना है कि अगर इस किले का इलाका आरक्षित वन भूमि से मुक्त कर दिया जाये तो इसे बचाया जा सकता है. साथ ही इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित भी किया जा सकता है. 

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राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री से आग्रह की तैयारी

दीनानाथ सिंह और उनके साथी अपनी मांग को राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री व विभाग के सामने रखने की तैयारी कर रहे हैं. खुद को उत्तराधिकारी बताने के लिए उन्होंने चेरो राजवंश का वंशावली भी प्रस्तुत की है. यह वंशावली एफिडेविट किया हुआ है. दीनानाथ सिंह मेदिनी आजाद संघ के माध्यम से किला को वन भूमि से मुक्त कराने को लेकर आंदोलन करने की तैयारी कर रहे हैं. इसके अलावा पलामू किला संरक्षण सह जतरा विकास समिति के सचिव गंगेश्वर सिंह चेरो भी इस आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं. पिछले दिनों दीनानाथ सिंह व गंगेश्वर सिंह के साथ चेरो समुदाय के कई लोगों ने पलामू टाइगर रिज़र्व के उत्तरी प्रमंडल के उप निदेशक प्रजेश कांत जेना से मिलकर अपनी बातों को रखा था. दीनानाथ सिंह ने कहा कि अगर वार्ता से हल नहीं निकला तो वे कानून का सहारा लेकर कोर्ट में केस फाइल करेंगे. 

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किला को बचाना हमारी प्राथमिकता है 

उप निदेशक श्री जेना ने इस संबंध में बताया कि किला और उससे सटे इलाके को सरकार ने पलामू टाइगर रिज़र्व के अंतर्गत नोटिफाइड किया है और सरकारी कर्मचारी होने के नाते इसके नियमों को पालन करना हम सभी का दायित्व है. चूंकि पलामू किला एक धरोहर है. इसलिए इसे बचाना प्रबंधन की प्राथमिकता है. इसी के तहत नियम के दायरे में रहते  हुए आम स्थानीय लोग और विभागीय कर्मचारी, ट्रैकर, गाइड आदि के साथ मिलकर किला व उसके आसपास की सफाई के लिए श्रमदान कर काम करना शुरू कर दिया गया है. इसके सकारात्मक फल भी दिखने लगा है. जहां तक चेरो समुदाय के लोगों की भावनाओं की बात है तो उनके साथ बैठकर उनके सहयोग से किले को कैसे बचाया जाये इसपर वार्ता की जाएगी. उन्होंने कहा कि जो भी नियम के अनुकूल होगा, किले को बचाने के लिए किया जाएगा.

पलामू किला को बचाना है

स्थानीय विधायक रामचंद्र सिंह ने कहा कि पलामू किला से हम सबों की पहचान है और इसे बचाना सभी का कर्तव्य है. उन्होंने कहा कि किला अपने गौरवशाली अतीत के अनुसार फिर से खड़ा हो, इसके लिए नियम संगत कार्य किये जा रहे हैं. सरकार के पास इस मामले को लेकर विमर्श किया जा रहा है. इसे बचाने में वन विभाग के पदाधिकारी, स्थानीय सभी समुदाय, धर्म व जाति के लोगों का सहयोग अपेक्षित है क्योंकि पलामू किला पलामू का शान है.

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