शचिन्द्र कुमार दाश
जिला: सरायकेला-खरसावां
सरायकेला-खरसावां जिला अंतर्गत कुचाई प्रखंड के खुटकट्टी क्षेत्र के 39 मौजा में पर्यावरण संरक्षण से जंगलों की हरियाली देखते ही बनती है. सबसे खास तो ये कि यह बदलाव बगैर किसी सरकारी सहायता के संभव हुआ है. झारखंड जंगल बचाओ आंदोलन के सदस्यों के जज्बे ने जंगलों को संरक्षित कर नया जीवन दिया है.
80 के दशक में एक दौर था जब जंगल माफिया की आरी 39 मौजा के पहाड़ी क्षेत्र को बंजर बना रही थी. तभी 1999 में झारखंड जंगल बचाओ आंदोलन संस्था का गठन कर ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को जंगल बचाने के लिए जागरूक करने का कार्य शुरू किया गया. समिति के जोनल इंचार्ज सोहल लाल कुम्हार लगातार पहाड़ी क्षेत्रों में बैठक कर लोगों को जंगल बचाने व उसे संरक्षित करने को प्रोत्साहित करते रहे. इसके साथ ही जंगलों से होनेवाले लाभ और जंगल खत्म होने पर होनेवाली परेशानी से भी ग्रामीणों को आगाह करते रहे.
वनोपज का मिलने लगा लाभ
वर्षों के वन संरक्षण के बाद ग्रामीणों को वनोपज का लाभ मिलने लगा. इस कारण जंगल बचाने की मुहिम से ग्रामीण जुड़ते चले गये. 20 साल पहले शुरू हुआ यह कारवां आज भी आगे बढ़ता जा रहा है. नये लोग जुड़ते जा रहे हैं.
बंजर भूमि में छायी हरियाली
अब ग्रामीण गांव स्तर पर छोटी- छोटी समितियों का गठन कर पेड़ों को संरक्षित करने लगे हैं. लकड़ी माफियाओं का खुटकट्टी क्षेत्र में जाना बंद हुआ. इसका असर हुआ कि कभी बंजर दिखनेवाली भूमि पर आज करीब दो हजार एकड़ से अधिक जमीन पर हरियाली है.
चिपको आंदोलन से हुए प्रभावित
चिपको आंदोलन के प्रणेता सुंदरलाल बहुगुणा के कार्यों से प्रभावित होकर जोजोहातु (कुचाई) के सोहन लाल कुम्हार ने वन संरक्षण के लिए सबसे पहले ग्रामसभा के माध्यम से ग्रामीणों को जागरूक करने का काम किया. ग्रामीणों को वनों के संरक्षित होने से मिलने वाले लाभ के बारे में बताया. क्षेत्र में ग्रामसभा कर ग्रामीणों को जागरूक किया.
सिर्फ वन विभाग से नहीं बचेगा जंगल
श्री कुम्हार कहते हैं कि सिर्फ वन विभाग के भरोसे जंगल को नहीं बचाया जा सकता है. जंगल बचाने के लिए गांव के लोगों को ग्रामसभा के माध्यम से आगे आना होगा. सिर्फ पेड़ लगाने से नहीं होगा. उन्हें बचाना भी होगा.