हरियाली बढ़ाइए, जीवन बचाइए
मत्स्य पुराण के अनुसार एक पुत्र 10 तालाबों के बराबर होता है और एक वृक्ष 10 पुत्रों के समान. वन हैं, तभी हम हैं. जंगल महज पेड़-पौधे नहीं हैं, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर भी हैं. झारखंड का कुल क्षेत्रफल 79,716 वर्ग किलोमीटर हैं. इसमें कुल 23,611 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र वनों से आच्छादित है यानी 29.62 फीसदी जंगल है. इनमें 2,603 वर्ग किलोमीटर घना वन क्षेत्र, जबकि 9,687 वर्ग किमी मध्यम घना वन क्षेत्र एवं 11,321 वर्ग किलोमीटर में खुला जंगल है.
गुरुस्वरूप मिश्रा
जल, जंगल और जमीन झारखंड की ताकत हैं. जंगलों के बिना तो जीवन ही सूना है. इनके बिना जिंदगी की कल्पना नहीं की जा सकती, लेकिन अंधाधुंध वनों की कटाई से जनजीवन खतरे में पड़ता जा रहा है. कागजी आंकड़ों व जमीनी हकीकत के बीच स्वच्छ, सुंदर और हरे-भरे झारखंड के लिए जंगलों की हरियाली बढ़ानी होगी, तभी हम स्वस्थ रह सकेंगे. मत्स्य पुराण के अनुसार एक पुत्र 10 तालाबों के बराबर होता है और एक वृक्ष 10 पुत्रों के समान. वन हैं, तभी हम हैं. जंगल महज पेड़-पौधे नहीं हैं, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर भी हैं. झारखंड का कुल क्षेत्रफल 79,716 वर्ग किलोमीटर हैं. इसमें कुल 23,611 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र वनों से आच्छादित है यानी 29.62 फीसदी जंगल है. इनमें 2,603 वर्ग किलोमीटर घना वन क्षेत्र, जबकि 9,687 वर्ग किमी मध्यम घना वन क्षेत्र एवं 11,321 वर्ग किलोमीटर में खुला जंगल है.
बढ़ा था वन क्षेत्र
भारतीय वन सर्वेक्षण, देहरादून के द्वारा जारी स्टेट आफ फॉरेस्ट रिपोर्ट- 2017 के मुताबिक झारखंड में वनों का घनत्व बढ़कर 18.2 करोड़ घन मीटर हो गया है, जो 2013 की तुलना में 14 प्रतिशत ज्यादा है. नदियों के पुनर्जनन के अंतर्गत 2018-19 में 408 किलोमीटर नदी तट पर 16.20 लाख पौधे लगाए गए हैं. इंडिया स्टेट फॉरेस्ट रिपोर्ट की मानें, तो वर्ष 2001 से 2015 की अवधि में झारखंड का वन क्षेत्र 22,531 वर्ग किमी से बढ़कर 23,478 वर्ग किमी हो गया था. वन और वनस्पतियों के नष्ट होने से वर्ष 2003-05 के दौरान 16.40 फीसदी नये भू-भाग कटाव के दायरे में पाए गए थे.
देश में 33 फीसदी वन आच्छादन का लक्ष्य
दिसंबर 2019 में केंद्र सरकार द्वारा जारी इंडिया स्टेट फॉरेस्ट रिपोर्ट के मुताबिक पिछले दो सालों में देश के हरित क्षेत्र में 5188 वर्ग किलोमीटर की बढ़ोतरी हुई है. देश के उत्तर पूर्व इलाके के हरित क्षेत्रों में कुछ कमी जरूर आई है. रिपोर्ट की मानें, तो देश का कुल वन और वृक्ष आवरण 80.73 मिलियन हेक्टेयर है, जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 24.56 फीसदी है. वनावरण 7,12,249 वर्ग किलोमीटर है, जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 21.67% है. भारत में 33 फीसदी वन आच्छादन का लक्ष्य है.
