बिहार के वातावरण में बढ़ता प्रदूषण फेफड़े की क्षमता के अलावा शरीर के कई अंगों को प्रभावित कर बीमार बना रहा है. डॉक्टरों के मुताबिक सांस की नली में धूल कण की परत बैठने से एलर्जी वाली खांसी, सीओपीडी और अस्थमा के मरीजों की तकलीफ बढ़ रही है. बाल टूटने, आंखें लाल होने और स्किन पर चकत्ते निकलने की शिकायत आ रही है. डॉक्टरों के मुताबिक वायु प्रदूषण ऐसे ही बढ़ता रहा तो लंग्स कैंसर, टीबी और अस्थमा के मरीजों में तेजी से बढ़ोतरी हो सकती है. शहर के आइजीआइएमएस, पीएमसीएच, पटना एम्स और एनएमसीएच की ओपीडी में पटना सहित पूरे बिहार से आने वाले मरीजों के इलाज के दौरान अनुभवों के आधार पर डॉक्टरों ने यह खुलासा किया है.
वरिष्ठ फिजिशियन डॉ विमल राय का कहना है कि पीएम 2.5 के बढ़े हुए स्तर के संपर्क में रहने के कारण आंख, नाक, गले, फेफड़े और हृदय को गंभीर खतरा हो सकता है. इसके असर से आंखों में जलन, आंखों से पानी आना, सांस लेने में दिक्कत, खांसी और त्वचा से संबंधित समस्याओं का खतरा सबसे अधिक होता है.
आइजीआइएमएस के छाती रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ मनीष शंकर ने बताया कि जब हवा खराब होती है तो इंसान के शरीर से लेकर मन तक पर बड़ा असर पड़ता है. जहरीली हवा के कारण लोगों का मूड ऑफ होना (अवसाद) आम बात है. फेफड़े में जहरीली हवा से सांस की बीमारी बढ़ रही है.
गार्डिनर रोड अस्पताल के अधीक्षक डॉ मनोज कुमार सिन्हा ने बताया कि जहरीली हवा के कारण शुगर का स्तर काफी बढ़ जाता है. सांस के रोगियों में अधिकतर मरीज ऐसे आ रहे हैं जिनका शुगर काफी बढ़ा हुआ रहता है. बीपी के मरीजों को भी जहरीली हवा काफी परेशान कर रही है. पीएमसी के चर्म रोग विभाग असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ विकास शंकर ने कहा कि जहरीली हवा के कारण इन दिनों सबसे अधिक समस्या बाल टूटने की है. स्किन पर चकत्ते भी पड़ रहे हैं और एक्जिमा की समस्या तो तेजी से बढ़ी है. इनसे जूड़े औसत 550 मरीजों का है. बिहार वेटनरी कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ अर्चना कुमारी ने बताया कि अधिक प्रदूषण की वजह से पशु-पक्षियों में बेचैनी बढ़ जाती है. कई बार वे बेहोश हो जाते हें. उनकी आंखों पर भी बहुत बुरा असर पड़ता है. चलने व उड़ने की क्षमता को भी कम हो जाती है. पॉलिथीन, मेडिकल कचरा खाने वाले पशु-पक्षी बेहोश हो जाते हैं.
शिकागो विश्वविद्यालय की एनर्जी पॉलिसी इंस्टिट्यूट की ओर से 2020 में की गयी स्टडी के अनुसार, विश्व में वायु प्रदूषण से जीवन प्रत्याशा औसतन 2.2 वर्ष कम हुई है. भारत में जीवन प्रत्याशा विश्व औसत से चार गुना ज्यादा घटी है. स्टडी बताती है कि वायु प्रदूषण के कारण बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल सहित सात राज्यों की 51 करोड़ लोगों की जिंदगी वायु प्रदूषण से औसतन 7.6 साल कम हुई है. बिहार के लोगों की उम्र करीब 8 साल कम हुई है. प्रदूषण से भारत में हर साल सवा लाख से ज्यादा बच्चों की मौत हो रही है.
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पीएम 2.5- अतिसूक्ष्म धूलकण जिसके फेफड़े में बैठने से दमा जैसी सांस की एलर्जेटिक परेशानी उत्पन्न होती और बढ़ती है
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सीओ – दम घोटू गैस जिसके फेफड़े में जाने पर सांस लेना मुश्किल हो जाता है.
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सीओटू – धुआं जो फेफड़े में जाने पर रक्त के साथ मिलकर कार्बोक्सी हीमोग्लोबिन बनाती है. इससे खून के ऑक्सीजन ढोने की क्षमता घटती है और सांस लेने में परेशानी होती है.
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एनओटू- इससे आंखों में जलन और सांस संबंधी कई तरह की बीमारियां होती हैं.
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एसओटू- बारिश के साथ यह गैस घुलकर सल्फ्यूरिक ऐसिड बनाता है जो शरीर पर पड़ने पर त्वचा के जलने और बाल के टूटने समेत कई बीमारियों की वजह बनता है .