जंगल की शेरनी कांदोनी सोरेन से डरते हैं जंगल माफिया
कांदोनी सोरेन. मुसाबनी प्रखंड अंतर्गत सरकघुटु गांव की इस आदिवासी युवती का जंगल बचाने का जज्बा अद्भुत है. वर्तमान में वह गृह रक्षा वाहिनी, जमशेदपुर में पदस्थापित हैं.
अंधाधुंध कटते जंगलों से पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है. जनजीवन पर इसका बुरा असर पड़ रहा है, लेकिन पर्यावरण संरक्षण को लेकर हमारे बीच ऐसे लोग भी हैं, जो जंगल को बचाने के लिए सर्वस्व न्योछावर करने को तैयार हैं. इन्हीं में एक नाम है कांदोनी सोरेन. मुसाबनी प्रखंड अंतर्गत सरकघुटु गांव की इस आदिवासी युवती का जंगल बचाने का जज्बा अद्भुत है. वर्तमान में वह गृह रक्षा वाहिनी, जमशेदपुर में पदस्थापित हैं. इस दौरान जमशेदपुर शहर के अलावा जिले के विभिन्न थाना क्षेत्रों में इन्हें ड्यूटी करनी पड़ती है. इसके बावजूद जब खाली समय मिलता है कांदोनी जंगल की ओर ही रुख करती हैं. जंगलों पर नियंत्रण जैसा पहले था, वैसे आज भी है. गृह रक्षा वाहिनी में पदस्थापित होने से पहले कांदोनी करीब एक सौ हेक्टेयर में लगे जंगल की रक्षा करती थीं. पचास महिलाओं को मिलाकर चार वन समितियां भी बनायीं. अब इन वन समितियों के जिम्मे क्षेत्र के जंगलों की रक्षा करना है. हमेशा जंगल बचाने में लगी रहने वाली कांदोनी को क्षेत्र के लोग जंगल की शेरनी के नाम से पुकारते हैं. आलम तो ये है कि जंगल माफिया कांदोनी के नाम से डरते हैं.
बचपन से ही चला रही हैं अभियान
कांदोनी ने जब से होश संभाला, तब से जंगल को बचाये रखने का अभियान चला रही हैं. जंगल को बचाने के लिए गांव की अन्य महिलाओं के साथ मिलकर वन रक्षा समिति का संचालन की हैं. ग्रामीणों की मानें तो कांदोनी गांव की अन्य महिलाओं को साथ लेकर पहाड़ी इलाके में करीब 100 हेक्टेयर में जंगल की रक्षा करती हैं. जंगल में इनकी चाल किसी शेरनी से कम नहीं है.
समिति रोजाना जंगल का करती है मुआयना
कांदोनी की देखरेख में महिलाओं की वन रक्षा समिति रोजाना वन क्षेत्र का मुआयना करती है. आठ घंटे ड्यूटी के बाद कांदोनी सीधे जंगल की ओर प्रस्थान कर पूरे जंगल क्षेत्र का जायजा लेती हैं. कांदोनी ने हरियाली सुकमा नाम से समिति गठित की है. कांदोनी के इसी प्रयास का नतीजा है कि उनके अभियान में विभिन्न गांवों की महिलाएं जुड़कर जंगल बचाव में लगी हैं. चार समितियों में 50 महिलाएं 100 हेक्टेयर जंगल की देखरेख करती हैं. पेड़ कटाई की खबर मिलते ही वह जंगल की ओर दौड़ पड़ती हैं. बिना सरकारी सहायता के आज भी जंगल बचाने में जुटी हैं कांदोनी.
हमारे प्राणरक्षक हैं जंगल : कांदोनी
ट्री वीमेन कांदोनी सोरेन कहती हैं कि जंगल क्षेत्र से कीमती पत्थरों का भी दोहन होता है. अप्रत्यक्ष रूप से स्थानीय थाना की मिलीभगत रहती है. जमशेदपुर में कभी-कभी इमरजेंसी ड्यूटी पड़ती है. इसके बाद आठ घंटे थाना में ड्यूटी के बाद सीधे जंगल की ओर जाती हैं. ग्रामीणों से अपील करते हुए कहती हैं कि जंगल हमारे प्राणरक्षक हैं. जंगल यदि खत्म हो जायेंगे, तो हमारा जीवन भी खतरे में आ जायेगा.