लातेहार में अधिक व जामताड़ा में सबसे कम जंगल
इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2019 की मानें, तो झारखंड में 177 पौधों की प्रजातियां हैं. इन जिलों में जंगलों का प्रतिशत इस प्रकार है. जामताड़ा जिले में सबसे कम 5.56 प्रतिशत जंगल बचे हैं, जबकि लातेहार जिले में सर्वाधिक 56.08 फीसदी जंगल हैं.
30 प्रतिशत से अधिक जंगल वाले 10 जिले
जिला वन क्षेत्र (प्रतिशत में)
लातेहार 56.08
चतरा 47.80
पश्चिमी सिंहभूम 46.60
कोडरमा 40.29
हजारीबाग 38.05
खूंटी 35.72
गढ़वा 34.00
लोहरदगा 33.60
सिमडेगा 32.88
पूर्वी सिंहभूम 30.30
20 प्रतिशत से भी कम जंगल वाले सात जिले
जिला वन क्षेत्र (प्रतिशत में)
जामताड़ा 5.56
देवघर 8.22
धनबाद 10.47
दुमका 15.35
पाकुड़ 15.85
गिरिडीह 18.16
गोड्डा 18.68
रांची के प्रोजेक्ट भवन स्थित झारखंड मंत्रालय में वन विभाग द्वारा औषधीय पादप उद्यान लगाया गया है, जहां 60 प्रकार के औषधीय पौधे लगाये गये हैं.
नदी किनारे पौधरोपण के रिकॉर्ड का दावा
झारखंड के सभी 24 जिलों की 44 नदियों के किनारे करीब 274 किलोमीटर में पौधरोपण अभियान चलाया गया था. तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास ने दो जुलाई, 2018 को रांची के नामकुम स्थित स्वर्णरेखा नदी के तट पर पौधरोपण कर इसकी शुरूआत की थी. इस दिन 24 जिले में 24 नदियों के किनारे नौ लाख पौधरोपण का अभियान चला था. दो जुलाई से दो अगस्त तक चले इस अभियान पर अधिकारियों की मानें, तो देश में पहली बार झारखंड में नदियों के किनारे इतनी लंबी दूरी तक पौधरोपण अभियान चलाया गया. नदी किनारे पौधरोपण पर चार करोड़ रुपये खर्चने थे. कैम्पा व राज्य योजना से भी 2.36 करोड़ पौधे लगाये जाने थे. साहेबगंज जिले में गंगा नदी के शकुंतला घाट पर सबसे अधिक करीब 2,36,000 पौधे लगाये जाने का लक्ष्य था.
नदी स्थान पौधों की संख्या
गंगा साहेबगंज 2,36,000
बराकर जामताड़ा 30,000
मयूराक्षी दुमका 30,000
गेरुआ गोड्डा 30,000
बांसलोई पाकुड़ 30,000
अजय देवघर 48,000
सकरी कोडरमा 500
केवट हजारीबाग 30,000
खेड़ुआ हजारीबाग 18,000
पुरैनी, बासा व हेरु चतरा 30,000
स्वर्णरेखा व गोला रामगढ़ 18,000
उसरी गिरिडीह 21,000
गरगा बोकारो 30,000
बराकर व दामोदर धनबाद 64,000
स्वर्णरेखा जमशेदपुर 72,000
रोरो चाईबासा 17,520
स्वर्णरेखा रांची 42,000
कांची खूंटी 500
पालमाड़ा सिमडेगा 18,000
कांस व नागफनी गुमला 6,000
शंख लोहरदगा 30,000
औरंगा लातेहार 30,000
दानरो गढ़वा 30,000
उत्तरी कोयल मेदिनीनगर 30,000
19,700 हेक्टेयर में 2.75 करोड़ पौधे
वर्ष 2017 में 19,700 हेक्टेयर भूमि पर करीब 2.75 करोड़ पौधे लगाये गये थे और 4600 हेक्टेयर प्राकृतिक वनों का पुनरुद्धार किया गया था. वर्ष 2018 में वन विभाग द्वारा 15,300 हेक्टेयर में कुल 2.40 करोड़ पौधे लगाने के साथ 7000 हेक्टेयर प्राकृतिक वनों का पुनरुद्धार किया गया है. 1450 हेक्टेयर उजड़े बांस-बखारों का भी पुनरुद्धार किया जा रहा है. इससे हाथियों को वनों में ही पर्याप्त भोजन मिल सकेगा, जिससे वे खेत, खलिहान और घरों को क्षति नहीं पहुंचायेंगे.
