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Prabhat Khabar Explainer: परंपरागत खेती की ओर लौट रहे किसान, दलहन- तेलहन और सब्जियों की हो रही जैविक खेती

झारखंड के किसान जैविक खेती की ओर बढ़ने लगे हैं. अब रासायनिक खेती को छोड़ परंपरागत खेती की ओर किसान लौट रहे हैं. गुमला जिले के करीब पांच हजार किसान जैविक पद्धति से दलहन, तेलहन एवं सब्जियों की खेती कर रहे हैं. वहीं, फल एवं फूलों की भी बागवानी हो रही है.

Jharkhand News: गुमला जिला में कृषि धीरे-धीरे अपने परंपरागत खेती की ओर लौट रहा है. जिले के किसान जैविक पद्धति से खेती करने लगे हैं. हर साल जैविक पद्धति से खेती करने वाले किसानों की संख्या बढ़ रही है. विगत कुछ साल पहले तक जिले में महज सैकड़ों की संख्या में ही किसान जैविक पद्धति से कुछ-कुछ फसलों की खेती करते थे. परंतु, वर्तमान समय में हजारों की संख्या में लगभग पांच हजार किसान जैविक पद्धति से विभिन्न प्रकार के दलहन, तेलहन एवं मशाला बनाने वाले पौधों सहित विभिन्न प्रकार के सब्जियों की खेती कर रहे हैं. हालांकि, जिले में किसानों की संख्या के हिसाब से अभी भी काफी कम किसान ही जैविक पद्धति से विभिन्न प्रकार के दलहन, तेलहन, मशाला बनाने वाले पौधों एवं विभिन्न प्रकार के सब्जियों की खेती कर रहे हैं. अधिकांश खेती सब्जियों की हो रही है. कुछ किसान जैविक पद्धति से ही विभिन्न प्रकार के फल एवं फूलों की बागवानी भी कर रहे हैं.

जैविक खेती को बढ़ावा देने की कोशिश

इधर, कृषि विभाग एवं उद्यान्न विभाग भी गुमला जिला में जैविक खेती को बढ़ावा देने में लगी हुई है. इस पद्धति से खरीफ एवं रबी के विभिन्न फसलों सहित मशाला बनाने वाले पौधों एवं सभी प्रकार की सब्जियों की खेती कराने के लिए विभाग की ओर से किसानों को प्रेरित किया जा रहा है. बता दें कि जिले में हर साल विभिन्न प्रकार अनाज एवं सब्जियों की खेती हो रही है. परंतु, जिले में काफी कम किसान ही दलहन, तेलहन एवं मसाला बनाने वाले पौधों सहित विभिन्न प्रकार के साग-सब्जियों की ही जैविक पद्धति से खेती कर रहे हैं.

जैविक खेती से मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ी

जैविक पद्धति से उत्पादित फसलों के सेवन से लोग न केवल कई प्रकार की बीमारियों से बच रहे हैं, बल्कि मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी बढ़ रही है. जिला कृषि पदाधिकारी अशोक कुमार सिन्हा ने बताया कि किसानों को धीरे-धीरे जैविक खेती की ओर प्रेरित किया जा रहा है. जिले में सीमित संख्या में किसान जैविक पद्धति से कुछ-कुछ फसलों की खेती कर रहे हैं. हमारा प्रयास है कि किसान अब रासायनिक खेती से जैविक खेती की ओर बढ़े.

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सिक्किम में शत-प्रतिशत हो रही जैविक खेती

उन्होंने बताया कि जिले में कृषि कार्य में अधिकांश उपयोग रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों का प्रयोग हो रहा है. जिससे उत्पादित फसलें न केवल कई प्रकार की बीमारियों को आमंत्रित कर रही है, बल्कि रसायन के प्रयोग का दुष्प्रभाव मिट्टी पर भी पड़ रही है. रासायनिक खेती की मार के कारण ही हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों को अपनी फसल पद्धति बदलनी पड़ी. वहीं, सिक्किम राज्य रासायनिक खेती की मार झेलने के बाद अब शत-प्रतिशत खेती जैविक पद्धति से कर रही है.

रासायनिक खेती से भूमि बनने लगा बंजर

उन्होंने बताया कि किसान रासायनिक खेती पर ज्यादा जोर दे रहे हैं. किसानों द्वारा रासायनिक खेती पर ज्यादा जोर देने का मुख्य कारण यह है कि रासायनिक खेती से शुरूआती समय में फसलों के उत्पादन में बढ़ोतरी होती है. फसल का उत्पादन बढ़ने के साथ ही किसानों की आय भी बढ़ जाती है. परंतु, फसलों में रासायनयुक्त खाद एवं कीटनाशक के उपयोग से खेतों की उर्वरा शक्ति धीरे-धीरे कम हो रही है. जिससे खेती योग्य भूमि बंजर बनने की ओर अग्रसर है. आने वाले कुछ सालों में फसल का उत्पादन भी कम हो जायेगा. जिसका दुष्परिणाम लोगों को झेलना पड़ेगा. इन समस्याओं के निदान के लिए जैविक पद्धति से खेती पर जोर दिया जा रहा है. यदि अचानक से सभी फसल जैविक पद्धति से उत्पादित होने लगी तो इसका दुष्प्रभाव पड़ सकता है. इसलिए धीरे-धीरे कर किसानों को जैविक खेती की ओर ले जाने का प्रयास कर रहे हैं.

