Jharkhand News : झारखंड में अच्छी बारिश नहीं होने से खरीफ की फसल को इस साल भारी नुकसान पहुंचा है. पानी की कमी से धान की खेती प्रभावित हुई है. पहली बार 10 एकड़ में चार किसानों द्वारा टमाटर की खेती की गयी थी, लेकिन मौसम की मार ने टमाटर की खेती को भारी नुकसान पहुंचाया है. किसानों ने बताया कि सितंबर माह की शुरुआत में ही टमाटर के पौधे का विकास रुक गया था. लीज पर जमीन लेकर टमाटर की खेती मुनाफे की उम्मीद में की थी, लेकिन उनकी परेशानी बढ़ गयी. किसानों की उम्मीदों पर पानी फिर गया. कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि टमाटर में माइट, स्केम ब्लाइट समेत कई रोग हो गये हैं. इससे फसल का उत्पादन प्रभावित हुआ है.
लागत भी निकलने की उम्मीद नहीं
चैनपुर पंचायत के खपुरतला गांव में सफरूल अंसारी, सेराज अंसारी, महुआडांड़ के असताज अंसारी, मंसूर अंसारी ने 10 एकड़ जमीन गांव के ग्रामीणों से लीज पर लेकर टमाटर की खेती की है. अगस्त में बारिश के साथ कुहासे से टमाटर के पौधा को रोग ने जकड़ना शुरू कर दिया था. दवा छिड़काव करने पर भी राहत नहीं है. किसान सफरूल अंसारी ने कहा कि पहली बार टमाटर की खेती की. दोबारा टमाटर खेती करने की हिम्मत नहीं है. ढाई एकड़ में टमाटर की खेती की है. डेढ़ लाख की लागत आ चुकी है. 10 जून के बाद नर्सरी कर टमाटर की उन्नत पौधे उगाये गये थे. पौधा तैयार होने के बाद जुलाई से लेकर अगस्त में पौधा रोप दिया गया था. शुरुआती बरसात के समय बारिश नहीं होने पर टैंकर द्वारा सिंचाई की, लेकिन बाद में बारिश होने पर रोग लगने लगा. पत्तियां मुरझा गयीं. लागत भी निकलने की उम्मीद नहीं है.
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उम्मीदों पर फिर गया पानी
किसान असताज अंसारी ने कहा कि पांच-पांच एकड़ में दो जगहों पर टमाटर की खेती की है. तीन एकड़ में टमाटर का पौधा लगाया गया है. बीज, खाद, पानी, मजदूर, दवा में लगभग दो लाख रुपए लग गये हैं. उन्नत किस्म के पौधे से अच्छे उत्पादन की उम्मीद थी. कृषि सलाहकार एवं छत्तीसगढ़ के कुछ सफल टमाटर उत्पादन करने वाले किसान के संपर्क में भी था, लेकिन हाल में ही बारिश के साथ कुहासे से पौधा का ग्रोथ रुक गया. सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया. किसान सेराज अंसारी ने कहा कि उन्होंने सोचा था कि सितंबर से अक्टूबर में टमाटर निकलेगा, तो अच्छा मुनाफा मिलेगा, लेकिन मौसम ने बर्बाद कर दिया. बारिश की जरूरत थी, तो पानी नहीं आया. देर से बारिश ने खेती को नुकसान दिया. बागान में रोज 30-35 मजदूर काम करते हैं. एक लाख रुपये से अधिक खर्च हो गया है. पौधों को बचाने की बहुत कोशिश की जा रही है, पर कोई उपाय काम नहीं आ रहा है. पूंजी निकालना मुश्किल हो रहा है.
रिपोर्ट : वसीम अख्तर, महुआडांड़, लातेहार