दावों में हैं कितना दम
वर्ष 2019 में 16 हजार हेक्टेयर में कुल 2.50 करोड़ पौधे लगाने के साथ ही प्राकृतिक वनों का पुनरुद्धार भी सात गुना बढ़ा कर 35 हजार हेक्टेयर करने का लक्ष्य था. इनमें 70 लाख वृक्ष की ऐसी प्रजातियां हैं, जो वनों में प्राकृतिक रूप से पायी जाती हैं और उस पर स्थानीय लोगों की निर्भरता है. इस योजना से 750 से ज्यादा गांवों को सीधे जोड़ने का लक्ष्य था. हाथियों से संवेदनशील 14 वन प्रमंडलों में लगभग छह हजार हेक्टेयर उजड़े बांस के जंगलों की सफाई कर इनका पुनरुद्धार करना था.
एशिया से सबसे घना जंगल
सारंडा एशिया महादेश का सबसे घना जंगल माना जाता रहा है. सात सौ पहाड़ियों की शृंखलाओं से सुसज्जित, बेशकीमती पेड़ों और दुर्लभ औषधीय पौधों से भरे सारंडा की प्राकृतिक सुंदरता लोगों को मोहित करती थी. 840 वर्ग किमी में फैले सारंडा का वन राज्य के कुल क्षेत्रफल का 29. 61 प्रतिशत है.
जंगली जानवरों से हुई क्षति में मुआवजा राशि बढ़ी
जंगली जानवरों की वजह से होने वाली क्षति में मुआवजा की राशि बढ़ी है. जंगली जानवरों की वजह से मौत होने पर चार लाख रुपए मुआवजा दिया जाता है. इसी तरह घायलों और फसलों के नुकसान पर भी मुआवजा राशि बढ़ाई गई है.
प्रमुख वेबसाइट्स
488 किमी अति आग आशंकित वन क्षेत्र
बीट तकनीक से राज्य में आग लगने की सूचना मिलती है, लेकिन इस अलर्ट प्रणाली में दर्ज वन क्षेत्र की जानकारी नहीं है. झारखंड में 247 जगहों पर इसका उपयोग किया जाता है. वन की आग को चार श्रेणियों में बांटा गया है. झारखंड में 47 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र ऐसा है, जहां आग लगने की आशंका काफी अधिक है, जो कुल वन क्षेत्र का 0.21 फीसदी क्षेत्र है. 488 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र अति आग आशंकित क्षेत्र में आते हैं.
देश का आधा बांस झारखंड में
फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के सेटेलाइट सर्वे के अनुसार झारखंड में 23,553 वर्ग किलोमीटर वन भूमि क्षेत्र है. राज्य में 4470 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में बांस की खेती होती है. इससे 2520 मिलियन टन बांस का उत्पादन होता है. पूरे देश का आधा बांस झारखंड में पाया जाता है. बांस की शिल्पकारी से करीब छह लाख परिवार जुड़े हैं.
वन विभाग से अलग हुआ बांस
बांस काटने और बांस की चीजें बनाने में कारीगरों को परेशानी न हो, इसे ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने बांस को वन विभाग से अलग कर दिया है. झारखंड के किसानों को इसका लाभ मिल रहा है. अब किसान खेतों की मेड़ों और परती भूमि पर भी बांस की खेती कर सकेंगे.
मुख्यमंत्री जन-वन योजना का लाभ उठाएं
मुख्यमंत्री जन-वन योजना के तहत वृक्षारोपण के लिए अनुदान की राशि 75 प्रतिशत है. इसका उद्देश्य रैयती जमीन पर वृक्षारोपण को प्रोत्साहन देकर किसानों या आम लोगों की आय में वृद्धि करना व पर्यावरण संरक्षण करना है.
