पलामू, सैकत चटर्जी. हर सार 18 अप्रैल को विश्व धरोहर दिवस मनाया जाता है. पलामू टाइगर रिजर्व के उत्तरी प्रमंडल के द्वारा भी इस दिशा में सकारात्मक पहल की गई है, जिससे विश्व धरोहर दिवस मनाने की परिकल्पना साकार हुआ है.
पीटीआर प्रबंधन अब पलामू किले के बिखरे पड़े अवशेषों को संरक्षित करने का काम करेगी. इससे एक तरफ जहां इनके जमींदोज या चोरी होने का खतरा नहीं रहेगा, वहीं दूसरी तरफ यह पर्यटकों के लिए उत्सुकता व आकर्षण का केंद्र बनेगा. इसके संरक्षित होने से इतिहास के कुछ अनसुलझे पन्ने भी सामने आएंगे.
पलामू के आन-बान-शान के प्रतीक पलामू किला पलामू टाइगर रिजर्व के अंतर्गत आता है. यहां दो किला है. नीचे पुराना किला और पहाड़ के ऊपर नया किला. कहते हैं पुराना किला को चोल राजाओं ने बनाया (इसके निर्माण काल को लेकर इतिहासकारों में मतभेद रहे हैं) जो कालांतर में कई राजवंश के अधीन होता हुआ चेरो राजाओं का अभेद्य दुर्ग बना.
नये किला का निर्माण राजा मेदिनी राय ने करवाया, जिसका कुछ हिस्सा पूर्ण न हो सका था. चेरो राजवंश के पतन और अंग्रेजो के उदय के साथ-साथ इन दोनों किलाओं की दुर्दशा शुरू हुई, जो आजाद भारत में भी नहीं बदली. पुरातत्व विभाग द्वारा कई सर्वे के बाद भी इसका कायाकल्प नहीं हो सका. अब पीटीआर प्रबंधन इसे संवारने का काम करेगा.
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पीटीआर के उत्तरी प्रमंडल के डिप्टी डायरेक्टर प्रजेश कांत जेना से पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि चूंकि यह किला रिजर्व क्षेत्र में आता है, इसलिए इसकी देखभाल करना प्रबंधन की नैतिक जिम्मेवारी है. इसी के तहत यह प्रयास किया जा रहा है की किले के चारों तरफ जो टूटे अवशेष बिखरे पड़े हैं, उन्हें इकट्ठा कर किला में ही एक निर्दिष्ट स्थान पर संरक्षित किया जाए. इस काम में कुछ युवा और उत्साही फॉरेस्ट गार्ड और इको विकास समिति के सदस्यों को लगाया जाएगा.
अभी प्राथमिक रूप से इन अवशेषों को चिन्हित करने का काम किया जा रहा है. उन्होंने कहा की इससे इस इलाके में पर्यटकों के लिए समय बिताने का पर्याप्त अवसर मिलेगा. साथ ही अगर इतिहास में रुचि रखने वाले इसपर कोई शोध करना चाहे तो उनकी हर संभव मदद की जायेगी.
इसी दिशा में पहल करते हुए डिप्टी डायरेक्टर जेना ने खुद दोनों किला और इसके आसपास का इलाके का कई दिनों तक भ्रमण किया. उन्होंने जिक्र किया कि पुराना पलामू किला के निचले हिस्से में एक सफेद पत्थर का बना विशाल पीढ़ानुमा वस्तु दिखी है. लोग ऐसा मानते हैं कि राजा मेदिनी राय इसी पीढ़ा में बैठते थे.
जेना ने कहा कि अगर वास्तव में ऐसा है तो इसे संरक्षित कर इसका इतिहास जानना रोचक होगा. यह पूछे जाने पर की यह पीढ़ा किला से इतनी दूर कैसे आया, कही इसकी तस्करी तो नहीं की जा रही थी, उन्होंने कहा यह नहीं कहा जा सकता, ऐसा भी हो सकता है की भू स्थलन या अन्य कोई प्राकृतिक आपदाओं के कारण यह विशाल पीढ़ा किले की ऊपरी भाग से यहां आ गिरा हो.
स्थानीय लोग यह भी मानते हैं कि जब मुगलों की सेना ने किला फतह कर ली थी, तो यहां से जाते समय अन्य कुछ कीमती सामानों के साथ यह पीढ़ा भी हाथी पर लाद के ले जा रहे थे, लेकिन किला से कुछ दूर जाने के बाद हाथी इसके वजन से गिर गया और दोबारा इसे उठाया नहीं जा सका, तब से यह यहीं रह गया.
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अगर नया और पुराना किला में बिखरे अवशेषों को सही ढंग से संरक्षित किया जा सके तो पर्यटकों के लिए आकर्षण के केंद्र बनने के साथ इतिहासकारों के लिए भी उत्सुकता का विषय बन सकता है. खास कर नया किला में अभी भी कुछ ऐसी कलाकृतियां हैं जो अदभुत है, इनके निर्माण शैली व स्थापत्य कला पर शोध होने से इतिहास के कई अनसुलझे पन्ने सुलझ सकते है. इस किला में कई शिलालेख भी हैं, जिसपर गंभीर शोध नहीं हुई. इसकी भी आवश्यकता है, जिससे महान चेरो साम्राज्य की तथ्य पूरक बातें सामने आ सके.
भारत सरकार देश के धरोहरों को बचाने के लिए एक प्लानिंग के तहत काम कर रही है. भारत से बाहर चोरी कर बेचे गए दुर्लभ मूर्ति, स्मारक, कलाकृति को वापस लाने की दिशा में सकारात्मक पहल का नतीजा है कि पिछले सात सालों में विदेश के म्यूजियम में रखे देश के 200 से अधिक बहुमूल्य मूर्तियां और कलाकृतियां वापस लायी गयी. अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया आदि देशों से अभी और भी कई बेशकीमती मूर्तियां भारत वापस लाने की दिशा में काम हो रही है. देश में इसके संरक्षण का काम चल रहा और इसके तस्करी को रोकने के लिए भी कड़ाई से कदम उठाए गए हैं.