क्यों जरूरी है जैविक पद्धति से खेती

जैविक पद्धति से खेती को बढ़ावा देने के लिए कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन अभिकरण आत्मा गुमला द्वारा बुकलेट जारी किया गया है. जिसमें जैविक खेती में ध्यान देने योग्य बातें, जैविक खेती का मुख्य उद्देश्य, जैविक खेती से जुड़े कुछ सवाल, अभिनव जैविक खेती, जैविक खेती की आवश्यकता क्यों, जैविक खेती किसे कहते हैं, खेती में रासायन के प्रयोग से क्या हानिया हांती है, खेती भोज्य पदार्थों की गुणवत्ता पर क्या प्रभाव पड़ता है, जैविक खेती को कैसे लाभप्रद बनाया जा सकता है आदि के बारे में जानकारियां दी गयी है. जिसमें यदि हम सिर्फ खेती भोज्य पदार्थों की गुणवत्ता और प्रभाव की बात करें, तो इसमें उल्लेखित है कि लगातार अनेक वर्षों से यह सुनने में आ रहा है कि आजकल भोजन में कोई स्वाद नहीं है. भोजन के पदार्थों में प्रदूषण चिंताजनक स्तर तक बढ़ गया है.

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रसायनयुक्त सब्जियों में नहीं होता स्वाद

बीएचसी एवं डीडीटी के उपयोग पर रोक लगा देने के बावजूद ये घातक रासायन मानव की भोजन में ऋंखला द्वारा माता के दूध तक को भी दूषित करने में पीछे नहीं रह रहे हैं. आजकल की सब्जियां चाहे जिस ऋतु की हो या बिना ऋतु की बिल्कुल स्वादहीन है. पहले बाजार में सब्जी लाने के बाद कई दिनों तक बिना फ्रिज के आसानी से काम में ले ली जाती थी. आलकल फ्रिज में रखने पर भी सब्जियां जल्द खराब होने लगती है. कई सब्जियों विशेषकर साग, धनिया, मेथी, पोदिना के स्वाद में कड़वापन आ गया है. टमाटर, बैंगन, गोभी, मटर आदि पहले से देखने में तो अच्छा लगता है. परंतु स्वादहीन हो गया है. गेहूं की रोटी पहले नरम व आसानी से पचाने वाली थी और अब कड़ी होती है एवं कब्जियत करती है और पौष्टिक भी नहीं है. दाल एवं चावल के स्वाद में भी अंतर आ गया है तथा कीमत भी बढ़ गयी है. इन बिंदुओं से ही समझ में आ गया होगा कि जैविक पद्धति से खेती कितनी जरूरी है.

जैविक खेती पर्यावरण के लिए है लाभदायक

जिला कृषि पदाधिकारी श्री सिन्हा ने बताया कि जैविक खेती कृषि की वह पद्धति है. जिसमें सभी फसलों का उत्पादन बिना किसी रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक एवं तृष्णनाशक दवाओं के जीवाणु एवं जैविक खाद अर्थात गोबर की खाद, कंपोस्ट, इनरिच्ड कंपोस्ट, फास्फो कंपोस्ट, वर्मी कंपोस्ट, हरी खाद एवं खल्लियों की सहायता से समुचित फसल चक्र अपनाकर की जाती है. जैविक पद्धति से उत्पादित फसल हमारी सेहत के दृष्टिकोण से भी हर मायने में बेहतर है. इसके सेवन से कई प्रकार के बीमारियों से बचा जा सकता है. साथ ही जैविक खेती से फसलों के उत्पादन में एक ठहराव होता है. खेतों में जैविक खाद के उपयोग के कारण मिट्टी की ऊर्वरा शक्ति बढ़ती है और यह पर्यावरण के लिए भी लाभदायक है.

जैविक खेती से मिट्टी के गुणों में सुधार होता है

उन्होंने बताया कि जैविक खेती में जीवाणु खाद जैसे राइजोबियम, एजोटोंबैक्टर, एजोइस्पाइरिलिस, फास्फो बैक्टिरिया (पीएसबी), नील हरित काई, एजोला का विशेष महत्व है. इसकी लागत कम होती है और वे वातावरण का हितैषी होते हैं. इनसे अधिकतर बीज उपचारित किया जाता है. जीवाणु खाद पर हुए विभिन्न प्रयोगों से यह सिद्ध हो चुका है कि इनसे कम से कम 20-40 किग्रा नेत्रजन प्रति हेक्टेयर की बचत की जा सकती है. इसके अतिरिक्त अन्य पोषक तत्वों फास्फोरस, सल्फर, कैल्सियम एवं अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों की उपलब्ध भी बढ़ जाती है. हरी खाद एवं एजोला से भी 30-40 किग्रा नेत्रजन प्रति हेक्टेयर की बचत होती है. जैविक खादों एवं हरी खाद से मिट्टी में जीवांश की मात्रा बढ़ जाती है. जिससे मिट्टी के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों में सुधार होता है.

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बढ़ रहे जैविक पद्धति से खेती करने वाले किसान

जिला उद्यान्न के तकनीकी विशेषज्ञ दीपक कुमार ने बताया कि विभाग की ओर से जिले में जैविक खेती को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहे हैं. कुछ साल पहले तक लगभग दो हजार किसान ही जैविक पद्धति से सिर्फ सब्जियों की ही खेती करते थे. परंतु अब जिले भर में लगभग पांच हजार किसान जैविक पद्धति से विभिन्न प्रकार के सब्जियों के साथ दलहन व तेलहन अनाज की खेती कर रहे हैं. किसान अब जैविक पद्धति से बागवानी भी कर रहे हैं. जिसका फलाफल किसानों को मिल रहा है. आने वाले समय में जिले में बृहत रूप से जैविक तरीके से खेती-बारी होने की संभावना है.

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रिपोर्ट : जगरनाथ पासवान, गुमला.

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