कुमार सौरभ : झारखंड का ग्रामीण परिवेश बड़ी तेजी से बदल रहा है. हालांकि, अभी भी कई चुनौतियां हैं, लेकिन इन चुनौतियों पर बदलाव भारी पड़ने लगा है. जिन क्षेत्रों में कल तक माओवादियों की बंदूकों व बम-गोलों की चर्चा होती थी, वहां अब ग्रामसभा लगती है और ग्रामीण विकास की बातें होती हैं. खूंटी जिले के तोरपा के अलंकेल गांव में हेमवंती देवी से मुलाकात हुई. वे ग्रामीण विकास विभाग की ओर से संचालित दीनदयाल ग्राम स्वावलंबन योजना के तहत आशा दीदी के रूप में प्रतिनियुक्त हैं.
हेमवंती के अनुभव किसी आश्चर्य से कम नहीं हैं. उन्होंने बताया कि जब वह अलंकेल गांव आयी थीं, तो ग्रामीण महुआ से दारू बनाने में व्यस्त रहते थे, लेकिन धीरे-धीरे दो-तीन महीने में तस्वीर बदलने लगी. ग्रामीणों ने हेमवंती दीदी को अपना गुरु मान लिया. ग्रामसभाओं की नियमित बैठकें होने लगीं. गांव में साफ-सफाई का माहौल बना. महिलाएं इस काम में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने लगीं. खूंटी जिले के करीब 70 गांवों में परिवर्तन धीरे-धीरे दिखने लगा है.
आरा-केरम गांव का प्रयोग : ग्रामीण विकास विभाग द्वारा दीनदयाल ग्राम स्वावलंबन योजना की शुरुआत पिछले साल हुई थी. खूंटी जिले को इस योजना का केंद्र बनाना तय किया गया था. इसलिए इस पिछड़े इलाके को प्रयोग के तौर पर चुना गया. इस योजना की देख-रेख की जिम्मेदारी मनरेगा आयुक्त त्रिपाठी को मिला. पहले झारखंड के विभिन्न जिलों से करीब 40 महिलाओं को ग्रामीण विकास के प्रशिक्षण के लिए चुना गया.
इसमें से कुछ तो प्रशिक्षण काल में ही अपने घर लौट गयीं. कुछ प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद अपने गांव चली गयीं, लेकिन उसमें से कुछ महिलाओं ने ग्रामीण विकास का संकल्प लेकर तोरपा जैसे नक्सली इलाके में आयीं. पिछले 10 महीने से ये महिलाएं अपने क्षेत्र में डटी हुई हैं. इन महिलाओं के समन्वय के लिए सुनील शर्मा हैं. तोरपा के ग्रामीण इलाकों में सिमरकुंडी और आरा-केरम का प्रयोग दोहराया जा रहा है.
ग्रामीण विकास के पारंपरिक प्रयोगों में परिवर्तन : इस मामले में दीनदयाल ग्राम स्वावलंबन योजना के को-ऑर्डिनेटर सुनील शर्मा ने बताया कि आरा- केरम के प्रयोग को अब तोरपा प्रखंड के लगभग 70 गांवों में लागू किया जा रहा है. पिछले साल करीब 36 आशा दीदियों को प्रशिक्षित किया गया था. उसमें से 32 आशा दीदियों को गांव आवंटित कर दिया गया है. अलंकेल जैसे लगभग 70 गांव हैं. इसमें बड़े पैमाने पर ग्रामीण विकास का काम चल रहा है. ग्रामीण विकास के पारंपरिक प्रयोगों में थोड़ा परिवर्तन किया गया है. इसमें विकास भारती, बिशुनपुर और चक्रिय विकास का मॉडल जोड़ा गया है.
हर सप्ताह होती है ग्रामसभा : दो पंचायतों में दो हजार से ज्यादा फलदार वृक्ष लगाये गये हैं. प्रत्येक सप्ताह ग्रामसभा की बैठक होती है. गांव में अब महिलाएं कई मामले में अपना निर्णय खुद लेने लगी हैं. गांव में यदि किसी को आर्थिक सहायता की जरूरत पड़ती है, तो सखी मंडल की महिलाएं हमेशा सहयोग के लिए खड़ी रहती हैं. इस कारण अब गांव में सूदखोरी पर अंकुश लग चुका है.
Post by : Pritish Sahay