वृक्षारोपण के लिए निर्धारित प्रजातियां
मुख्यमंत्री जन-वन योजना के तहत काष्ठ प्रजातियों में शीशम, सागवान, गम्हार, महोगनी, क्लोनल, यूकेलिप्टस, एकासिया एवं फलदार में कलमी आम, कटहल, अमरुद, आंवला, बेल एवं लीची लगा सकते हैं. न्यूनतम आधा एकड़ एवं अधिकतम 50 एकड़ जमीन पर वृक्षारोपण कर सकते हैं. पौधों की सुरक्षा लाभुक करेंगे. विशेष जानकारी forest.jharkhand.gov.in पर ले सकते हैं.
पेड़-पौधों की 46,000 से अधिक प्रजातियां
पादप विविधता की दृष्टि से भारत का विश्व में दसवां और एशिया में चौथा स्थान है. भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण संस्था द्वारा लगभग 70 प्रतिशत भूभाग के सर्वेक्षण के आधार पर पेड़-पौधों की 46,000 से अधिक प्रजातियां हैं. वाहिनी वनस्पति के अंतर्गत 15 हजार प्रजातियां हैं. देश के विभिन्न जनजातीय क्षेत्रों में कई विस्तृत नृजाति सर्वेक्षण किए जा चुके हैं. इनमें वनस्पति नृजाति विज्ञान की दृष्टि से महत्वपूर्ण पौधों की 800 प्रजातियां हैं.
3 हजार से अधिक औषधीय पौधों की प्रजातियां
देश में करीब 3,000 प्रजातियों के पादपों के बीच वैश्विक वनस्पति की 12% संपत्ति भारत के पास है. करीब 15,000 फूल पौधों की प्रजातियां हैं. 3000 से अधिक औषधीय पौधे की प्रजातियां हैं.
लुप्त हो रहे पौधे
कृषि, औद्योगिक और शहरी विकास के कारण पेड़ों की अंधाधुंध कटाई जारी है. इसके कारण अनेक पौधे लुप्त हो रहे हैं. पौधों की लगभग 1336 प्रजातियों के लुप्त होने का खतरा है. 60 से 100 वर्षों के दौरान पौधों की करीब 20 प्रजातियां दिखाई नहीं पड़ी हैं. आशंका है कि ये प्रजातियां लुप्त हो चुकी हैं.
नेचर जर्नल की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में एक व्यक्ति पर 28 पेड़
– 28 पेड़ बचे हैं भारत में अब प्रति व्यक्ति पर
– 422 पेड़ हैं दुनियाभर में प्रति व्यक्ति पर
– 641 अरब पेड़ों की संख्या है रूस में
– 318 अरब पेड़ों की संख्या है कनाडा में
– 301 अरब पेड़ों की संख्या है ब्राजील में
– 228 अरब पेड़ों की संख्या है अमेरिका में
– 35 अरब पेड़ों की संख्या है भारत में
– 10 अरब पेड़ काटे जा रहे हैं दुनियाभर में हर साल
– 3.04 लाख करोड़ पेड़ अब तक काटे गये हैं
औषधीय पौधरोपण पर दिया जायेगा जोर : हेमंत सोरेन
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा है कि झारखंड में औषधीय पौधरोपण को बढ़ावा दिया जाएगा. देश-दुनिया का हर्बल की ओर तेजी से कदम बढ़ा है. हर्बल आधारित उद्योगों को सरकार भी बढ़ावा देगी. यहां के बड़े भूभाग पर जंगल हैं. बड़ी आबादी जल, जंगल और जमीन से जुड़ी हुई है. सदियों से वनोपज से जीविकोपार्जन होता रहा है. वन संरक्षण से वनोत्पाद के जरिये आदिवासी समेत सभी वर्ग के लोगों की आय में वृद्धि होगी. वन आधारित उद्योगों को भी बढ़ावा दिया जायेगा.